जयपुर। राजस्थान के सवाईमाधोपुर जिले में स्थित रणथम्भौर अभयारण्य के फलौदी रेंजर राजबहादुर मीना को एक इंटेल मिला, मुखबिर ने बताया कि नाका देवपुरा वन क्षेत्र में शिकारियों की हलचल है। मीना ने बिना देर किए सहायक वनपाल ऋषिकेष मीना, मुकेश गुर्जर, सीमा मीना, सुमेर सिंह गुर्जर, वन रक्षक गोविंद सिंह राठौड़ व नाका देवपुरा स्टॉफ को साथ लेकर डांगरवाड़ा काली तलाई के पास घेराबंदी की। हाथों में केवल डंडे लिए वनकर्मियों ने शिकारियों के पास बंदूकें होने के बावजूद घेराबंदी को टाइट किया और शिकारियों की तरफ बढ़े। इस दौरान बाइक से भागने का प्रयास कर रहे शिकारी राजेन्द्र पुत्र सीताराम मोगिया निवासी कैलाशपुरी, थाना रवांजना डूंगर को गिरफ्तार कर लिया गया। आरोपी के पास से जंगली सुअर का मांस बरामद किया गया।
भाग रहे चार पांच अन्य शिकारियों का पीछा जारी रहा। कई किलोमीटर शिकारियों का पीछा किया गया। इस कवायद में एक अन्य शिकारी रामसिंह पुत्र राजमल मोगिया निवासी लक्ष्मीपुरा की पहचान हो गई, लेकिन शिकारी भागने में सफल रहे। रेंजर मीना ने बताया कि हमारी टीम मौके से भागे शिकारियों की धरपकड़ के लिए संदिग्ध ठिकानों पर लगातार दबिश दे रही है।
उल्लेखनीय है कि गिरफ्तार आरोपी मोगिया आदिवासी जनजाति से है जो रणथम्भौर बाघ परियोजना के आस-पास के इलाकों के गांवों में निवास करते हैं। पारम्परिक रूप से जंगलों पर आजीविका के लिए आश्रित रहने वाले मोगिया से अब रोजगार छिन गया है। रणथम्भौर के संरक्षित क्षेत्र घोषित होने के बाद अब यह जनजाति संकट में है, क्योंकि सरकार की ओर से जनजातीय समूह के लिए कोई वैकल्पिक रोजगार की व्यवस्था नहीं की गई। इसके चलते मोगिया जनजाति के लोग अक्सर शिकार के मामलों में गिरफ्तार होते हैं।
रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान के बफर व कोर एरिया में वन्यजीवों का शिकार कोई नई बात नहीं है। बाघ परियोजना के प्रतिबंधित क्षेत्र में हर दिन शिकारी पकड़े जा रहे हैं। गत दिवस 25 अक्टूबर को भी फलौदी रेंज में जंगली सुअर के मांस के साथ एक व्यक्ति पकड़ा गया। वनकर्मियों ने एक बाइक भी जब्त कर ली, लेकिन शिकारी के बाकी साथी भागने में सफल रहे।
रणथम्भौर बाघ परियोजना की फलौदी रेंज की बात करें तो चार महीने में शिकार की 6 घटनाएं सामने आई हैं। इनमें से वनकर्मियों ने 8 शिकारियों को मौके से गिरफ्तार किया है। फलौदी रेंज के क्षेत्रीय वन अधिकारी ने द मूकनायक को बताया कि 21 जुलाई को प्रतिबंधित क्षेत्र में शिकार करते हुए दो लोगों को गिरफ्तार किया था। इनके पास मरे हुए तीतर मिले थे। 26 जुलाई को मछली का शिकार करते हुए दो आरोपियों को गिरफ्तार किया। 28 सितंबर को इसी रेंज में नील गाय का कटा हुआ मांस मिला था, लेकिन शिकारी पकड़ में नहीं आए। 3 अक्टूबर को प्रतिबंधित वन क्षेत्र में मछली का शिकार हुआ। वनकर्मियों को देख कर शिकारी भागे। मौके से 6 बाइक जब्त की थी। 15 अक्टूबर को एक फार्महाउस पर नील गाय का शिकार करते तीन आरोपियों को गिरफ्तार किया। आरोपियों के पास से नील गाय का मांस भी जब्त किया गया। 25 अक्टूबर को जंगली सुअर के साथ बाइक सहित एक आरोपी पकड़ा गया।
इससे पूर्व भी रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान से सटे चौथ का बरवाड़ा सामाजिक वानिकी क्षेत्र में नीलगाय के शिकार प्रकरण ने वन्यजीव प्रेमियों से लेकर वनाधिकारियों की चिंता बढ़ा दी थी। इस इलाके से पुलिस ने तीन मृत नीलगायों के साथ पांच आरोपियों को पकड़ा था। बाद में चौथ का बरवाड़ा थाना पुलिस ने पकड़े गए सभी पांचों आरोपी को वन विभाग को सौंप दिया था। खास बात यह है कि यहां पकड़े गए सभी आरोपी टोंक व कोटा जिले के रहने वाले थे, जिनमें अधिकांश आदिवासी थे। जांच में पता चला कि सवाईमाधोपुर.टोंक सीमा क्षेत्र में शिकारी गत 6 महीने से लगातार वन्यजीवों का शिकार कर रहे थे। आरोपियों ने बौंली व चौथ का बरवाड़ा इलाके से 145 नीलगायों का शिकार किया था, जो कि एक बड़ा मामला है। इन शिकारियों के तार टाइगर पोचर से भी जुड़े होने की आशंका जताई गई है।
पथिक लोक सेवा समिति सचिव मुकेश सीट के अनुसार रणथम्भौर बाघ परियोजना क्षेत्र में वन्यजीवों का शिकार कोई नई बात नहीं है। यहां लंबे समय से वन्यजीव शिकार के मामले सामने आते रहते हैं। मीडिया में मामला उजागार होने पर सिस्टम सक्रिय होता है। इसके कुछ दिन बाद फिर वही ढाक के तीन पात। चौथ का बरवाड़ा सामाजिक वानीकी व फलौदी रेंज के अलावा भी रणथम्भौर बाघ परियोजना की तालड़ा, कुण्डेरा, राजबाग सहित खण्डार रेंज में शिकार की घटनाएं रिपोर्ट होती रही हैं। खण्डार रेंज में सांभर का शिकार करते महिला शिकारी पकड़ी गईं। इससे पूर्व बसवकलां के पास सांभर का सिर व खाल मिले थे। फलौदी रेंज में चीतल को लटका कर ले जाते शिकारियों की फोटो खूब वायरल हुई थी। यहां शिकार के दर्जनों प्रकरण हुए हैं। आधुनिक हथियारों से लैस शिकारियों को पकड़ने के लिए वनकर्मी हाथों में डंडा लेकर जाते हैं। यह कड़वा सच है। सिस्टम को इसमें सुधार करने की जरूरत है। आपके पास पर्याप्त स्टॉफ नहीं है। आप बात शिकार की घटनाएं रोकने की करते हैं। विभाग को इस दौर में कम से कम हथियारबंद सुरक्षा गार्डों को फील्ड में उतारना होगा। साथ ही वन क्षेत्र में रोजगार के साथ स्थानीय ग्रामीणों की भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी। तब जाकर वन एवं वन्यजीवों की हत्या रोकी जा सकती है।
रणथम्भौर बाघ परियोजना की बात करें तो बीते 10 सालों में 30 से अधिक बाघ लापता हुए हैं। सूत्रों की माने तो वन विभाग बाघों के लापता होने की गोपनीय सूचना समय समय पर सरकार को तो भेजता है, लेकिन सार्वजनिक नहीं करता। ऐसे में यहां से बाघों के असमय मौत के साथ ही शिकार की आशंका से भी इंकार नहीं कर सकते। इन दिनों बाघ टी-132 भी नजर नहीं आ रहा है। लंबे समय से वनकर्मी गुपचुप तरीके से तलाश कर रहे हैं। सूत्रों की माने तो टी-132 करौली व धौलपुर में भी कहीं नजर नहीं आया है। रणथम्भौर की सीमाएं कोटा, बूंदी, करौली व धौलपुर जिलों के साथ ही मध्यप्रदेश की सीमा से भी लगती हैं। ऐसे में शिकार की आशंका से भी इनकार नहीं कर सकते। फरवरी 2020 में फलौदी रेंज में विभाग के कैमरे में चीतल ले जाते शिकारियों की फोटो ट्रैप हुई थी। 17 अप्रैल 2022 को अवैध तरीके से बंदूक लेकर घूम रहे शिकारियों को तालड़ा रेंजर ने पकड़ा था।
पिछले कुछ सालों में रणथम्भौर में तीन बाघों का शिकार हुआ है। इनमें से दो बाघों का शिकार 17 अप्रैल 2018 को हुआ था। रणथम्भौर की फलौदी रेंज के आवण्ड क्षेत्र में बाघिन टी-79 के दो शावकों का शिकार हुआ था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बाघ के शरीर में कीटनाशक के अंश मिलने के बाद वन विभाग ने अज्ञात शिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज किया था। इसी तरह छाण में खेतों में आए बाघ टी-28 के शिकार की आशंका जताते हुए खण्डार थाना पुलिस ने 2019 में 11 लोगों को गिरफ्तार किया था।
वनकर्मियों की माने तो बाघ परियोजना में आवश्यकता के अनुसार वनकर्मियों की तैनाती नहीं की जा रही है। जंगल और जंगली जानवरों की रक्षा के लिए फील्ड में तैनात सुरक्षाकर्मियों के हाथ में केवल लकड़ी का एक डंडा दिया गया हैं, जबकि शिकरी स्वचलित हथियारों के साथ प्रतिबंधित क्षेत्र में प्रवेश कर वन्यजीवों का शिकार करते हैं। बंदूकों से लैस अपराधियों से मुकाबले के लिए वनकर्मियों को डंडा थमाया गया है। ऐसे में अब सिस्टम पर भी सवाल उठने लगे हैं।
यदि रणथम्भौर बाघ परियोजना की फलौदी रेंज की बात करें तो यहां केवल 25 प्रतिशत फील्ड स्टाफ है। इनके पास भी सुरक्षा के लिए केवल एक डंडा है। फलौदी रेंजर ने द मूकनायक को बताया कि इस रेंज में पांच पहाड़ी है। चारांे तरफ गांव बसे हैं। खेती है। जंगली जानवर पानी की तलाश में जंगल से खेतों की तरफ निकलते हैं। इसी का फायदा उठा कर शिकारी शिकार करते हैं। हम खेतों में आने से किसानों को रोक नहीं सकते। इसी का फायदा शिकारी उठाते हैं।
मीना कहते हैं कि फलौदी रेंज कार्यालय के अलावा 6 नाके हैं। 23 बीट है। स्टाफ की स्थिति की बता करें तो 6 नाकों पर पांच सहायक वनपाल है। 6 वनरक्षक, 15 वृक्षपालक, दो केटल गार्ड है। एक कर्मचारी के पास कई कई बीटों की सुरक्षा की जिम्मेदारी है। हमारे पास मात्र 25 प्रतिशत स्टॉफ है। इस रेंज में चार पर्यटन जोन भी है। स्टॉफ इस क्षेत्र में भी व्यस्त रहता है। इसी रेंज से टोंक. शिवपुरी हाइवे निकलता है। रेंज क्षेत्र से चालक, चंबल व कचाकड़ नदी भी निकलती है। ऐसे में शिकारी आसानी से वनक्षेत्र में प्रवेश कर जाते हैं।
रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान राजस्थान के सवाईमाधोपुर जिले में स्थित है। यह उत्तर भारत के बड़े राष्ट्रीय उद्यानों में गिना जाता है। 392 वर्ग किलोमीटर में फैले इस उद्यान में बाघों के साथ अन्य वन्यजीव भी विचरण करते हैं। यह उद्यान बाघों के लिए संरक्षित क्षेत्र माना जाता है। सरकार ने इसे 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर अभयारण्य घोषित कर बाघों के संरक्षण की कवायद शुरू की। 1984 में रणथंभौर को राष्ट्रीय अभयारण्य घोषित कर दिया गया।
रणथंभौर अभयारण्य बाघ संरक्षित क्षेत्र घोषित होने के बाद यहां प्रचलित वन्यजीव शिकार पर सरकार ने पाबन्दी लगाने के लिए कड़े कदम भी उठाए। स्थानीय बस्तियों को भी संरक्षित वन क्षेत्र से बाहर निकाला गया है।
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