जयपुर। देश में समान नागरिक संहिता कानून को लेकर बहस छिड़ी है। राजस्थान में भी इस कानून को लाने पर विरोध शुरू हो गया है। अमनपसंद, बुद्धीजीवी धार्मिक और सामाजिक संगठनों ने यूनिफॉर्म सिविल कोड कानून को देश की अखण्डता को तोड़ने वाला बताया है।
यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर राजस्थान की राजधानी जयपुर में मुस्लिम परिषद राजस्थान सहित एक दर्जन से अधिक प्रमुख सामाजिक, धार्मिक और अमनपसंद संगठनों ने साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस कानून के लागू होने के बाद देश में उत्पन्न होने वाले संभावित हालातों पर चर्चा की।
जयपुर शहर के सिंधी कैंप बस स्टैण्ड के पास एक होटल परिसर में हुई प्रेस वार्ता में वक्ताओं ने कहा कि भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। भारतीय संविधान की विशेषताओं के कारण विश्व में आदर्श संविधान की हैसियत से पहचान रखता है। भारत में विभिन्न धर्म, जाति, संस्कृति एवं भाषा बोलने वाले लोग सदियों से एक साथ रहते आये हैं, यही वजह है कि संविधान निर्माताओं ने संविधान बनाते समय इस स्पिरिट को ध्यान में रखा और ‘‘अनेकता में एकता-भारत की विशेषता’’ के ध्येय वाक्य को खूबसूरती के साथ संविधान में समाहित किया है।
जाट महासभा के प्रतिनिधि राजाराम मील ने कहा कि संविधान में सबसे पहले मौलिक अधिकार को रखा गया है जो संविधान की आत्मा है, इसके बाद निर्देशक सिद्धांत को रखा गया है। मौलिक अधिकार में हर व्यक्ति को अपने धर्म के अनुसार जीवन यापन की जमानत दी गई है। सभी धर्म, सम्प्रदाय व संस्कृति में आस्था रखने वालों को अपने अपने धर्म, सम्प्रदाय और संस्कृति के प्रचार व प्रसार का अधिकार भी दिया गया है। ऐसी सूरत में अगर मौलिक अधिकार में और निर्देशक सिद्धांत के बीच में कोई टकराव की स्थिति बनती है, तो मौलिक अधिकार को प्राथमिकता दी जाएगी।
आदिवासी विकास परिषद राजस्थान के प्रतिनिधि के.सी. घुमरिया ने कहा कि इससे पूर्व इन्दिरा गांधी के दौर में लेपालक बिल और राजीव गांधी की सरकार में ‘शाह बानो’ के मामले में हुए निर्णयों पर सरकार ने पुनर्विचार किया। मौजूदा केंद्र सरकार संविधान संशोधन एवं नये नियम-क़ायदे बनाने में समाज के विभिन्न वर्गों जैसे किसान, आदिवासी, अल्पसंख्यक समुदाय एवं शोषित समाजों के हितों के विरूद्ध कार्य कर रही है जिससे हर वर्ग में बेचैनी है।
राजस्थान मुस्लिम फोरम के प्रतिनिधि शब्बीर खान ने कहा कि वर्तमान में भाजपा शासित कई राज्य व केन्द्र सरकार यूनिफॉर्म सिविल कोड सभी वर्गों पर थोपने की तैयारी कर रही है। जिसका विरोध सर्व समाज के द्वारा किया जा रहा है। यहां तक कि मेघालय के मुख्यमंत्री सी.के. संगमा जो कि नेशनल पीपुल्स पार्टी के अध्यक्ष भी हैं और भाजपा से गठबंधन कर सरकार भी चला रहे हैं। उन्होंने भी इसका खुल कर विरोध किया है।
बार काउंसिल राजस्थान के प्रतिनिधि एडवोकेट शाहिद हसन ने कहा कि मौजूदा केन्द्र सरकार धारा 44 के संदर्भ में कॉमन सिविल कोड की बात कर रही है। जबकि निर्देशक सिद्धांत में इससे ज़्यादा महत्वपूर्ण बातें कही गई है जिससे बहुत बड़ा वर्ग प्रभावित हो रहा है। सरकार को समान नागरिक संहिता की बजाय देश की अन्य बड़ी समस्याओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
एडवोकेट शाहिद हसन ने कहा कि धारा 39 में आर्थिक विषमता दूर करने की बात कही गई है, लेकिन भारत की 80 करोड़ जनता 5 किलो अनाज के लिए लाइन में खड़ी नजर आती है। जबकि देश के 50 प्रतिशत संसाधनों पर सिर्फ 100 लोगों का कब्जा है। उन्होंने कहा कि धारा 45 में सबको शिक्षित करने की बात कही गई है, लेकिन आज भी एक बड़ी आबादी शिक्षा से वंचित है। धारा 47 में नशाबन्दी की बात कही गई है, जबकि देश में नशे से होने वाली स्वास्थ्य एवं सामाजिक समस्याएं बढ़ रही है। नशे के कारण करोड़ों लोग प्रभावित हो रहे हैं। परिवार उजड़ रहे हैं। सामाजिक बुराई उत्पन्न हो रही है। अपराध बढ़ रहे हैं। इसके बावजूद सरकार नशे के कारोबार पर पाबंदी लगाने की बजाय ज़्यादा से ज़्यादा लाइसेंस दे कर इसे बढ़ावा दे रही है। क्या यह धारा 47 के सिद्धांतों के विरुद्ध नहीं है।
जमीयत उलेमा-ए-हिन्द राजस्थान प्रदेशाध्यक्ष मोहम्मद नाजिम ने कहा कि केन्द्र की भाजपा सरकार जो कि यूनिफॉर्म सिविल कोड लाने पर उतारू है। यह भारत के लोकतंत्र और विभिन्न समाजों के हित में नहीं है। उन्होंने कहा कि यहां पर मौजूद विभिन्न समाजों एवं धर्मों से उपस्थित जिम्मेदार इस क़दम का कड़ा विरोध करते हैं। केन्द्र सरकार से यह आशा करते हैं कि उन चीज़ों की तरफ (जिनमें से कुछ की तरफ ऊपर निशानदेही की गई है ध्यान केंद्रित करें, जो सभी वर्गों के लिए वास्तव में हितकारी हो।
बौद्ध महासभा अध्यक्ष टी. सी. राहुल ने कहा कि यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर हम लोग विरोध करते हैं और करते रहेंगे। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार इस तरह के बिल लाकर देश को तोड़ने का काम कर रही है। जब भी चुनाव आते हैं, तब इस तरह के मुद्दों को लाया जाता है, फंडामेंटल राइट है कि हर व्यक्ति अपने धर्म के अनुसार जीवन यापन कर सकता है।
एसोसिएशन फॉर प्रोटेकशन ऑफ सिविल राइट्स के प्रतिनिधि मुज़म्मिल रिज़वी ने कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में समान नागरिक संहिता के बारे में जानकारी दी गई है। जिसका उद्देश्य देश के अलग धर्म और समुदाय के लोगों में समान कानून और सामंजस्य स्थापित करना है। देश में इस कानून को लेकर चर्चा तेज हो गई है।
लॉ कमिशन ऑफ इंडिया ने इसे लागू करने को लेकर एक पब्लिक नोटिस जारी कर भारत के नागरिकों से 13 जुलाई तक सुझाव मांगा है। उन्होंने कहा कि देश की आवाम भाई चारा और प्रेम के साथ रहना चाहती है, लेकिन केन्द्र सरकार अपने राजनीतिक लाभ के लिए देश की अखण्डता को तोड़ने पर तुली है। देश के प्रमुख सामाजिक, धार्मिक संगठनों ने जयपुर में पीसी कर इस कानून का विरोध किया है। इसमें समान नागरिक सहिंता से देश में उत्पन्न होने वाली स्थितियों से अवगत कराया गया है।
प्रेस कान्फ्रेंस में जमियत उलेमा-ए-हिन्द राजस्थान के प्रतिनिधि हाफिज़ मन्ज़ूर अली ख़ान, मसीह शक्ति समिति राजस्थान से फादर विजय पॉल, सिख समाज से दया सिंह, फोरम फॉर डेमोक्रेसी एण्ड कम्यूनल एमिटी से सवाई सिंह, दलित मुस्लिम एकता मंच से अब्दुल लतीफ आरको, मेघवाल महासभा राजस्थान से डॉ. इन्द्रराज सिंह मेघवाल, इमाम-शिया मुस्लिम समुदाय से मौलाना नाजि़श अकबर, अम्बेडकर वेलफेयर सोसायटी से जी.एल. वर्मा, अम्बेडकराइट पार्टी ऑफ इण्डिया राजस्थान से डॉ. दशरथ सिंह हिनुनिया, सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इण्डिया राजस्थान से डॉ. शहाबुद्दीन, आज़ाद समाज पार्टी से मोहनलाल बैरवा, वेलफेयर पार्टी ऑफ इण्डिया राजस्थान से वक़ार अहमद, राजस्थान डेमोक्रेटिक फ्रंट से डॉ. गजेन्द्र सिंह हीद, ऑल इण्डिया जीमयतुल कुरैश से शोकत कुरैशी और ऑल इण्डिया मिल्ली काउंसिल से एडवोकेट मुजाहिद नक़वी ने भी विचार रखे।
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