जयपुर। राजस्थान में पानी की किल्लत जगजाहिर है। गर्मियों की शुरूआत होते ही यह समस्या और बढ़ जाती है। पानी की इस समस्या को दूर करने के लिए राज्य सरकार एक महती परियोजना पर काम कर रही है, लेकिन राज्य व केन्द्र के बीच तालमेल नहीं बनने से ’पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना’ कई सालों से अटकी पड़ी है। परियोजना पर काम शुरू हो इसके लिए आदिवासी महिला के नेतृत्व में एक दल राजस्थान के करौली जिले से दिल्ली के जंतर-मंतर तक पैदल मार्च कर रहा है। बुधवार को यह दल जंतर-मंतर पहुंचकर परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने की मांग करेगा।
पूर्वी राजस्थान के 13 जिलों के साढ़े तीन करोड़ लोगों को पेयजल व सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी की उपलब्धता के लिए किसान करौली जिले से दिल्ली के लिए पैदल मार्च कर रहे है। ईआरसीपी संयुक्त मोर्चा के नेतृत्व में चल रहे पैदल मार्च में किसानों के साथ आदिवासी महिलाएं भी शामिल हैं। मंगलवार को 10वें दिन किसान दिल्ली के धौला कुआं पहुंचे।
द मूकनायक को ईआरसीपी संयुक्त मोर्चा संयोजक जवान सिंह मोहचा ने बताया कि हमारा पैदल मार्च बुधवार 26 अप्रैल को जंतर-मंतर पर प्रदर्शन कर केंद्र सरकार के समक्ष पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने की मांग रखेगा।
मोहचा ने कहा कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि सरकार किस पार्टी की है। हम केवल हमारा हक मांग रहे हैं। पूर्वी राजस्थान के 13 जिलांे में पानी की विकट समस्या है। पानी की कमी से यहां जीव जंतु और मानव जाति खतरे में है। पानी की पर्याप्त उपलब्धता से ही पूर्वी राजस्थान में जंगल और जमीन व मानव जाति बच पाएगी। इन्हें बचाने की मांग को लेकर ही हम दिल्ली पैदल चल कर आए हैं। हमारे साथ आदिवासी महिला सोमैया मीना टोडाभीम करौली से अपनी छोटी बेटी को छोड़ कर 16 अप्रैल से पैदल चल रही है। दौसा जिले के खुर्रा गांव से आदिवासी महिला राजेश्वरी मीना भी हमारा हौसला बढ़ाते हुए हमारे साथ पैदल चल रही है। केंद्र व राज्य सरकार जनहित में अपना-अपना अहम छोड़ कर ईआरसीपी को राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने की मांग को पूरा करें।
16 अप्रैल को शुरू किया था दिल्ली के लिए पैदल मार्च
आप को बता दें कि पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने की मांग को लेकर ईआरसीपी संयुक्त मोर्चा संयोजक आदिवासी जवान सिंह मोहचा के नेतृत्व में करौली जिले के टोडाभीम तहसील के पाड़ला गांव के सिद्ध बाबा के स्थान से 16 अप्रैल को 35 लोगों का जत्था पैदल दिल्ली के लिए रवाना हुआ था। जल संकट से निजात दिलाने की इस मुहिम में 10 दिन से पैदल चल रही सौम्या मीना कहती है कि 3.5 करोड़ की आबादी पर आने वाले संभावित जल संकट के सामने यह परेशानी कुछ भी नहीं है। ईआरसीपी राष्ट्रीय परियोजना घोषित करवाना ही हमारा मकसद है। हमारा सिर्फ एक ही नारा है ईआरसीपी। हमें कोई विधायक नहीं बनना है। कोई राजनीति नहीं करनी है। यह केवल ईआरसीपी संयुक्त मोर्चा का मार्च है। यहां न किसी का नारा लगेगा न किसी नेता का नाम चमकेगा।
ईआरसीपी को राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने की मांग को लेकर पूर्व खुर्रा से जयपुर सीएम हाऊस तक 150 किलोमीटर से अधिक पैदल कूच कर चुकी आदिवासी महिला राजेश्वरी मीना खुर्रा अब करौली जिले से 16 अप्रैल को शुरू हुए दिल्ली पैदल मार्च में शामिल हुई है। बीते तीन दिन से राजेश्वरी मीना भी जल क्रांतिकारियों के साथ पैदल चल रही है।
द मूकनायक से बात करते हुए राजेश्वरी मीना ने कहा कि करौली जिले के टोडाभीम तहसील के पाड़ला गांव से 16 अप्रैल को शुरू हुआ ईआरसीपी संयुक्त मोर्चा का दिल्ली पैदल कूच अंतिम पड़ाव की ओर है। यह पैदल मार्च सरकार के शीर्ष नेतृत्व तक बात पहुंचने के मकसद से निकला है। ईआरसीपी को राष्ट्रीय परियोजना में बदलने की मांग केंद्र सरकार तक पहुंचाना हमारी जिम्मेदारी है।
मीणा आगे कहती है कि केंद्र और राज्य सरकार ने ईआरसीपी को राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने के मुद्दे को फुटबॉल बना रखा है। हम इससे पहले जयपुर पैदल कूच कर राज्य सरकार के सामने भी अपनी बात रख चुके हैं। उसके बाद ईआरसीपी संयुक्त मोर्चा के नेतृत्व में यह पैदल मार्च दिल्ली में जंतर मंतर के नजदीक पहुंच चुका है। अब हम केंद्र सरकार के सामने अपनी यही बात रखना चाहते है कि पूर्वी राजस्थान में पानी की बड़ी समस्या है। हम इस समस्या को लेकर पूर्वी राजस्थान से पैदल चलकर दिल्ली तक आए हैं। हमारी मांग है कि केंद्र सरकार इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित करे, ताकि योजना जल्दी से धरातल पर क्रियान्वित हो सके।
क्या है ईआरसीपी परियोजना
इस्टर्न राजस्थान कैनाल परियोजना ( ईआरसीपी) की घोषणा वित्तीय वर्ष 2017-2018 के बजट में तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे सरकार द्वारा की गयी थी। ईआरसीपी परियोजना के तहत भरतपुर, सवाई माधोपुर, करौली झालावाड़, बारां, कोटा, बूंदी जैसे 13 जिलों की सिंचाई और पानी की जरूरतों को पूरा किया जा सकता है। प्रोजेक्ट की डीपीआर बने पांच साल से भी ज्यादा समय बीत चुका है, लेकिन फिर भी यह मुद्दा केंद्र और राज्य के बीच अटका हुआ है एवं सरकारे इस मुद्दे पर अभी तक किसी निर्णय पर नहीं पहुंची है। यह परियोजना 3.5 करोड़ लोगों की पानी की जरुरत को पूरा करने में सक्षम है, लेकिन सरकारों की कमजोर इच्छाशक्ति के चलते परियोजना अभी तक मूर्त रूप नहीं ले पायी है, जबकि इस परियोजना के अंतर्गत नवनेरा (दिगोद) एवं ईसरदा (सवाई माधोपुर) डैम का कार्य अंतिम दौर में चल रहा है। इसके अतिरिक्त ईसरदा डैम से दौसा अलवर को पेयजल की आपूर्ति करने के लिए एसपीएमएल को टेंडर देने की प्रक्रिया भी की गई।
यह आ रही है समस्या
परियोजना के तहत चंबल नदी के पानी की उपलब्धता के लिए भाजपा शासित मध्यप्रदेश सरकार से अनापत्ति प्रमाण पत्र के साथ 75 प्रतिशत मौसम आधारित पानी की निर्भरता पर ईआरसीपी को राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने की बात कह रहे है।
जबकि राजस्थान सरकार चंबल नदी के पानी पर मध्यप्रदेश के अनापत्ति प्रमाण पत्र के बिना पूर्वी राजस्थान को 50 प्रतिशत मौसम आधारित पानी की उपलब्धता पर राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने की केंद्र सरकार से मांग कर रही है। यहां दोनांे सरकारों के बीच अहम की लड़ाई 13 जिलो की साढ़े तीन करोड़ आबादी की खुशहाली पर कुंडली मारे हुए है।
परियोजना से होने वाले फायदे
यह इंट्रा बेसिन जल अंतरण योजना पूर्वी राजस्थान के झालावाड़, बारां, कोटा, बूंदी, सवाईमाधोपुर, अजमेर, टोंक, जयपुर, दौसा, करौली, अलवर, भरतपुर और धौलपुर में पीने के पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करेगी। कृषि कार्यों के लिए भी पानी उपलब्ध हो पायेगा, जिससे फसलों की पैदावार बढ़ेगी। पानी की प्रचुर उपलब्धता औद्योगिक निवेश को भी बढ़ावा देगी और राज्य के लोगों को रोजगार के बेहतर अवसर उपलब्ध करवाने में भी सहायक होगी।
ईआरसीपी बड़ा राजनीतिक मुद्दा
ईआरसीपी राजस्थान में बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन चुका है। आने वाले चुनावों में पूर्वी राजस्थान में इसका असर दिखाई देगा। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ईआरसीपी की गेंद भाजपा की केंद्र सरकार के पाले में डालने में सफल रहे हैं। अब केंद्र सरकार इस पर क्या कदम उठाती है यह देखना होगा। हालांकि बीते दिनों दौसा जिले में दिल्ली-मुम्बई एक्सप्रेस-वे का उद्घाटन करने आए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने ईआरसीपी पर कुछ नहीं बोल कर सपने इरादे साफ कर दिए थे।
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