उदयपुर में चार दशक का हाई कोर्ट बेंच आंदोलन: 30-30 सालों के दुर्घटना क्लेम पेंडिंग, वंचित-आदिवासी वर्ग के बूते के बाहर महंगा न्याय

अधिवक्ताओं ने पट्टी बांधकर मौन जुलूस निकाला, वर्चुअल कोर्ट शुरू करने पर ज़ोर
उदयपुर में चार दशक का हाई कोर्ट बेंच आंदोलन: 30-30 सालों के दुर्घटना क्लेम पेंडिंग, वंचित-आदिवासी वर्ग के बूते के बाहर महंगा न्याय
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उदयपुर में हाईकोर्ट बेंच की मांग को लेकर प्रतिमाह 7 तारीख को किए जाने वाले आंदोलन के तहत बुधवार को सुबह अधिवक्ताओं ने शहर में काली पट्टी बांधकर मौन जलूस निकाला। अधिवक्ता प्रातः 9:30 बजे गणवेश में जिला एवं सत्र न्यायालय परिसर में एकत्रित हुए और उसके बाद हाथों में तख्तियां लेकर अंबेडकर सर्कल कोट चौराहे से दिल्ली गेट तथा वहां से वापस कोर्ट चौराहा तक आए। इस दौरान जिला कलेक्टर को मुख्यमंत्री व राज्यपाल के नाम हाईकोर्ट बेंच की स्थापना उदयपुर में करने को लेकर ज्ञापन दिया गया। इसके बाद अधिवक्ता पुनः न्यायालय परिसर पहुंचे और अपने नियमित धरने में शरीक हुए। गौरतलब है कि उदयपुर में हाईकोर्ट बेंच को लेकर बीते 42 वर्षों से लगातार आंदोलन जारी है। प्रतिमाह 7 तारीख को उदयपुर बार एसोसिएशन की ओर से धरना प्रदर्शन आयोजित किया जाता है और वकील कार्य बहिष्कार करते हैं। 

राजस्थान में हाईकोर्ट की प्रिंसिपल बेंच जोधपुर और दूसरी बेंच राजधानी जयपुर में स्थित है।

आसन्न राजस्थान विधानसभा चुनाव से पूर्व इस वर्ष मेवाड़ वागड़ हाई कोर्ट बेंच संघर्ष समिति, जिला हाईकोर्ट बेंच संघर्ष समिति एवं बार एसोसिएशन उदयपुर ने उदयपुर में हाईकोर्ट बेच की मांग को लेकर अपना रुख स्पष्ट कर दिया है। आंदोलन संयोजक रमेश नंदवाना ने कहा कि जो भी इस राजनीतिक दल आम चुनाव में उदयपुर की ज्वलंत मांग हाई कोर्ट बेंच की स्थापना का वादा कर इस दिशा में बेंच स्थापित करने की मदद करेगा अधिवक्ता वर्ग उसी के साथ मताधिकार का प्रयोग करेगा। संयोजक रमेश नंदवाना ने बताया कि आजादी के बाद उदयपुर को मिले पांच निदेशालय में से खान निदेशालय एवं आयुक्त देवस्थान विभाग के एडिशनल कार्यालय विभिन्न जिलों में खोले जाकर लोगों को राहत दी गई है लेकिन हाई कोर्ट बेंच की स्थापना नहीं कर न्याय का विकेंद्रीकरण नहीं किया जा रहा है।

उदयपुर और बांसवाड़ा जो आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र हैं, यहां सैकड़ों मामले हैं जहां पैसों के अभाव में वंचित और निर्धन तबके के लोग न्याय को तरस रहे हैं। कई आदिवासी स्त्री पुरुष ज़मानत नहीं हो पाने के कारण जेल में बंद है क्योंकि धन के अभाव में उनके परिजन जोधपुर हाई कोर्ट तक जाने और वकील की फीस देने में असमर्थ हैं। अपील के मामलों में भी गरीब लोग धनाभाव की वजह से न्याय से महरूम रह जाते हैं।

उड़ीसा में खुले 10 वर्चुअल कोर्ट, राजस्थान में कोई नहीं

संयोजक रमेश नंदवाना ने बताया कि केंद्र सरकार ने एक विशेष फंड 7000 करोड़ की व्यवस्था कर देश में वर्चुअल कोर्ट के लिए घोषणा की है और इसके तहत उड़ीसा में 10 वर्चुअल कोर्ट खोली जा चुकी हैं लेकिन राजस्थान में अब तक इसकी शुरुआत नहीं की गई है। नंदवाना ने सरकार से मांग की है कि राजस्थान में पहली वर्चुअल हाई कोर्ट बेंच की स्थापना उदयपुर से कर विभिन्न जिलों में भी यह वर्चुअल खोली जाए।

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रमेश नंदवाना ने सवाल उठाया है कि विधानसभा व लोकसभा में केवल सवाल उठाना ही जनप्रतिनिधियों के लिए काफी नहीं है बल्कि गहरी स्टडी करके अब लोकसभा और विधानसभा में उदयपुर से वर्चुअल कोर्ट की शुरुआत करने के पुख्ता आधार रखकर इसकी शीघ्र शुरुआत करनी होगी क्योंकि अधिवक्ता तकनीक का उपयोग करना जानता है और सरकार तकनीक से दूर रखकर लोगों को न्याय से वंचित नहीं कर सकते हैं।

एडवोकेट शंभू सिंह राठौड़ ने बताया कि हजारों की तादाद में न्यूनतम वेतनमान, एक्सीडेंट के क्लेम पीड़ितों की अपील 30- 30 साल से राजस्थान उच्च न्यायालय की जोधपुर बेंच में पेंडिंग पड़ी हुई है जिससे लोग न्याय से वंचित हो रहे हैं और गरीब तबके का मजदूर तो न्याय प्राप्ति के लिए जोधपुर तक जा भी नहीं सकता है ऐसे में वर्चुअल कोर्ट के माध्यम से इनकी शुरुआत होने पर पीड़ित व गरीब पक्षकारों को न्याय मिल सकेगा।

पूर्व अध्यक्ष प्रवीण खंडेलवाल ने बताया कि कर्नाटक हाईकोर्ट ने पहले वकीलों का विरोध झेल कर हाईकोर्ट बेच की स्थापना नहीं करने की बात कही लेकिन हाल ही में उन्होंने कर्नाटक में तीन हाईकोर्ट बेंच की स्थापना कर अब अपडेट 150 पेज के निर्णय में इसके फायदे गिनाए हैं तो ऐसे में सरकार द्वारा उदयपुर उदयपुर को क्यों हाईकोर्ट बैंक से वंचित किया जा रहा है।

बार एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश मोगरा ने बताया कि उड़ीसा में 10 जिलों में वर्चुअल हाई कोर्ट बेंच शुरू हुई तथा वर्तमान में 19 जिलों में वर्चुअल हाईकोर्ट स्थापित है जिसमें राजस्थान और उदयपुर को भी प्राथमिकता से गिनाया था।

पक्षकार न्याय से वंचित

एडवोकेट कमलेश दवे ने बताया कि न्यायालयों द्वारा छोटे-छोटे प्रार्थना पत्र रिवीजन को प्रारंभिक स्तर पर ही खारिज कर पक्षकारों को न्याय से वंचित किया जा रहा है वही एडवोकेट हरीश पालीवाल ने इस मांग को लेकर जेलों में सफर कर रहे पीड़ितों के कहानियों को समाचार पत्र के माध्यम से प्रकाशित करने और सरकार को सच्चाई से अवगत कराने का आग्रह किया।

महासचिव चेतन पुरी गोस्वामी ने बताया कि मेवाड़ वागड़ हाईकोर्ट बैंच संघर्ष समिति के सहयोग के लिए तथा जिला स्तरीय संघर्ष समिति के कार्यक्रमों में अधिक से अधिक अधिवक्ताओं की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए महिला प्रकोष्ठ का गठन किया गया है जिसमें एडवोकेट शीतल नंदवाना को संयोजक एवं कांता नागदा को सहसंयोजक इसी तरह युवा प्रकोष्ठ के संयोजक के रूप में एडवोकेट मयूरध्वज  को मनोनीत किया गया है। 

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