फॉलोअप: अमरूद का उत्पादन तो बढ़ा, लेकिन दाम नहीं मिलने से किसानों का रुझान घटा

सवाईमाधोपुर स्थानीय फल मंडी में बिकने आया अमरूद [Photo- Abdul Mahir, The Mooknayak]
सवाईमाधोपुर स्थानीय फल मंडी में बिकने आया अमरूद [Photo- Abdul Mahir, The Mooknayak]
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सवाईमाधोपुर में पैदा होता है सर्दी का मेवा अमरूद। सवाईमाधोपुर में अमरूद की खेती व्यापारिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान रखती है। उत्पादन बर्बाद होने, कम दाम मिलने और सरकार की बेरुखी से किसानों के हौसले पस्त।

राजस्थान/जयपुर। सवाईमाधोपुर में सर्दी का मेवा कहा जाने वाला स्वादिष्ट अमरूद ठंडे प्रदेशों में लोगों के भोजन में शामिल फलों में से पहली पसंद है। इसकी तासीर गर्म होती है। इसलिए इसे सर्दी का मेवा भी कहा जाता है। गत वर्ष तक सवाईमाधोपुर जिले में अमरूद का 1 लाख 60 हजार मैट्रिक टन उत्पादन के साथ तीन अरब रुपए का कारोबार हुआ था। इस वर्ष भाव कम होने से किसानों की आमदनी कम हो रही है।

बीते तीन वर्षों में अमरूद के बगीचों में औसत वृद्धि कम हुई है। अमरूद के प्रति किसानों का रुझान कम होने के पीछे स्थानीय स्तर पर बाजार की अनुपलब्धता माना जा रहा है। उत्पादन क्षेत्र से बाजार की अधिक दूरी से ट्रांसपोर्टेशन में अधिक लागत भी एक बड़ा कारण है।

भारतीय किसान संघ जिलाध्यक्ष कानजी लाल मीना ने द मूकनायक को बताया कि शुरुआती दौर में सवाईमाधोपुर ज़िले में अनुकूल जलवायु व मौसम के साथ ही गुणवत्ता के कारण किसानों को अमरूद अच्छे भाव मिलते थे। इससे ज्यादातर किसान परम्परागत खेती को छोड़ कर बागवानी में अमरूद की खेती से जुड़ते चले गए। वर्तमान में सवाईमाधोपुर जिले में 18 हजार हेक्टियर में अमरूद के बगीचे लगे हैं। बीते सात सालों में जिले में अमरूद का उत्पादन 80 हजार से दो लाख मैट्रिक टन पहुंच गया। बीते सीजन तीन अरब रुपये से अधिक का कारोबार भी हुआ।

शकील खान, अमरूद किसान, मलारना डूंगर [फोटो- अब्दुल माहिर, द मूकनायक]
शकील खान, अमरूद किसान, मलारना डूंगर [फोटो- अब्दुल माहिर, द मूकनायक]

सवाईमाधोपुर जिले के मलारना डूंगर निवासी शकील खान ने बताया कि उन्होंने 5 साल पहले 6 बीघा में अमरूद के 6 सौ पेड़ लगाए थे। उन्होंने कहा, "पहले तीन साल छोटे पौधों की सार-सभांल पर काफी पैसा खर्च हुआ। जैसे ही पेड़ फल देने लगे तो पहले कोरोना की वजह से अमरूद का भाव कम मिला। फिर मौसम के कारण कम उत्पादन हुआ। इस वर्ष भी बादल व मौसम के कारण 6 पेड़ो का फल केवल एक लाख रुपये में बिका। अमरूद घाटे का सौदा है। उसकी मेहनत व लागत भी नहीं मिली है। जिला स्तर पर अमरूद की खपत होगी तब ही किसानों को अच्छा भाव मिल सकता है। सरकार को भी किसान हित में अमरूद किसानों के लिए विचार करना चाहिए। अमरूद किसानों की मेहनत ने सवाईमाधोपुर को देश में अलग पहचान दी है।"

खान कहते हैं कि यहां के किसान लम्बे समय से अमरूद फल को स्थानीय स्तर पर बाजार उपलब्ध कराने के लिए लम्बे समय से बड़े स्तर पर सरकारी फ्रूट प्रोसेसिंग यूनिट लगाने की मांग कर रहे हैं। इससे यह फायदा होगा कि जब तापमान में वृद्धि या अन्य कारणों से एक साथ फल पक कर टूटता है तो प्रॉसेसिंग यूनिट में खपत हो जाएगी। प्रोसेसिंग में पीला पका अमरूद ही काम आता है। जबकि मार्केट में पका अमरूद नही बिकता है। अमरूद हल्का पकने के बाद दूसरे राज्यो की मंडी तक नही पहुंच पाता है। ऐसे में किसानों को पके हुए फल को यूंही फेकना पड़ता है।

चन्द्र प्रकाश बढ़ाया, सहायक निदेशक उद्यान विभाग, सवाईमाधोपुर [फोटो- अब्दुल माहिर, द मूकनायक]
चन्द्र प्रकाश बढ़ाया, सहायक निदेशक उद्यान विभाग, सवाईमाधोपुर [फोटो- अब्दुल माहिर, द मूकनायक]

सहायक निदेशक उद्यान विभाग चंद्रप्रकाश बढ़ाया कहते हैं कि, किसानों को फल तुड़ाई के समय सावधानी रखना जरूरी है। पेड़ से अमरूद तोड़ते समय टूटे या फटे नहीं। किसी प्रकार से फल पर दाग नही लगे। दाग लगने से भाव कम हो जाता है। मंडी में फल भेजने के दौरान पेकिंग में भी विशेष ध्यान रखे। फलों की ग्रेडिंग करें। ताकि एक कार्टन में एक साइज व एक कलर का फल जाए। हल्के फल अलग कार्टन में पैक करें। पके हुए फल अगल पैक करें ताकि क्वालिटी के हिसाब से भाव मिल सके।

7 सालों में 1 लाख 20 हजार मैट्रिक टन उत्पाद राजस्थान के कुल अमरूद उत्पादन का 75 प्रतिशत फल सवाईमाधोपुर जिले में पैदा होता है। 25 प्रतिशत करौली, दोसा, टोंक, कोटा व बूंदी में अमरूद उत्पादन होता है। उद्यान विभाग से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, सवाईमाधोपुर जिले में 2015 में 80 हजार मैट्रिक टन। 2016 में 90 हजार मैट्रिक टन। 2017 में 1 लाख मैट्रिक टन। 2018 में 1 लाख 20 हजार मैट्रिक टन। 2019 में 1 लाख 30 हजार मैट्रिक टन। 2020 में 1 लाख 40 हजार मैट्रिक टन। 2021 में 1 लालच 65 हजार मैट्रिक टन उत्पादन हुआ है। इस सीजन 2 लाख मैट्रिक टन उत्पादन का अनुमान है।

सहायक निदेशक चंद्रप्रकाश बड़ाया ने द मूकनायक को आगे बताया कि, "यह बात सही है कि अंगूर, संतरा व सेब सहित अन्य फलों की तरह अमरूद को अधिक समय सुरक्षित नहीं रखा जा सकता। यह फल टूटने के बाद जल्दी पक कर खराब हो जाता है। खाने लायक नहीं रहता। ऐसे में इसे जल्द से जल्द मार्केट के माध्यम से लोगों की थाली तक पहुंचना होता है। यही वजह है कि इस फल के भाव तेजी से गिरते हैं। बादल या अन्य कारणों से तापमान में वृद्धि से अमरूद में पकने की प्रक्रिया बहुत फ़ास्ट हो जाती है। इसका बड़ा कारण यह भी है कि इससे इथलीन गैस भी निकलती है। इसीलिए इसे सर्दी का मेवा भी कहा जाता है।"

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