जयपुर। राजस्थान में जाति समाजों के अलग-अलग श्मशान हैं। यह पाबंदी इतनी है कि एक जाति समाज का आदमी मौत-मरण होने पर दूसरे जाति समाज के श्मशान में अपने प्रियजन के शव का अंतिम संस्कार नहीं कर सकता। इस व्यवस्था व परम्परा का सबसे ज्यादा खामियाजा नाथ सम्प्रदाय के लोगों को भुगतना पड़ता है।
नाथ समाज की धार्मिक मान्यताओं के अनुसार किसी की मौत होने पर उसके शव को अग्नि न देकर उसका 'मिट्टी दाग' किया जाता है, अर्थात उसको दफना दिया जाता है। नाथ समाज के लोग श्मशान नहीं होने पर शवों को घर के आंगन में या फिर आस-पास दफनाने के लिए विवश हैं। द मूकनायक की टीम ने राजस्थान के कई सुदूर गांवों का दौरा कर इस तथ्य की पड़ताल की। पेश है यह रिपोर्टः
राजस्थान की राजधानी जयपुर से 155 किलोमीटर दूर सवाई माधोपुर जिले की मलारना डूंगर पंचायत समिति की ग्राम पंचायत कुंडली नदी गांव में अधिकांश घरों के बाहर समाधियां नजर आती हैं। यहां लल्लू नाथ व इनके पुत्र बद्री नाथ की समाधि घर के अगुवार में बनी है। समाधि पक्की बनाई गई है। पास ही शिव मंदिर भी बनाया गया है। इस संबंध में स्थानीय निवासी अजय कुमार योगी से पूछा गया तो योगी ने बताया, "हमारी परम्परा है कि हम शवों को अग्नि न देकर दफनाते हैं। सरकार श्मशान के लिए जगह नहीं दे रखी है। इसलिए शवों को घरों में ही दफनाते है व समाधि बनाते हैं।" समाधि स्थल के साथ शिवालय बनाने का कारण पूछने पर अजय ने बताया कि इससे बच्चे डरते नहीं हैं।
इसी प्रकार सवाईमाधोपुर जिला मुख्यालय के खैरदा कॉलोनी के एक घर के अंदर ही समाधि बनाई गई है। स्थानीय निवासी एडवोकेट हरिप्रसाद योगी ने द मूकनायक से कहा, "किसी भी धर्म, जाति, समाज, सम्प्रदाय में मानव की मौत के बाद शव का सम्मान के साथ अंतिम संस्कार करने की परंपरा रही है। मरणोपरांत मानव देह के स-सम्मान अंतिम संस्कार का भारतीय संविधान भी अधिकार देता है। साथ ही अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकारों का हिस्सा भी है। चाहे मरने वाला दुश्मन देश से हो तब भी उसका उसकी परम्परानुसार अंतिम संस्कार करने के लिए अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार नियम बाध्य करते हैं। हम तो इसी देश के नागरिक हैं, लेकिन शवों के अंतिम संस्कार के लिए हमारे पास जगह तक नहीं है।"
"हमारे समाज में परम्परा है कि मृत्यु के बाद शव को जलाते नहीं है। हमारे यहां दफनाने (समाधी) की परंपरा है। इसे मिट्टी दाग भी बोलते हैं। हम इसी देश के नागरिक तो हैं, लेकिन मरणोपरांत परम्परानुसार अंतिम संस्कार के लिए हमारे पास पर्याप्त जगह नहीं है। हमारे सामने बड़ी समस्या है। परिवार में किसी की मौत होने पर घर-आंगन समाधी देते हैं। घर में कब्र होने से बच्चे डरते हैं। रात में निकल नहीं पाते हैं, लेकिन हमारी मजबूरी है। परिजनों को कहां लेकर जाए? समाधी देना सामाजिक रीति है। इसे छोड़ भी नहीं सकते," योगी ने कहा।
राजस्थान में लगभग 30 लाख नाथ, योगी सम्प्रदाय के लोग शहरों और गांवों में निवास करते हैं। इनकी आजीविका का प्रमुख स्रोत मजदूरी के साथ-साथ भजन-कीर्तन और रात्रि जागरण करने से प्राप्त आय है। आपको बताते चलें कि नाथ सम्प्रदाय में मानव देह त्यागने के बाद मिट्टी में दफना कर (समाधी) देकर अंतिम संस्कार की परम्परा है। समाधी देने की यह परम्परा आदिकाल से चली आ रही है। आज भी लोग इस का निर्वाह कर रहे हैं।
खास बात यह है कि इतनी बड़ी आबादी के पास समाधी देने (दफनाने) के लिए श्मशान की जगह उपलब्ध नहीं है। चुनिंदा कस्बों या शहरों को छोड़ कर, खास कर गांव या छोटे कस्बों की बात करें तो इनमें आज भी जगह के अभाव में घर के आंगन में ही समाधी दी जा रही है। मरणोपरांत परिवार के सदस्य के शव को आंगन में दफनाने (समाधी) के बाद उस पर पक्का चबूतरा बना दिया जाता है। आंगन में दफन अपनों के बीच 24 घण्टे रहना पीड़ादायक है। इसे मानव अधिकारों का उल्लंघन कहना भी गलत नहीं होगा।
सवाईमाधोपुर गोरख आश्रम ठीगला नाथ समाज अध्यक्ष मनीष योगी ने कहा, "यह बात सही है। हमारा समाज इसे लेकर चिंतित है। समाधी की परंपरा पूर्वज के समय से चली आ रही है। सिद्धांतों के हिसाब से मृत्यु के बाद मिट्टी दाग दिया जाता है। अगर सवाईमाधोपुर जिला मुख्यालय की बात करें तो ठीगला में समाधी के लिए मामूली जगह है। अब यह भी भरने लगी है। इसके अलावा यह आबादी के बीच है। इससे हमें कई तरह की दिक्कतें होती हैं। बच्चे भी डरते हैं। सरकार से मांग करते हैं कि जिला मुख्यालय पर कही भी समाधी के लिए पर्याप्त जगह उपलब्ध करवाएं।"
योगी, नाथ सम्प्रदाय श्मशान भूमि आवंटन संघर्ष समिति सचिव सुरेश योगी ने द मूकनायक से बात करते हुए कहा, "यह कड़वा सच है। नाथ सम्प्रदाय के लोगों को आज भी घर के आंगन में समाधी दी जाती है। इनके पास घर के बाहर समाधी देने की जगह नहीं रहती। समाधि को लेकर गांवों में बड़ी चुनौती सामने आती है। चारागाह या खाली पड़ी जमीन पर समाधी देने से कई बार विवाद की स्थिति उत्पन्न हो जाती।"
सुरेश योगी ने आगे कहा, "पांच वर्षों से अधिक समय से नाथ सम्प्रदाय आबादी वाले प्रत्येक गांव में श्मशान भूमि आवंटन के लिए संघर्ष कर रहे हैं। समाधि स्थल के लिए जमीन आवंटन के लिए धरना प्रदर्शन भी किया है, लेकिन कोई ध्यान नहीं दे रहा है। सवाई माधोपुर जिला मुख्यालय पर समाज ने ठीगला, खैरदा, रेलवे स्टेशन, शहर सहित सभी तहसील पंचायत गांव में श्मशान/समाधि स्थल के लिए भूमि आवंटन की मांग की थी। 3 अक्टूबर 2018 को जिला कलक्टर ने समस्त उपखण्ड अधिकारी एवं तहसीलदारों को पत्र लिख कर नाथ समाज के श्मशान, कब्रिस्तानों पर हुए अतिक्रमण को हटवाने व नवीन स्थानों पर भू आवंटन के प्रस्ताव तैयार करा भिजवाने के निर्देश दिए थे, लेकिन कलक्टर के आदेशों का अभी तक मताहत कर्मचारियों ने पालन नहीं किया है।"
द मूकनायक की पड़ताल में सामने आया कि संयुक्त शासन सचिव प्रथम राजेन्द्र सिंह शेखावत ने भी जिला कलक्टरों को पत्र लिखा था। इस पत्र में उन्होंने बताया था कि नाथ संप्रदाय में योगी, नाथ, जोगी, जंगम, रावल, पटवा, गिरी, पुरी, गोस्वामी, भारती, उपाध्याय में मरणोपरांत शरीर को समाधि वाली स्थिति में दफनाने की परम्परा है। इस सम्प्रदाय के पास शरीर को दफनाने के लिए स्थान आरक्षित करने की मांग की जाती रही हैं।
सचिव ने सम्प्रदाय को उक्त परम्परा के मध्यनजर मरणोपरांत शरीर को समाधि वाली स्थिति में दफनाने के लिए समाज की ओर से अंतिम संस्कार के लिए सार्वजनिक समाधी स्थल उपलब्ध कराये जाने की कार्यवाही कराने की निर्देश दिए थे।
एडवोकेट हरिप्रसाद योगी ने बताया कि 2014 से आंदोलन चल रहा है। स्वायत्त शासन विभाग द्वारा राज्य के सभी कलक्टरों को समाधि स्थल के लिए भूमि आवंटन के आदेश दिए गए थे। 2018 दिसम्बर में लगातार 25 दिन धरना प्रदर्शन किया गया। इस दौरान पूर्व विधायक दिया कुमारी ने आश्वासन देकर धरना समाप्त करवाया था, लेकिन अभी भी समाधान नहीं हुआ। 2014 से 2018 के बीच राज्य मानव अधिकार आयोग को भी कई बार पत्र लिखे गए हैं, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
मलारना डूंगर के उपखण्ड अधिकारी किशन मुरारी मीना ने द मूकनायक को बताया, "नाथ सम्प्रदाय के समाधि स्थल के लिए भूमि आवंटन के लिए प्रस्ताव मिले थे। हमने प्रस्ताव आवंटन के लिए उच्च अधिकारियों को भेज रखे हैं। उपखण्ड क्षेत्र में कुछ स्थानों पर समाधि स्थल पहले से आवंटित है।"
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