राजस्थान: दलित-आदिवासियों के हक को छिपा रही सरकार- दलित अधिकार केन्द्र

भरतपुर, दोसा, अलवर के बाद अजमेर में दलित आदिवासियों के हक की आवाज बुलंद करते हुए जागरुकता शिविर का आयोजन।
दलित अधिकार केन्द्र का जागरूकता शिविर
दलित अधिकार केन्द्र का जागरूकता शिविर
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जयपुर। राजस्थान में दलित अधिकार केन्द्र सामाजिक संगठन से जुड़े लोग गांव-गांव जाकर दलितों को कानूनी तौर पर मिले हक अधिकारों के प्रति जागरूक कर रहे हैं। राज्य के अलग-अलग जिलों में यह संगठन काम कर रहा है। जहां दलित महिला-पुरुषों को एकत्रित कर कानून का पाठ भी पढ़ाया जाता है। पढ़े लिखों के अलावा घरेलू कामकाजी महिलाओं और मजदूरों को भी उनके हक और अधिकार के बारे में जानकारी दी जा रही है। इस पहल के कारण दलित अधिकार केन्द्र की हर तरफ तारीफ भी हो रही है।

भरतपुर, अलवर, दोसा के बाद दलित अधिकार केन्द्र के तत्वाधान में अजमेर में बैठक आयोजित कर ‘अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति विकास निधि (योजना आवंटन और वित्तीय संसाधनों का उपयोग) अधिनियम 2022’ की समीक्षा की गई। इस दौरान जिला स्तरीय जागरूकता शिविर आयोजित कर अधिनियम के बारे में दलित समाज के आम नागरिकों को भी बताया गया।

दलित अधिकार केन्द्र जयपुर के सहायक निदेशक एडवोकेट चंदालाल बैरवा ने समीक्षा बैठक में कहा कि राजस्थान सरकार ने 22 मार्च 2022 को ‘अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति विकास निधि (योजना आवंटन और वित्तीय संसाधनों का उपयोग) अधिनियम 2022’ बनाया था, लेकिन अभी तक इस कानून के नियम नहीं बनाए गए हैं। ना ही सरकार के स्तर पर इस अधिनियम का प्रचार-प्रसार नहीं किया जा रहा है।

एडवोकेट चंदालाल बैरवा ने कहा कि राजस्थान सरकार ने इस अधिनियम के रूप में दलितों को लॉली पॉप दिया है। इसी कानून के बहाने कांग्रेस सरकार दलित आदिवासियों के सहारे चुनावी वैतरणी पार कर सत्ता में वापसी चाहती है। नियम बनाकर इस कानून को लागू करने की सरकार की मंशा साफ नहीं है। राज्य सरकार इस कानून का प्रचार-प्रसार का प्रयास भी नहीं कर रही है।

दलित अधिकार केन्द्र के जागरूकता शिविर में उपस्थित लोग
दलित अधिकार केन्द्र के जागरूकता शिविर में उपस्थित लोग

बजट आवंटन का प्रावधान हटाया

एडवोकेट चंदालाल बैरवा ने कहा कि ‘अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति विकास निधि (योजना आवंटन और वित्तीय संसाधनों का उपयोग) अधिनियम 2022’ बनने से पहले तक यह केवल दलित-आदिवासियों के उत्थान के लिए योजना थी। इस योजना में प्रावधान था कि अनुसूचित जाति और जनजाति की जन संख्या के अनुपात में राज्य के सरकारी विभागों में बजट आवंटन किया जाए। विभागों में आवंटित बजट इन्हीं समुदायों के लिए खर्च किया जाए। लेकिन सरकार ऐसा नहीं कर रही थी। योजना में शामिलज प्रावधान के अनुरूप एससी, एसटी के हिस्से का बजट खर्च नहीं कर सरकार या तो लेप्स कर दे रही थी। या फिर अन्य मद में खर्च किया रहा था। राज्य में उत्थान की योजना होने के बादवजू दलित-आदिवासी समुदाय अपने हक और अधिकारों से वंचित था।

उन्होंने कहा कि योजना को कानून में बदलने के लिए दलित अधिकार केन्द्र राजस्थान ने राज्य सरकार पर दबाव बनाया। समीक्षा के बाद सरकार ने इसे कानून में बदल दिया। सरकार ने कानून तो बना दिया, लेकिन कानून में जनसंख्या के अनुपात में बजट आवंटन के प्रावधान को शामिल नहीं किया गया है। यहां सरकार ने चालाकी कर एक बार फिर दलित-आदिवासियों को गुमराह कर दिया। उन्होंने कहा कि दलित अधिकार केन्द्र सरकार से बजट आंवटन के पहलू को कानून में शामिल करने की मांग कर रहा है।

एडवोकेट चंदालाल बैरवा ने कहा कि एससी, एसटी, डेवलपमेनट फण्ड एक्ट 2022 के अन्तर्गत राजस्थान में एक हजार करोड़ रुपए आवंटित हुए हैं। यह राशि जन संख्या के अनुपात में निम्न है। उन्होंने कहा कि सरकार ने अभी तक इस राशि को खर्च तक नहीं किया गया है। इसलिए इस कानून के नियम अविलम्ब बनाने की आवश्यकता है। ताकि एससी, एसटी के विकास पर आवंटित बजट समय पर खर्च हो सके।

शिविर में दलित अधिकार केन्द्र के मुख्य कार्यकारी एडवोकेट हेमन्त मीमरोठ ने संगठन का परिचय कराते हुए कहा कि हमारा संगठन दलित एवं महिलाओं पर अत्याचारों के मामलों में कानूनी हस्तक्षेप कर उन्हें न्याय दिलवाने का प्रयास करता रहा है। इसी के साथ दलित एवं महिलाओं के हित में बजट पर भी काम करता है।

दलित अधिकार केन्द्र के निदेशक एडवोकेट सतीश कुमार ने कहा कि दलित अधिकार केन्द्र के काफी प्रयासों के बाद राजस्थान में एससी, एसटी, डेवलपमेनट फण्ड एक्ट 2022 पारित हुआ है। इस अधिनियम को लागू करने वाला राजस्थान देश का पांचवा राज्य बन गया है। जिसमें यह कानून पारित हुआ है। इस कानून के नियम प्रभावी बने इसके लिए हमें सामूहिक रूप से प्रयास करना होगा।

दलित अधिकार केंद्र की राज्य समन्वयक एडवोकेट खुशबू सोलंकी ने जेण्डर बजट पर चर्चा करते हुए कहा कि देश में दलित महिलाओं की स्थिति बिल्कुल दयनीय है। महिलाओं को जाति, लिंग व सत्ता की मार झेलनी पड़ती है। ऐसे में अब महिलाओं को जागरूक होने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि जागरुकता से ही महिलाएं सशक्त एवं आत्मनिर्भर बन सकेंगी। उन्होंने सरकार से मांग की है कि इस अधिनियम में पचास प्रतिशत दलित महिलाओं के उत्थान का प्रावधान शामिल किया जाए। जब तक दलित महिलाओं का विकास नहीं होगा। तबतक देश का विकास सम्भव नहीं है।

दलित अधिकार केन्द्र अजमेर के समन्वयक इंदिरा सोलंकी गौतम ने कहा कि हमें कानून व हमारे अधिकारों को जानकर जागरूक होने की आवश्यकता है। शिविर में सामाजिक कार्यकर्ता ओम प्रकाश, महेंद्र, राजेश, रविकांत, एडवोकेट विनय कुमार मधुकर ने भी अपने-अपने विचार रखे। इस दौरान अजमेर जिले के विभिन्न ब्लॉकों से सामाजिक कार्यकर्ताओं ने जन जागरूकता शिविर में भाग लिया।

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