राजस्थान। बीकानेर के खाजूवाला में दलित छात्रा से गेंगरेप और हत्या मामले में पुलिस कर्मियों की सहभागिता ने खाकी को शर्मसार किया है। राजस्थान पुलिस के चंद भ्रष्ट कर्मचारियों-अधिकारियों के कारण खाकी दागदार हो रही है। वर्दीधारियों पर अपराधियों के साथ मिलीभगत करने, कानून की अवहेलना आदि के आरोप लगते रहे हैं।
एक जानकारी के मुताबिक प्रदेश में 3 साल में 26 पुलिस कर्मियों को आपराधिक लिप्तता के चलते अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी गई है। वर्तमान में 264 पुलिस कर्मियों पर जांच विचाराधीन है। जांच के दायरे में सर्वाधिक 85 पुलिसकर्मी राजधानी जयपुर जिले से है , बाड़मेर जिला दूसरे और उसके बाद उदयपुर तीसरे स्थान पर है जहां क्रमशः 41 और 38 कार्मिकों पर आपराधिक लिप्तता संबधी जांचें विचाराधीन है। द मूकनायक की इस विस्तृत रिपोर्ट में बाड़मेर, राजसमन्द और झालावाड़ जिलों के हाल के तीन ऐसे मामले शामिल किये गए हैं जिसमे न्यायालय ने पुलिस के अनुसंधान में खामियों और ड्यूटी में कोताही को उजागर करते हुए संबधित अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई के आदेश दिए।
राजसमंद जिले में नाथद्वारा अतिरिक्त न्यायिक मजिस्ट्रेट ने बलात्कार सम्बंधी मुकदमे में सुनवाई के दौरान विधि से संघर्षरत आरोपी किशोर को गैर कानूनी रूप से निषिद्ध कर 18 दिन जेल में रखने, केस डायरी में छेड़छाड़ आदि गंभीर आरोपों पर डिप्टी छगन पुरोहित के विरुद्ध कठोर विभागीय कार्रवाई और उदयपुर रेंज आईजी को केस के तकनीकी बिंदुओं पर जांच के आदेश दिए हैं।
वहीं बाड़मेर में न्यायालय ने तत्कालीन चौहटन एसएचओ भुटाराम विश्नोई को 80 साल के रिटायर्ड फौजी और उसकी पत्नी के साथ मारपीट कर जाति सूचक शब्दों से अपमानित करने के एक वर्ष पुराने मामले में 10 हजार रुपए के जमानती वारंट से तलब करने के आदेश दिए हैं झालावाड़ में नाबालिग से दुष्कर्म जैसे गंभीर मामले में प्रदेश के एक आईपीएस बार-बार समन के बावजूद गवाही देने कोर्ट नहीं आए। ऐसे में पॉक्सो कोर्ट-2 के विशिष्ठ न्यायाधीश ने थाना बकानी में दर्ज केस में जांच अधिकारी (आईओ) रहे प्रतापगढ़ एसपी को गिरफ्तार कर 26 जुलाई को झालावाड़ कोर्ट में पेश करने को कहा है।
एक मामला बाडमेर के चौहटन थाने का है जहां न्यायालय ने तत्कालीन चौहटन एसएचओ भुटाराम विश्नोई को 80 साल के रिटायर्ड फौजी और उसकी पत्नी के साथ मारपीट व जाति सूचक शब्दों से अपमानित करने के एक वर्ष पुराने मामले में 10 हजार रुपए के जमानती वारंट से तलब करने के आदेश दिए हैं। आरोप है कि तत्कालीन थानाधिकारी भुटाराम विश्नोई ने दलित दम्पति से पुलिस थाने में मारपीट कर जातिसूचक शब्दों से अपमानित किया था। घटना 2022 की है तब पीड़िता की तरफ से दर्ज प्राथमिकी में पुलिस ने एफआर लगादी थी, लेकिन पीडि़त दलित दम्पति ने न्यायालय अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति न्यायालय बाड़मेर के समक्ष पुन: सुनवाई की गुहार लगाई।
79 वर्षीय पीड़िता सिणगारी देवी पत्नी रायमलराम निवासी मते का तला ग्राम पंचायत बूठ राठौड़ान ने 21 जून 2022 को अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति न्यायालय बाड़मेर के समक्ष एक परिवाद पेश कर बताया था कि 13 जून को वह अपने पति के साथ चौहटन पुलिस थाने गई थी। वहां वे थानाधिकारी भुटाराम विश्नोई से 28 मई को जिला कलेक्टर की मार्फत भेजे गए परिवाद पर की गई कार्रवाई के बारे में जानकारी लेने गए थे। इस बात से एसएचओ ने नाराज होकर कहा कि तुम्हारे बाप के नौकर नहीं हैं। हमें जो लोग खर्चा पानी देते हैं। तेल भरवाते हैं तब मुल्जिमों के पीछे भागते हैं।
परिवाद में बताया कि थानाधिकारी ने कहा कि तू बिना खर्चे पानी के अपने सगे भाईयों और परिवार वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने आती है। इस पर पति रायमलराम ने कहा कि मैं रिटायर्ड फौजी हूं। अपशब्द बोले तो ठीक नहीं होगा। इससे नाराज होकर एसएचओ ने पीड़िता के पति के साथ मारपीट की तथा जाति सूचक शब्दों से अपमानित किया। पति को बचाने आई पीड़िता को लात मारी। उन्हें बेइज्जत कर थाने से बाहर निकाल दिया। इस पर पीड़िता ने पुलिस के समक्ष रिपोर्ट पेश की। कार्रवाई नहीं होने पर उसने न्यायालय की शरण ली। न्यायालय के आदेश पर पुलिस ने 0185/22 नम्बर मुकदमा पंजीबद कर जांच के बाद झूठा मानते हुए एफआर लगा दी।
इस के बाद पीड़िता सिणगारी ने 27 जनवरी 2023 को एफआर के विरुद्ध २७ जनवरी को न्यायालय में विरोध याचिका दायर की। उसने न्यायालय को बताया कि अनुसंधान अधिकारी ने आरोपी एसएचओ से मिलीभगत कर उसके व गवाहओं के बयान मनमर्जी से लिखे हैं। आरोपी को लाभ पहुंचाने के लिए उसके हितबद्ध गावाहों के बयान दर्ज किए गए। पीड़िता ने न्यायालय को बताया कि 13 जून को सुबह 10 बजे जब वह थानाधिकारी के पास गए तो थानाधिकारी अकेला था। पति-पत्नी के साथ मारपीट की गई। जाति सूचक शब्दों से अपमानित किया गया। पुलिस ने मेडिकल तक नहीं करवाने दिया गया। मेडिकल के लिए 20 जून को न्यायालय से गुहार लगाई। न्यायालय के आदेश पर मेडिकल करवाया गया।
पीडि़ता ने परिवाद के जरिए न्यायालय को बताया कि उस वक्त आरोपी थानाधिकारी व एक पुलिस अधिकारी ने राजीनामा करने का दबाव बनाया। विरोध याचिका में परिवादिया ने पुलिस अधिकारी पर राजीनामा के लिए 10 लाख रुपए देने के ऑफर की बात भी कही है। राजनीनामा नहीं करने पर पति-पत्नी को जेल में डालने तक की धमकी दी गई। विरोध याचिका की सुनवाई के दौरान न्यायालय ने माना कि अनुसंधान अधिकारी ने साक्ष्यों को नजरअंदाज कर आरोपी थानाधिकारी को बचाने के लिए एफआर लगाने के उद्धेश्य से ही गवाह व साक्ष्य जुटाए जो परिवादी द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों और बयानों से मैच नहीं करते हैं। ऐसे में एफआर को अस्वीकार किया जाता है।
न्यायालय ने कहा-चौहटन पुलिस द्वारा प्रस्तुत अंतिम परिवेदन अस्वीकार कर खारिज किया जाता है। तथा परिवादिया सिणगारी द्वारा प्रस्तुत विरोध याचिका स्वीकार की जाकर अभिुयक्त भुटाराम विश्नोई के विरुद्ध धारा 341,323 भारतीय दण्ड सहिंता और अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम में प्रसंज्ञान लिया जाता है। फौजदारी इब्तिदाई प्रकरण रजिस्टर में दर्ज कर लोक अभियोजक को प्रकरण में पैरवी के लिए निर्देश दिए गए। साक्ष्य प्रस्तुत करने पर आरोपी तत्कालीन चौहटन एसएचओ को 10 हजार रुपए के जमानती वारंट से तलब करने के निर्देश दिए गए।
न्यायालय अतिरिक्त न्यायिक मजिस्ट्रेट, नाथद्वारा जिला राजसमंद ने थाना खमनौर में दर्ज एक वर्ष पुराने मामले में अनुसंधान अधिकारी डिप्टी एसपी छगन पुरोहित की घोर लापरवाही, अनियमितता पाई। न्यायालय ने ना केवल आईजी उदयपुर रेंज को बताए बिंदुओं पर समयबद्ध जांच को लिखा बल्कि महानिदेशक राजस्थान पुलिस को उपाधीक्षक के विरुद्ध ' कठोर से कठोर' विभागीय एवं अनुशासनात्मक कार्रवाई के आदेश दिए हैं।
थाना खमनौर में जून 2022 में दर्ज एक एफआईआर में प्रार्थी ने बताया कि वह सपरिवार महाराष्ट्र के औरंगाबाद में रहता है जहां उसकी छोटी बहन आरोपी से ट्यूशन जाने के दौरान परिचित हुई। आरोपी ने लड़की से दोस्ती के बाद अलग अलग अवसर पर बहला फुसलाकर 30 लाख रुपये प्राप्त किये एव डरा धमका कर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए। लड़की से प्राप्त रुपयों से आरोपी ने महँगी मोटर साइकिल, मोबाइल, ईयर पोड आदि खरीदे। बाद में नाबालिग लड़की के अश्लील फोटो वायरल करने का भय दिखाकर उससे 2 लाख रुपये देने को मजबूर किया। प्रार्थी ने बताया कि परिजन लड़की को लेकर अपने पैतृक गांव आये तो आरोपी भी नाथद्वारा आ गया और नाबालिग से पैसे देने का दबाव बनाया। इसपर पुलिस को शिकायत मिलने पर 4 जून को मुकदमा दर्ज किया गया एव 6 जून को आरोपी को रुपयों के साथ गिरफ्तार किया।
प्रकरण में आरोपी और उसके पिता द्वारा न्यायालय को बताया गया कि जांच अधिकारी को यह जानकारी होने के बावजूद की आरोपी विधि में संघर्षरत किशोर होने से सामान्य अपराधी की बजाय किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष पेश किया जाना था , लेकिन अनुसंधान अधिकारी ने किशोर को 7 जून से 13 जून तक पुलिस रिमांड में रखा एवं 13 जून को न्यायिक अभिरक्षा में भिजवाया और इस तरह 18 दिवस तक विधि विरूद्ध रूप से एक नाबालिग / विधि में संघर्षरत बालक को अभिरक्षा भुगताई गई जबकि नियमानुसार आरोपी को किशोर सम्प्रेषण गृह में रखा जाना चाहिए था।
आरोपी ने यह भी बताया कि उसे पुलिस ने 5 जून 2022 को गिरफ्तार किया, थाने में मारपीट की व उसका मोबाइल भी ले लिया। 5 जून को उंसके द्वारा पीड़िता को कोई मेसेज नही भेजा गया क्यूंकि उंसका मोबाइल पुलिस के पास था लेकिन पुलिस ने उसपर 5 जून को पीड़िता से चैटिंग कर रुपयों की मांग करने का झूठा आरोप लगा उसे गैर कानूनी रूप से गिरफ्तार किया। जबकि पुलिस ने केस डायरी में झूठे तथ्यों का इंद्राज करते हुए 6 जून को गिरफ्तार किया जाना बताया।
अतिरिक्त न्यायिक मजिस्ट्रेट डॉ मनोज सिंघारिया ने आदेश में लिखा - " जांच पत्रावली में दिनांक 05.06 2022 को विधि में संघर्षरत बालक को निरूद्ध कर दिये जाने एवं उसके पश्चात उसके पास कोई मोबाईल नहीं होने एवं पुलिस अभिरक्षा के दौरान उसके द्वारा चैटिंग किये जाने एवं रूपयों की मांग किये जाने व अन्य षड्यंत्र कारित कर उसे अपराध में लिप्त कराये जाने के संबंध में गंभीर आरोप लगाये गये है एवं प्रथम दृष्टया उक्त संबंध में अनुसंधान अधिकारी द्वारा केस डायरी में छेडछाड व घोर लापरवाही व अनियमितता किया जाकर कार्यवाही किये जाने के प्रथम दृष्टया संदेह पत्रावली पर मौजूद है एवं उक्त जांच में पक्षकार पुलिस उपाधीक्षक, रैंक के अधिकारी जिसमें धारा 202 सीआरपीसी की जांच पुलिस उपमहानिरीक्षक, रेंज उदयपुर, जिला उदयपुर को प्रेषित की जाकर लेख है कि प्रकरण में समस्त तथ्यों एवं परिस्थितियों को देखते हुए बिंदुओं पर जांच स्वयं के निर्देशन में किसी आईटी एक्ट व आईटी सेल के सक्षम अधिकारी एवं निष्पक्ष उच्चाधिकारी रैंक के पुलिस अधिकारी द्वारा कराई जाकर एक माह के भीतर-भीतर जांच न्यायालय को प्रेषित करें। मामले में कोर्ट ने प्रकरण की तफ्तीश में लगी टीम के सभी सदस्यों की 5 और 6 जून 2022 की लोकेशन जानने के लिए उनके मोबाइल के सीडीआर निकालने को कहा है।
न्यायालय ने आगे लिखा कि 18 दिवस तक विधि विरूद्ध रूप से एक नाबालिग / विधि में संघर्षरत बालक को अभिरक्षा भुगताई गई जिसमें अनुसंधान अधिकारी की लापरवाही का नतीजा है एवं इस तथ्य का ज्ञान गिरफ्तारी के दिन होने पर भी उसे पुलिस अभिरक्षा / न्यायिक अभिरक्षा में एक बालिग की तरह गिरफ्तार कर पेश किया गया तथा रोजनामचा रपट दि.07. 06.2022 व 11.06.2022 में न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किये जाने के समय में विरोधाभास केस डायरी में आया है एवं केस डायरी के साथ एवं प्रक्रिया में भिन्नता होना पाया गया है, अतः इस संबंध में पुलिस महानिदेशक, जयपुर, राजस्थान को तात्कालीन अनुसंधान अधिकारी छगन पुरोहित, पुलिस उपाधीक्षक, वृत्त नाथद्वारा, जिला राजसमंद के विरूद्ध उक्त संबंध में कठोर से कठोर अनुशासनात्मक एवं विभागीय कार्यवाही कर न्यायालय को अवगत करवाने को लिखा गया।
नाबालिग से दुष्कर्म जैसे गंभीर मामले में भी प्रदेश के एक आईपीएस बार-बार समन के बावजूद गवाही देने कोर्ट नहीं आए। ऐसे में पॉक्सो कोर्ट-2 के विशिष्ठ न्यायाधीश बृजेश पंवार ने मंगलवार को थाना बकानी में दर्ज केस में जांच अधिकारी (आईओ) रहे प्रतापगढ़ एसपी को गिरफ्तार कर 26 जुलाई को झालावाड़ कोर्ट में पेश करने को कहा है। विशिष्ठ लोक अभियोजक लालचंद मीणा ने बताया- झालावाड़ के तत्कालीन एएसपी अमित कुमार अभी प्रतापगढ़ एसपी हैं। वे इस केस में आईओ थे। उन्हें कई बार थाना बकानी, एसपी झालावाड़, आईजी उदयपुर के मार्फत समन व जमानती वारंट से तलब किया गया, पर वे बयान देने नहीं आए। अब कोर्ट ने डीजीपी को निर्देश दिए कि गिरफ्तारी वारंट के तहत एसपी अमित कुमार को कोर्ट में उपस्थित कराएं। कहा- ऐसे संवेदनशील मामले में आईओ का उपस्थित न होना खेदजनक है।
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