जोधपुर, राजस्थान- देश का नाम इंडिया है या भारत - संविधान में क्या लिखा है? क्या भारतीय संविधान कांग्रेस पार्टी का संविधान है ? धर्मनिरपेक्षता के क्या मायने हैं? आरक्षण की क्या जरूरत हैं , भीम राव आंबेडकर ने एससी एसटी के लिए आरक्षण की क्यों पैरवी की?
देश में इन मुद्दों को लेकर जो बहस चल रही है, वह दुविधा बनकर युवाओं के मन में भी पल रही है और नौजवान पीढ़ी खासकर कॉलेज और स्कूल के स्टूडेंट्स के मन में संविधान और इससे जुडी भ्रांतियों को दूर करने के लिए राजस्थान के जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय (जेएनवीयू) ने एक अनूठी मुहिम चलाई है-'संविधान आपके द्वार'.
जेएनवीयू में लोक प्रशासन विभाग एव अंबेडकर अध्ययन केंद्र की सांझेदारी में 'संविधान आपके द्वार' नामक यह पहल अपने आप में अनोखा इसलिए है क्योंकि यह स्कूल और कॉलेज के छात्रों को संविधान के बारे में समग्र जानकारी देकर इससे जुडी गलत धारणाओं को दूर करता है. 2 सितम्बर से शुरू हुआ ये अभियान अब तक 9 वर्कशॉप्स के बाद महज शैक्षिक चर्चाओं से आगे बढ़ गया है। इस पहल का उद्देश्य युवाओं के बीच संविधान के मूलभूत मूल्यों को स्पष्ट करना है। इस अभियान के जरिये अंबेडकर अध्ययन केंद्र जोधपुर जिले के विभिन्न महाविद्यालयों और विद्यालयों के विद्यार्थियों में संविधान के की समझ विकसित करने का कार्य कर रहा है.
प्रत्येक शनिवार जेएनवीयू की टीम इसके लिए संबंधित महाविद्यालय/ विद्यालय जाती है। वहां संविधान के दर्शन, प्रस्तावना, विधि का शासन, लोकतंत्र, मूल कर्तव्य जैसे विषयों पर चर्चा की जाती है। इसके बाद विद्यार्थियों का संविधान के संदर्भ में टेस्ट भी लिया जाता है। प्रथम तीन स्थान अर्जित करने वालों को विश्वविद्यालय स्तर पर सम्मानित किया जाता है।
द मूकनायक के साथ एक विशेष बातचीत में अंबेडकर अध्ययन केंद्र के निदेशक डॉ. दिनेश गहलोत ने इस अभियान के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला।
वे कहते हैं "संविधान की समझ को लेकर कई गलतफहमियां हैं। छात्रों के साथ मेरी बातचीत के दौरान मैंने यह नोट किया कि संविधान के बारे में युवा पीढ़ी की धारणा वर्तमान घटनाओं से प्रभावित लगती है और इसमें अंतर्दृष्टि का अभाव है। युवा पीढ़ी उस ऐतिहासिक प्रक्रिया से अनजान है जिसने संविधान को जन्म दिया. सैकड़ों वर्षों की गुलामी के बाद आजादी के लिए आतुर हमारे देश के लिए हमारे लोक नायकों ने किन परिस्थितियों में शासन और प्रशासन को संचालित करने वाली व्यवस्था के लिए यह जटिल और फूलप्रूफ अभिलेख तैयार किया जिसमे सभी जाति, समुदाय , धर्म और लिंग के नागरिकों को बराबरी में साथ लेकर विकास की यात्रा का खाका तैयार किया गया था- युवा पीढ़ी को यह समझाने की बहुत जरूरत है की हमारी संविधान की प्रस्तावना केवल कुछ शब्दों वाक्यों का समूह नही बल्कि संविधान की आत्मा है जो भारत जैसे विविधता वाले राष्ट्र के लिए क्या मायने रखते हैं.
उन्होंने आगे बताया , "यह जरूरी है कि संविधान स्वयं कथावाचक बने, इसके गठन, हमारे पूर्वजों की कठिन यात्रा और स्वतंत्रता हासिल करने और एक संप्रभु राष्ट्र की नींव रखने के लिए उनके द्वारा किए गए परिश्रम को स्पष्ट करे। इसी उद्देश्य को केंद्र में रखते हुए इस अभियान की शुरुआत हुई और अब तक कई ग्रामीण एव शहरी कई स्कूल कालेजों में स्टूडेंट्स के साथ चर्चाएं आयोजित की जा चुकी है जिसका उत्साहवर्धक रेस्पोंस मिल रहा है . हर सप्ताह शनिवार को टीम किसी एक चयनित शिक्षण संस्थान में जाती है और केम्पस में 2-3 घंटे बिताकर स्टूडेंट्स के मन में संविधान से जुड़े किसी भी सवालों, शंका का समाधान करती है. छात्रों को सीखने और खुली चर्चा के लिए अनुकूल माहौल को बढ़ावा देने, अपने प्रश्नों और अनिश्चितताओं को व्यक्त करने के लिए सक्रिय रूप से प्रोत्साहित किया जाता है।
संविधान आपके द्वार' के पीछे डॉ. गहलोत का दृष्टिकोण गलत धारणाओं को दूर करने, एक ऐतिहासिक संदर्भ प्रदान करने और युवाओं को आज के सामाजिक ढांचे में संविधान के महत्व और प्रासंगिकता को समझने के लिए सशक्त बनाने पर टिका है। इस पहल का उद्देश्य न केवल ज्ञान प्रदान करना है बल्कि युवा पीढ़ी में जिज्ञासा जगाना और आलोचनात्मक सोच को प्रोत्साहित करना भी है।
डॉ. गहलोत ने धर्मनिरपेक्षता, आरक्षण और यहां तक कि संविधान में 'भारत/इण्डिया' के उल्लेख जैसी मौलिक संवैधानिक अवधारणाओं के बारे में प्रचलित गलत धारणाओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने छात्रों के बीच व्याप्त इन भ्रांतियों को दूर करने की आवश्यकता पर बल दिया।
गहलोत कहते हैं , "छात्र अक्सर इन अवधारणाओं की समझ अपने आस-पास के परिवेश से प्राप्त करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न गलत व्याख्याएं होती हैं।"
विशेष रूप से, उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे 'धर्मनिरपेक्षता' शब्द की अक्सर गलत व्याख्या की जाती है, आयोजन के दौरान कुछ छात्रों ने इसे संविधान से हटाने का प्रस्ताव दिया है। इस मुहिम द्वारा आयोजित कार्यशालाएँ संविधान निर्माताओं द्वारा परिकल्पित शब्द की गहराई और महत्व को स्पष्ट करने में सहायक रही हैं।
वे बताते हैं कई स्टूडेंट्स आरक्षण की गलत व्याख्या करते हुए इसके लिए केवल बाबा साहेब को दोष देते हैं, डॉ. गहलोत कहते हैं , " मैं हमेशा हर स्पीच में एक मार्मिक काव्य पंक्ति जरूर कहता हूँ - आँख जिसे देख न सकी , दिल उसके लिए रोता नहीं है," यानी जिसने दूसरों की पीड़ा को प्रत्यक्ष रूप से देखा नही है उसे समझना बहुत मुश्किल होता है। ऐसे में इन कार्यशालाओं के माध्यम से बच्चों को आरक्षण की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, दलितों और आदिवासी वर्ग के साथ हुए उत्पीड़न के बारे में बताते हुए हाशिए पर रहने वाले समुदायों को सशक्त बनाने के तंत्र के रूप में आरक्षण की अनिवार्य के बारे में शिक्षित किया जाता है. अब तक आयोजित नौ कार्यशालाओं की प्रतिक्रिया अत्यधिक सकारात्मक रही है, संकाय सदस्यों और छात्रों दोनों ने इस पहल के साथ जुड़ने के बाद अपनी धारणाओं में बदलाव को स्वीकार किया है।
डॉ. गहलोत ने गलतफहमियों को दूर करने और आवश्यक संवैधानिक सिद्धांतों की अधिक सटीक समझ को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्धता पर प्रकाश डालते हुए मार्च 2024 तक अभियान जारी रखने की जानकारी दी। अभियान का उद्देश्य अधिक समावेशी और न्यायपूर्ण समाज सुनिश्चित करने के लिए अधिक सूचित, सहानुभूतिपूर्ण और संवैधानिक रूप से जागरूक पीढ़ी तैयार करना है।
डॉ. गहलोत ने इसके प्रभाव को बढ़ाने के लिए इस पहल को राज्य-संचालित अभियान के रूप में विस्तारित करने की संभावना व्यक्त की।
एक विश्वविद्यालय के नेतृत्व में जिला-स्तरीय पहल के परिवर्तनकारी प्रभाव पर प्रकाश डालते हुए, डॉ. गहलोत ने इस बात पर जोर दिया कि यदि राज्य इसी तरह के अभियान का नेतृत्व करता है तो बहुत व्यापक प्रभाव पड़ने की संभावना है। "राज्य स्तर पर 'प्रशासन आपके संग' और 'सरकार आपके द्वार' अभियान पहले ही जनता तक पहुंचने में काफी सफल रही हैं। राज्य सरकार द्वारा अपनाई गई 'संविधान आपके द्वार' पहल मिथकों को दूर कर सकती है जिसका असर बड़े पैमाने पर हो सकता है.
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि संविधान किसी राजनीतिक दल या व्यक्ति से संबद्ध नहीं है, बल्कि भारत की सामूहिक विरासत है, जो देश की समृद्ध सांस्कृतिक विविधता, ऐतिहासिक महत्व और आशाजनक भविष्य को दर्शाता है।
डॉ. गहलोत कहते हैं यदि राज्य सरकार इस तरह के प्रस्ताव को अपनाने और लागू करने के लिए सहमत होती है तो जेएनवीयू एक नोडल एजेंसी के रूप में काम करने के लिए तैयार रहेगा.
उल्लेखनीय है कि पिछले 2 वर्षों में, जेएनवीयू में राजनीति विज्ञान, लोक प्रशासन विभाग और नेहरू अध्ययन केंद्र ने कई नवीन पहल की है। ऐसा ही एक अभूतपूर्व प्रयास संविधान सभा की बहसों पर केंद्रित ऑनलाइन चर्चा अभियान है, जिसने उल्लेखनीय गति प्राप्त की है। कुल ग्यारह ऐतिहासिक सत्रों के साथ, ये चर्चाएँ संविधान सभा द्वारा आयोजित महत्वपूर्ण संवादों पर प्रकाश डालती हैं। अब तक छह सत्रों की विस्तृत समीक्षा की जा चुकी है, जिससे YouTube पर लाखों दर्शक आकर्षित हुए हैं। सातवां सत्र 4 नवंबर से 8 जनवरी 2024 तक आयोजित किया जा रहा है।
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