भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आजाद ने दी चिता को मुखाग्नि, कहा- 'अभी दो मांगों की नहीं हुई पूर्ति', सरकार को दिया सात दिन का अल्टीमेटम
जयपुर। राजस्थान के अजमेर जिले के रूपनगढ़ सीएचसी में चार दिन से न्याय की उम्मीद में रखे ओमप्रकाश रैगर के शव का शुक्रवार दोपहर बाद जिला प्रशासन द्वारा तीन मांगे मानने के बाद अंतिम संस्कार कर दिया गया। भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आजाद ने चिता को मुखाग्नि दी। भावुक हुए चंद्रशेखर आजाद ने पीड़ित परिवार से कहा कि चाहे सब कुछ बिक जाए, लेकिन समझौता मत करना। यही न्याय व इंसाफ होगा।
तीन दिन से भीम आर्मी चीफ के नेतृत्व में चल रहा था धरना
अजमेर जिले के रूपनगढ़ थाना इलाके के नोसल निवासी ओमप्रकाश रैगर ने गत 1 नवम्बर को अपने मकान के कमरे में फांसी का फंदा लगा कर जीवनलीला समाप्त कर ली थी। आत्महत्या से पूर्व ओमप्रकाश ने 3 पन्ने का सुसाइड नोट लिखा था। नोट में तीन स्थानीय लोगों सहित एक पूर्व जनप्रतिनिधि व दो पुलिस अधिकारियों के नाम लिखते हुए उन पर प्रताड़ित करने के आरोप लगाने के साथ ही अंतिम पंक्तियों में लिखा कि मेरी एक लास्ट इच्छा है। भीम आर्मी के संस्थापक से कि मेरे साथ जो हुआ उसका न्याय दिलाए। चन्द्रशेखर आजाद बीती बुधवार रात को ही रूपनगढ़ पहुंच गए। जहां अस्पताल की मोर्चरी में शव रख कर बहुजन समाज के साथ पीड़ित परिवार के न्याय की लड़ाई लड़ रहे थे। इस दौरान पुलिस प्रशासन के अधिकारियों ने प्रदर्शनकारियों से समझाइश कर शव का अंतिम संस्कार करने की बात कही, लेकिन बहुजन समाज आरोपी व दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर गिरफ्तार करने, मृतक के परिवार में एक सरकारी नौकरी सुनिश्चित करने, मृतक आश्रित परिवार को आर्थिक सहायता राशि 50 लाख रुपए तत्काल स्वीकृत करने, मेडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम करवाने व निष्पक्ष जांच एंजेसी से पूरे घटनाक्रम की जांच करवाने की मांग पर अड़े थे।
तीन मांगे मानी, दो पर लेंगे मुख्यमंत्री फैसला
ओमप्रकाश के अंतिम संस्कार के बाद नोसल गांव में भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आजाद ने मीडिया से कहा कि यहां की सरकार बड़ी निकम्मी व निर्दयी है। देश में इतनी बड़ी घटना हुई। लोगों में दुख के साथ आक्रोश भी है, लेकिन सरकार ने पीड़ित परिवार की सुध तक नहीं ली। उन्होंने कहा कि, "हमारी पहली मांग थी कि आरोपियों के साथ पुलिसकर्मियों व पूर्व सरपंच को आरोपी बना कर गिरफ्तार किया जाए। दूसरी मेडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम कराने व तीसरी मांग एसएचओ को मुकदमें में नामित कर थाने से हटाने की मांग थी। तीनों मांग मनाली गई हैं। इनके अलावा हमारी सरकारी नौकरी व आर्थिक मुआवजे की मांग थी। यह दोनों मांगों को यहां के डीएम ने सीएम को भेजा है। इन मांगों पर अंतिम निर्णय मुख्यमंत्री को लेना है। हम तीन दिन की जगह 30 दिन भी बैठे रहते।"
"पुलिस प्रशासन ने हमसे सहयोग मांगते हुए कहा कि हमें एक सप्ताह का समय दिया जाए। 7 दिन में आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा। हमने उन्हें 9 दिन का समय दिया है। हमारा समाज कमजोर नहीं है। सरकार सबकी होती है। सरकार में सबकी हिस्सेदारी होती है। हमें मुख्यमंत्री से उम्मीद है कि वह रैगर समाज के सम्मान के साथ खिलवाड़ नहीं करेंगे। सभी मांगों को मानेंगे। अगर नहीं मानते हैं तो समाज सक्षम है। अपनी तरफ से मदद करके परिवार को हाथ पकड़ कर खड़ा रख सकता है।" भीम आर्मी चीफ ने कहा।
हमें 9 दिन का समय दिया, 10 दिन बाद घेराव
भीम आर्मी चीफ ने कहा कि उन्होंने 7 दिन का समय मांगा है। "हमने 9 दिन का समय दिया है। हमारी मांगें नहीं मानी गईं तो 10 दिन बाद पूरे दलित बहुजन समाज के लोग मुख्यमंत्री का घेराव करेंगे। वहीं आमने सामने बात करेंगे। जब कन्हैया लाल के परिवार को दौ नौकरी व 50 लाख का मुआवजा मिल सकता है। तो इस परिवार को क्यों नही? जिस समाज की महासभा की बैठक में सीएम बड़े-बड़े दावे कर रहे थे। इस समाज के हक अधिकार की बात आई तो क्यों मरने के लिए छोड़ दिया गया। इन सबके जवाब मुख्यमंत्री व सरकार को देना होगा। यदि सरकार अपनी तरफ से पहल करती तो आज हालात अच्छे होते। परिवार के लोग पार्थिव शरीर को देख भी नहीं पाए। क्योंकि हालात बहुत बुरे थे। इसकी जिम्मेदार सरकार है। सरकार हादसे से पहले ही सुध लेती तो शायद परिवार व समाज भी मृतक के अंतिम दर्शन कर पाते। दुख इस बात का है कि यहां एक निकम्मी व निर्दयी सरकार है। इसका खमियाजा इस समाज व सभी कमजोर वर्ग को उठाना पड़ रहा है।" उन्होंने कहा।
यह है पूरा मामला
दलित परिवार के साथ अत्याचार की खबर सुनकर अजमेर के रूपनगढ़ धरना स्थल पर पहुंचे आजाद समाज पार्टी के जिलाध्यक्ष अतहर ने द मूकनायक को बताया कि, "24 अक्टूबर को आरोपी ओमप्रकाश के खेत में मवेशी घुसा कर फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। विरोध करने पर आरोपी पिता को पीटते हैं। पीड़ित थाने में रिपोर्ट देने जाते हैं तो पुलिस पहले तो मुकदमा दर्ज करने से ही मना कर देती है। न्यायालय की दुहाई देने पर दूसरे दिन मुकदमा दर्ज किया जाता है। पुलिस एक पूर्व सरपंच के दबाव में पीड़ित परिवार पर झूठा मुकदमा दर्ज कर प्रताड़ित करती है। मृतक ने पुलिस से न्याय की गुहार लगाई, लेकिन आरोपियों को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त होने से उल्टे पीड़ित परिवार को ही पुलिस धमकाती रही। पुलिस की मनमानी से आहत होकर न्याय की उम्मीद छोड़ चुके ओमप्रकाश ने सुसाइड नोट लिख कर पहले तो सरकारी सिस्टम की सच्चाई बताई। इसके बाद आत्महत्या कर ली।"
मृतक के पिता ने एक रिपोर्ट रूपनगढ़ थाने में देकर आरोप लगाया कि, आत्महत्या मेरे पुत्र ने किशनाराम, कानाराम, नन्दाराम, पूर्व सरपंच रणजीत सिंह व पुलिस प्रशासन के दबाव में आकर की है। इस पर पुलिस ने किशनाराम, कानाराम, नन्दाराम, पूर्व सरपंच रणजीत सिंह के खिलाफ धारा 306, 120बी, 34 आईपीसी तथा अनुसूचित जाति/ जनजाति अधिनियम के तहत 240 नम्बर मुकदमा दर्ज कर लिया, लेकिन एसएचओ अय्यूब खान व सीओ किशनगढ़ लोकेंद्र दादरवाल को नामजद नहीं किया। धरना-प्रदर्शन के बाद ही पुलिस ने दोनों पुलिस अधिकारियों के नाम मुकदमे में जोड़ते हुए एसएचओ को थाने से कार्य मुक्त किया।
पुलिस अधिकारी क्या बोले!
मामले की जांच कर रहे सीओ सिटी किशनगढ़ मनीष शर्मा ने द मूकनायक को बताया कि, "रूपनगढ़ एसएचओ अयूब खान को थाने से हटा दिया गया है। आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप में दर्ज मुकदमे में नाम शामिल करते हुए जांच चल रही है। धरना प्रदर्शन खत्म हो गया। पोस्टमार्टम के बाद शव परिजनों को सौंप दिया गया है। सीओ लोकेंद्र दादरवाल के मामले में अभी कुछ नही कह सकता। इस पर उच्च अधिकारी निर्णय करेंगे। जांच चल रही है। जांच के बाद आरोपियों को गिरफ्तार भी किया जाएगा।"
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