ग्राउंड रिपोर्टः लंपी रोग की भेंट चढ़ा पशु ’धन’, पशुपालकों के सामने आजीविका का संकट

लंपी रोग पशुओं के लिए बनी चुनौती
लंपी रोग पशुओं के लिए बनी चुनौती
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सरकारी आंकड़ों के अनुसार 14 हजार 45 पशुओं की मौत, 3 लाख 10 हजार 460 पशु संक्रमित। जबकि, वास्तविक आंकड़े कहीं ज्यादा

रिपोर्ट- लालू सिंह सोढा

जैसलमेर। राजस्थान के जैसलमेर जिले के पारेवर गांव के रहने वाले मदन सिंह की गवाड़ी (गाय के रहने का स्थान) कभी 20 गाय व 7 बछड़ों से आबाद रहती थी, लेकिन समय के फेर में सब नष्ट हो गया। लंपी रोग से 18 गायों की मौत हो गई। अब बिन मां के बछड़े बचे हैं। वहीं दूध बेचकर होने वाली आमदनी का जरिया भी खत्म हो गया है। परेवर गांव के पास की ही काठोड़ी ग्राम पंचायत के निवासी नेमसिंह का भी यही हाल है। उनकी गावड़ी में भी 26 गाए 10 बछड़े थे। लंपी रोग से 15 गायों की मौत हो गई है। वहीं बाकी गायों को संक्रमण है, जिनका इलाज चल रहा है। अचानक पशुओं की मौत से नेमसिंह की भी आर्थिक स्थिति डांवाडोल हो गई है।

मदन सिंह ने कहा, "मैं आजीविका की पूर्ति के लिए गायों के दूध पर निर्भर था, जिसके साथ थोड़ी बहुत खेती भी करता था। अब मुझे अपना सारा ध्यान खेती पर लगाना पड़ेगा, क्योंकि दूध बेचकर अब आजीविका नहीं की जा सकती। जो एक दो गाय बची है, उनसे तो सिर्फ बच्चे का ही मुंह मीठा होता है।" उन्होंने आगे कहा कि, सरकार को पशुपालकों को मुआवजा देना चाहिए।

जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष रविंद्रसिंह भाटी अपनी टीम के साथ इन दिनों पशुओं में फैली इस बीमारी के लिए घर-घर जाकर टीकाकरण कर रहे हैं। उनकी टीमें जैसलमेर के शिव विधानसभा के लगभग हर गांव तक हर संभव मदद कर रही हैं। द मूकनायक से उन्होंने बताया, "स्थिति गंभीर है। कुछ जगह हमारी टीम को बछड़े बेबस होकर मौत का इंतजार करते दिखे और कुछ जगह गायों के लाशों के ढेर देखने को मिले। अब समय आ गया है एक साथ मिलकर इस लंपी नामक बीमारी से लड़ने और गोवंश को बचाने का। सब कुछ सरकारों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता।"

मारवाड़ के लगभग चौदह जिले पिछले पांच सप्ताह से लंपी रोग नमक एक बीमारी से जूझ रहे हैं। लंपी एक संक्रामक बीमारी है। मुख्यतः पशुओं में ही पाई जाने वाली यह बीमारी संक्रमण से एक पशु से दूसरे पशु में स्थानांतरित हो जाती है, जिसमें गाय भैंस या बैल के शरीर पर गांठें होने लगती हैं। ये गांठें मुख्य रूप से पशुओं के जननांगों, सिर, और गर्दन पर होती हैं। उसके बाद वो पूरे शरीर में फैलती हैं। फिर धीरे-धीरे ये गांठें बड़ी होने लगती हैं। वक्त के साथ ये गांठें घाव का रूप ले लेती हैं। इस पीड़ा से ज्यादातर पशुओं को बुखार आने लगता है। दूधारू पशु दूध देना बंद कर देते हैं। कई गायों का इस पीड़ा से गर्भपात भी हो जाता है और मौत भी हो जाती है।

लगातार हो रही पशुओं की मौत

राज्य पशुपालन विभाग ने जो आंकड़े जारी किए है उसके अनुसार, अब तक 14045 पशुओं की मौत हुई है, जिसमें गोवंश सबसे ज्यादा है। इसी प्रकार 310460 पशु बीमारी से संक्रमित हैं। वन्यजीवों में भी बीमारी का संक्रमण देखा गया है, लेकिन उनकी संख्या बहुत कम है। लंपी रोग से सर्वाधिक गोवंश की मौत श्री गंगानगर 2752, बारमेर 1657, जोधपुर 1691 व नागौर में 1280 हुई है। हालांकि बांसवारा, राजसमंद, प्रतापगढ़, डुंगरपुर में एक भी पशु की मौत रिपोर्ट नहीं की गई है।

पशुपालकों में दहशत

फिलहाल यह बीमारी राजस्थान के जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर, जालौर, सिरोही, पाली, बीकानेर, चूरू, श्री गंगानगर, हनुमानगढ़, अजमेर, नागौर, जयपुर, सीकर, झुंझुनूं, उदयपुर में फैल गई है। इसका सबसे अधिक प्रभाव जोधपुर और बीकानेर संभाग में देखने को मिल रहा है। वहीं उदयपुर और अजमेर संभाग भी अछूते नहीं है। लगातार बढ़ रहे संक्रमण से पशुपालक दहशत में हैं।

सरकारी प्रयासों की एक बानगी

रोग प्रभावित क्षेत्रों का जायजा लेने जयपुर पहुंचे केंद्रीय पशुपालन मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला ने शनिवार को विभाग को निर्देश दिया कि संक्रमित पशुओं को आइसोलेशन में रखा जाए और प्रभावित गायों का दूध पीने से लोगों को सावधान किया जाए। रूपाला ने मीडिया से कहा, "हम प्रभावी रूप से टीकाकरण को प्रोत्साहित कर रहे है। केंद्र और राज्य सरकार अपने स्तर पर हर संभव प्रयास कर रही हैं ताकि राजस्थान सहित अन्य राज्यो में भी इससे निजात मिले।"

"राज्य सरकार बेहद गंभीरता के साथ काम कर रही है। पिछले पंद्रह दिनों में कई टीमें प्रभावित क्षेत्र में पहुंची हैं। दवाइयां व अन्य संसाधन भी उपलब्ध करवा रहे हैं। गोवंश को बचाने का हर प्रयास किया जा रहा है," राजस्थान गौ सेवा संघ के अध्यक्ष और बाड़मेर विधायक मेवाराम जैन ने द मूकनायक को बताया।

इन सबके बीच राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के ओएसडी लोकेश शर्मा ने ट्वीट करके जानकारी दी कि लम्पी स्किन रोग प्रभावित जिलों में आवश्यक अस्थाई आधार पर 500 पदों पर भर्ती को मंजूरी दी गई है। मुख्यमंत्री ने भर्ती प्रक्रिया शीघ्र पूर्ण किए जाने के निर्देश दिए हैं। 200 पशु चिकित्साधिकारी, 300 पशुधन सहायक की भर्ती होगी।

लंपी से आखिर कैसे बचा जाए?

सबसे पहले लक्षण दिखते ही बीमार पशु को आइसोलेटे कर दिया जाए। वहीं पशु के खाने-पीने की व्यवस्था अलग करनी चाहिए। कीटनाशकों का स्प्रे किया जाए, जिससे मच्छर, मक्खियां पशु को काट नहीं पाएं। बेहतर इम्यूनिटी के लिए पशु को उचित मात्रा में आहार दिया जाए। इसके अलावा पशु चिकित्सक से सलाह लेकर ब्रोड स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक और एक कैल्शियम का इंजेक्शन दिलाने से भी काफी हद तक निजात मिल सकता है।

पशुधन अस्मिता का प्रतीक

राजस्थान के लोक जीवन में ऐसी अनेक धारणाएं है जब लोक देवताओं ने गाय के रक्षार्थ खुद को समर्पित किया। मारवाड़ के इलाके में तो गाय परिवार का पर्याय ही बन गई है। गाय के रहने के स्थान को गवाडी कहते है और मारवाड़ में परिवार का तात्पर्य भी गवाड़ी ही है। जन सामान्य में भी प्रचलित है गवाड़ी टूट गई। गवाड़ी ठीक नहीं या गवाड़ी बहुत बढि़या है। इस तरह से मारवाड़ के लिए यह विषय संवेदना का अधिक है। यहां पशुधन अस्मिता व समृद्धि का प्रतीक है।

लंपी रोग का इतिहास

लंपी स्किन बीमारी पहली बार 1929 में अफ्रीका में रिपोर्ट हुई। साल 2015 में ग्रीस और तुर्की, साल 2016 में रूस और साल 2019 में अफगानिस्तान और चीन को इस बीमारी ने जकड़ लिया। साल 2019 में ही यह भारत भी पहुंची। जून 2020 तक ये बीमारी नेपाल जुलाई 2020 में ताइवान और भूटान, साल 2020 के अक्टूबर में ही वियतनाम में कोहराम मचाया। साल 2021 की जनवरी में यह दक्षिण भारत के कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्यों में भी देखी गई। विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन ने इस बीमारी को एक विशेष बीमारी का दर्जा दिया है। जिसके अनुसार इस पशु बीमारी की सूचना तुरंत ही संगठन को दी जाए ताकि उचित प्रयास समय पर किए जा सकें।

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