मनुस्मृति, केवल क़ानून के कॉलेजों में पढ़ाने की तैयारी नहीं हो रही। मनुस्मृति को आधार बनाकर ही नया समाज तैयार किया जा रहा है। पुलिस और प्रशासन के दिमाग में मनुस्मृति को ठूंसना ज़रूरी काम है। संविधान को सीधी चुनौती ऐसे ही दी जाएगी। पहले हिंदू-मुसलमान में सारी शक्ति झोंकी गई।अब फिर से दलितों, मुसलमानों, पिछड़ों को अलग-थलग करने की ‘तैयारी’ है।
RSS और BJP ने समझ लिया है-लोगों के दिमाग़ में नफ़रत वैसी बैठी नहीं, जैसी बैठनी चाहिए थी। इसलिए, आरिफ़ को घोषित करना होगा कि फल उसके हैं। इन्द्र को घोषित करना होगा-फल उसके हैं। इससे समाज में खुल कर सांप्रदायिकता को बढ़ावा मिले। गोदी मीडिया उसको जमकर हवा दे सके। 24 घंटा, हिन्दू मुस्लिम हिन्दू मुस्लिम कर सके।
हिन्दुओं को धीरे-धीरे इस बात के लिए समझा लिया जाएगा कि आरिफ़ से फल ख़रीदना पाप है। मनुस्मृति बताएगी दलित से फल ख़रीदना महापाप है। सारा फल ‘बैल’ बुद्धि के व्यापारी से ही ख़रीदना होगा। मनुस्मृति इसके लिए ही लाई जा रही है। 1925 से यही कोशिश बार-बार हो रही है। ब्राह्मणों की संस्था RSS हमेशा से दलित, मुसलमान और स्त्री विरोधी रही है। आपको यक़ीन नहीं हो तो पांचजन्य से लेकर कल्याण और अखंड ज्योति तक पढ़ लीजिएगा। अगर आपके पास न हो तो मुझसे माँग लीजियेगा।
अगर आपकी बहन,पत्नी,बेटी है तो आप कभी भी मनुस्मृति के समर्थक नहीं हो सकते। मनुस्मृति पूरी तरह से स्त्री अधिकार विरोधी पाखंड का संग्रह है। मनुस्मृति स्त्रियों के अधिकार माँगने पर उनको चरित्रहीन कहते हुए हर प्रकार के दंड का अधिकारी मानती है। पुरुषों को स्त्रियों पर हर प्रकार के अत्याचार का हक़ देती है। इसलिए, आप BJP के वोटर तो हो सकते हैं, लेकिन 2024 में मनुस्मृति के समर्थक कैसे होंगे?
हम भूल रहे हैं, भले देश के बड़े हिस्से ने BJP को 240 पर लाकर रोक दिया है। इसके बावजूद सत्ता की चाभी RSS और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास है। वही, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिन्होंने 2024 के चुनाव में संवैधानिक मर्यादा, शपथ को तार-तार कर दिया था। मोदी के नेतृत्व में लड़े जा रहे चुनाव में घर-घर तक संविधान बदलने का नारा बुलंद किया गया। सारी कोशिशों के बावजूद सच्चाई यही है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही बने।
मोदी और संघ जानते हैं-महाराष्ट्र,हरियाणा झारखंड, दिल्ली और उसके बाद बिहार में उनके पास गिनाने के लिए कोई मुद्दा नहीं है। बिहार में तो सारा विकास नदी में बह रहा है। रेल रोज़ पटरियों से उतर रही है। उत्तराखण्ड में पर्यावरण और वनों का नाश ऐसे किया गया कि पहाड़ मनुष्य पर आपदा बनकर टूट रहे हैं। आम आदमी को सरकार ने उसकी मुश्किलों में लपेटकर उसके सोचने समझने की शक्ति को घर बचाने में लगा दिया है।
सारी लड़ाई विपक्ष और गोदी मीडिया से बाहर चुनिंदा पत्रकारों, लेखकों,कवियों को मिलकर लड़नी है, क्योंकि मीडिया का निधन हो चुका है। गोदी मीडिया उम्मीद करना लोकतंत्र को धोखे में रखना है। समाज को अयोध्या की जनता के दिखाए रास्ते पर चलना है। एक दूसरे का हाथ कसकर पकड़ लीजिए। जब तक यह सरकार है,आपका इम्तिहान हर दिन लिया जाएगा। आपको क्या करना है आप देख लो। लेकिन मैं तो आरिफ़ से ही फल लूँगा।
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