लेखा- डॉ.गुलाब चन्द जिन्दल 'मेघ', अजमेर, राजस्थान
19वीं शताब्दी में विश्व के अनेक भिक्षुओं को ऐसा लगा कि बुद्ध धर्म का जैसा चिह्न सम्राट अशोक ने (चौबीस तीलियों का चक्र सारनाथ के सिंह स्तम्भ पर) प्रस्थापित किया, वैसा ही झंडे के रूप में एक ध्वज (धम्म पताका) होनी चाहिए।
धर्म सभा में अनेक मत और विचार सामने आए। अंत में श्रीलंका की धर्म सभा में 1880 ई० में आर.डी. सिन्हा द्वारा तैयार किया हुआ धम्म ध्वज विश्व स्तर पर 8 जनवरी,1891 में सर्वसहमति से स्वीकार किया गया।
1888 ई० में धम्म ध्वज में बदलाव करके आगे यह रंग जोड़े गए। उनका क्रम बाएं से दाहिने की ओर रखा गया।
यह क्रम नीला, पीला, लाल, सफेद और काषाय रंग है। इन पाँच अलग रंग के अलावा बीच में चौबीस तीलियों का अशोक चक्र है, लेकिन इस समय कई धम्म ध्वज पर चक्र नहीं दिखाई देता।
इस ध्वज के आगे पाँच रंग के टुकड़े (स्लिप्ट) और जोड़े गए हैं, इसका क्रम ऊपर से नीचे की ओर नीला, पीला, लाल, सफेद और कषाय है।
यह रंग आगे इसलिए लगाए गए क्यूंकि यह रंग भगवान बुद्ध की विभिन्न शरीर धातुओं को धम्म रश्मियों के प्रतीक समझे जाते हैं। क्या कहते है ध्वज के रंग?
यह रंग विशालता, दूरदृष्टि और अनन्त का प्रतीक माना जाता है। बुद्ध का धर्म विशाल दूर दृष्टि और सागर की तरह अनन्त है। जिसके अन्दर सब कुछ समा लेने की क्षमता है। कोई भी आये और देखे। जो आदि (प्रथम), मध्य और अन्त में भी गुणकारक है, मानवता का कल्याण करने वाला है। धर्म में यह त्याग के बाद ही विशाल बनाता है, इसलिए पंचरंगी ध्वज में यह रंग सम्मिलित किया गया।
यह रंग समृद्धि का प्रतीक माना जाता हैं। बड़े-बड़े राजा-महाराजाओं ने, सम्राटों ने अपना मस्तक (सर) इस धर्म के आगे झुकाया और वे इस धर्म की शरण में गए।
उनको यह धर्म सोना, चाँदी, हीरे, मोतियों से भी बहुत सुन्दर (प्रिय) लगा। सोने का रंग पीला है। सोने जैसा मूल्य (कीमत) देने वाला जीवन समृद्ध और सुखमय बनाने वाला धर्म-प्रकाश, मनुष्य के लिए अन्तिम समय तक उपयुक्त है। भिक्षुओं का पीला वस्त्र यह ज्ञान समृद्धि, वैराग्य, विरक्तता, शुद्धता दर्शक है। इसलिए पंचरंगी ध्वज में यह रंग सम्मिलित किया गया।
यह रंग अग्नि का प्रतीक माना जाता है। धर्म में प्रविष्ट होना है तो धर्म को ठीक तरह से समझ लेना होगा, तो अग्नि के समक्ष जाना पड़ेगा।
अपने अन्दर के राग, द्वेष, लोभ, मोह, काम, मत्सर इन षड् (छह) विकारों की बली अग्नि में देनी चाहिए। तभी उस व्यक्ति को धर्म में प्रवेश मिलेगा।
कोई भी व्यक्ति सभी दुर्गुणों को जलाने के बाद ही सद्गुण ग्रहण कर सकता है। दुर्गुण जलाने की पहचान वाला यह लाल रंग पंचरंगी ध्वज में लिया है। लाल हुआ लोहा जैस योग्य आकार लेता है। वैसे ही सभी मलों से रहित हुआ व्यक्ति ही धर्म सेवन कर सकता है।
यह रंग पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। शुद्धता, निर्मलता और पवित्रता इनका प्रतीक सफेद रंग है। अगर बुद्ध धर्म की शरण में जाकर उसका आचरण करना है तो उस व्यक्ति को शुद्ध दुष्कृत्य (पाप) रहित मनुष्य जैसा ही आचरण रखना चाहिए। इसके लिए उसे धर्म की आवश्यकता है।
उसे अपना जीवन शुद्ध और मंगलमयी बनाने की प्रेरणा यह रंग देता है। इसलिए यह रंग पंचरंगी ध्वज में सम्मिलित किया गया।
(यह रंग केसरिया नहीं है)
यह रंग वैराग्य, विरक्तता, त्याग , सेवा का प्रतीक माना जाता है।प्रत्येक व्यक्ति को धर्म के लिए, समाज के लिए त्याग करने की भावना यह रंग देता है। जिस प्रकार से भिक्षु विरक्त होते हैं। उनका यह महान त्याग है। उपासकों को भी त्याग, सेवा का थोड़ा-थोड़ा लाभ उठाना चाहिए। इसमें से ही धर्म-क्रान्ति होती है।
इसके लिए धर्म देसना (उपदेश), लेन-देन से धर्म के लिए पुत्र दान, धर्म, धन, ज्ञान, भोजन, वस्त्र, आवास, धम्म विहार दान ऐसे अनेक दानों के लिए तैयार होने की प्रेरणा यह रंग उपासकों को देता है। इसलिए यह रंग पंचरंगी धम्म ध्वज में सम्मिलित किया गया है।
ध्वजारोहण करते समय अक्सर त्रिशरण पंचशील की उच्चारण किया जाता है; किन्तु यह ठीक नहीं है। ध्वज फहराते समय निम्न गाथाएँ कहनी चाहिए:-
वजिर संघात कायस्स अंगोरसस्स तादिनो।
केसमस्सहि अक्खीनं नील टठानेहि रंसियो। नोलवण्णानिच्छरन्ति अनन्तकास भूदके ।। 1।॥
वजिर संघात कायस्स, अंगीरसस्स तादिनो।
छवितोचव अक्खीनं, पीत टठानेहि रंसियो।
पीतवण्णा निच्छरन्ति अनन्तकास भूदके ॥2॥
वजिर संघात कायस्स, अंगीरसस्स तादिनो।
मंस लोहित अक्खीनं, पीत टठानेहि रंसियो।
पीतवण्णा निच्छरन्ति, अनन्ताकास भूदके ।।3॥
वजिर संघात कायस्स, अंगोरसस्स तादिनो।
अटिठ दन्तेहि अक्खीनं, सेत टठानेहि रंसियो।
शेतवण्णा निच्छरन्ति, अनन्ताकास भूदक ।।4॥
वजिर संघात कायस्स, अंगोरसस्स तादिनो।
तेसं-तेसं सरीरानं, नाना टठानेहि रंसियो।
मज्जिटठका निच्छरन्ति अनन्ताकास भूदक ॥5॥
वजिर संघात कायस्स अंगीरसस्स तादिनो।
तेसं-तेसं सरीरानं, नानाटठानेहि रंसियो ।
पभस्सरा निच्छरन्ति, अनन्ताकास भूदके ॥ 6॥
वजिर संघात कायस्स अंगीरसस्स तादिनों।
एवं सब्बण रंसिहि, निचछरन्तं विसो-दिसं।
अनन्त अधो उद्धञ्च, अमतं व मनोहर ।
कायेन वाचा चित्तेन, अंगीरसस्स नमाम्यहं ॥7॥
वज्र के समान अभेद्य देह धारण करने वाले भगवान् बुद्ध के सिर, दाड़ी, केश और आँखों के नील स्थानों से प्रभावित होने वाला नीला रंग, समुद्र, धरती और आकाश में व्यापित हो रहा है ॥2॥
वज्र के समान अभेद्य देह धारण करने वाले भगवान् बुद्ध के पीले रंग के त्वचा से और आँखों के पीले स्थानों से प्रभावित होने वाला पीला रंग समुद्र, धरती और आकाश में व्यापित हो रहा है ॥3॥
वज्र के समान अभेद्य देह धारण करने वाले भगवान् बुद्ध के पास में आँखों में जो रक्त स्थानों से प्रभावित होने वाले लाल रंग, समुद्र, धरती और आकाश में व्यापित हो रहा है ।।3॥
वज्र के समान अभेद्य देह धारण करने वाले भगवान बुद्ध के दाँत से, अस्थियों से और आंखों में जो सफेद स्थानों से प्रभावित होने वाले शुभ्र रंग समुद्र, भूमि और आकाश में व्यापित हो रहा है ॥5॥
वज्र के समान अभेद्य देह धारण करने वाले भगवान् बुद्ध के अलग-अलग अवयवों से प्रभावित होने वाले मजिढढा या बादामी रंग, समुद्र, भूमि और आकाश में व्यापित हो रहा है ।।5।।
वज्र के समान अभेद्य देह धारण करने वाले भगवान् बुद्ध के सभी अंगों से ऊपर कहे पाँच रंगों के सम्मिश्रण से उत्पन्न प्रखर के तेजस्वीपन के प्रभाव से समुद्र, धरती और आकाश व्यापित हो रहा है ।6 ।
वज्र के समान अभेद और ऊपर के रंगों से परिपूर्ण हुआ अनन्त में, और दस दिशाओं से अमृत के समान सन्तोष देने वाला, भगवान बुद्ध के धम्म ध्वज को मैं मन, वाणी और शरीर से वन्दना करता हूँ॥7॥
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