अपने ईश्वर आप संभालें!

अपने ईश्वर आप संभालें!
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लेख- हेमलता महिश्वर

चुनाव आने वाले हैं। दलितों ने शिक्षा भी प्राप्त की है। बहुधा ने शिक्षा से रोटी और थोड़ा सम्मान तो कमाया पर हिम्मत नहीं कमाई। बावजूद इसके हिंदुत्व के खिलाफ बोलने वाले दलित चिंतक हैं और पूरे संदर्भ के साथ तार्किक तौर पर लिख रहे हैं। बोल रहे हैं।
संघ यह कैसे बर्दाश्त कर सकता है कि उसकी गाढ़ी मेहनत के बाद भी दलित, आदिवासी, पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक और साथ ही साथ कुछ मार्क्सवादी भी डॉ. आंबेडकर से थोड़ी या बहुत सहमति जताते उनके ज्ञान भंडार से सामग्री लेकर प्रबोधन का कार्य कर रहे हैं और संघ की मिट्टी ढीली कर रहे हैं।

इसी कड़ी में चुनाव के मद्देनजर अब ऐसे वक्तव्य आ रहे हैं कि डॉ. आंबेडकर के हवाले से बात करने वाले विद्वत समाज के मन में कुछ पेंच डाले जाएँ ताकि ऐसी बातों से उनके श्रोताओं में कोई संदेह पैदा किया जा सके।

पर मैडम चाहे शिव कोई भी हों, हमने तो डॉ. आंबेडकर की पहली प्रतिज्ञा के अनुसार 'ब्रह्मा, विष्णु व महेश' और उनके अवतारों को अपने जीवन से निकाल फेंका है। न हमें जाति चाहिए और न ही धर्म। अपने ईश्वर आप ही संभालें और आप ही तय करें कि उन्हें कौन सी जाति या धर्म में रखना है। भारत में ही रखना है या उनका भूमंडलीकरण करना है। हमें न ईश्वर चाहिए न उस पर कोई चर्चा।

मतलब आप दलित होतीं तो चूँकि प्रिविलेज्ड कास्ट में जन्म लिया है तो सुविधा तो भर-भरकर मिली हुई है, सम्मान भी। आप समझ तो रही हैं कि दलित बहुत ही अपमानजनक और सुविधाहीन जीवन बीता रहा है। देखना यह होगा कि अब आप संविधानानुसार आचरण क्या करती हैं।

हम किसी भी धार्मिक बंधन से परे भारतीय संविधान में संपूर्ण मनुष्यता को देखते हैं और जी रहे हैं। कोई शक?

(हेमलता महिश्वर दिल्ली स्थित जामिया मिल्लिया इस्लामिया की प्रोफ़ेसर एवं हिन्दी विभाग की पूर्व अध्यक्ष हैं। उनकी कहानी जैन विश्वविद्यालय, बैंगलोर और इटली के पाठ्यक्रम का हिस्सा रहीं। कुछ कहानी, कविताओं और लेखों का मराठी, पंजाबी, अंग्रेज़ी में अनुवाद हुआ। उनकी आलोचना और कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। उन्होंने कई पुस्तकों का संपादन किया है। वे सोशल एक्टिविस्ट भी हैं। और समय समय पर विभिन्न मुद्दों पर खासतौर से दलित आदिवासी और स्त्री मुद्दों पर अपनी गंभीर टिप्पणियां  दर्ज करती रहती हैं।)

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