किसी भी शख्श के व्यक्तित्व में उसकी माँ का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान होता है। माँ त्याग और तपस्या की प्रतिमूर्ति होती है। वो हमारे जीवन की सबसे पहली और सबसे प्यारी शिक्षिका होती है। वो हमारे अंधकारमय जीवन में रौशनी भर देती है। माँ का अपने संतान के प्रति अपार स्नेह होता है। वह अपने संतान के लिए अपना सर्वस्व त्याग देती है। वह संसार के समस्त कष्ट को सहकर भी अपने बच्चों को नौ महीने तक अपने गर्भ में रखती है और उसे जन्म देती है। वो अपने व्यक्तिगत ज़िंदगी की महत्ता को भूलकर अपने सन्तान का पालन पोषण कर उसे बड़ा करती है। हमारी अपनी संस्कृति में माँ को ईश्वर से भी ऊपर का दर्जा दिया गया है। वह जगजननी है। माँ के बिना हम अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते है। सन्तान का भी अपनी माँ के प्रति विशेष लगाव होता है। जिसके पास माँ होती है वो संसार का सबसे सुखी शख्स होता है। पर माँ से बिछड़ने पर सन्तान बहुत दुखी हो जाता है। आइये मेरी एक कविता के माध्यम से हम एक बच्चे के लिए उसकी माँ की महत्ता को हम समझने का प्रयास करते हैं।
चलती रही निर्भीक तुम,
कभी किसी से डरी नहीं ,
चलती रही धरती की तरह,
कभी तुम माँ थकी नहीं,
रही जीवन भर बेबाक
कभी मां तुम झुकी नहीं,
कर लुंगी सब ये,
हौसला हमेशा बुलंद रहा,
होता क्या हैं असंभव,
ये तुम्हें नापसंद रहा,
ऐसे माँ के हम बच्चे हैं,
जिन्हें तुमने प्रेम रिश्तों का मतलब समझाया,
लोगों ने तुम्हारी सरलता को बहुत कमजोर बताया,
हम ऐसी मां के कदमों में शीश झुकाते हैं,
तुम हमें मिलना फिर से माँ मेरी बन के,
बस यही दुआ करते हैं।
द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.