जेरूसलम में 7 अक्टूबर की सुबह मैं एक साइरन की आवाज़ से उठता हूँ। हालाँकि मैंने ये साइरन पहले नहीं सुना, लेकिन मैं उसका मतलब जानता हूँ। मैं और मेरे साथी अपने घर से निकल कर बम शेल्टर की ओर भागते हैं। शेल्टर का रास्ता बताने वाले साइन मैंने घर के पास देखे ज़रूर थे, पर शेल्टर कहाँ है और कैसा दिखता है ये पता नहीं था। ये साइन इज़राइल में जगह-जगह हैं; इन्हें पहली बार देख कर मैं अचंभित था, कि यहाँ तो युद्ध का साज़-ओ-समान रोज़मर्रा की बात है। जैसे निकास या बाथरूम के साइन होते हैं, वैसे ही बम शेल्टर का साइन। क्या कोई इस बारे में बात कर रहा है कि हर जगह बम शेल्टर की ज़रूरत नहीं होने के लिए क्या करना होगा?
यहाँ रहने के कुछ महीनों बाद मैंने बम शेल्टरों पर ध्यान देना छोड़ दिया था, कई और चीजों की तरह ये भी आम बात हो गयी थी. बड़ी-बड़ी बंदूकें लिए मॉल में सपरिवार टहलते इज़राइली। बड़े बैग के साथ सेना की वर्दी में ट्रेनिंग को जाते बस में बैठे नौजवान। सड़कों पर खड़ी सैनिक क्षमता वाली पुलिस की गाड़ियाँ, उनके साइरन सतत जलते और बजते हुए। हर सामाजिक स्थल पर लगे निगरानी के कैमरे।
बम शेल्टर पर ताला लगा है, और हमारे अलावा किसी और ने साइरन सुन कर बाहर निकलने की परवाह नहीं की। अब साइरन बंद हो चुका है, आसमान भी साफ़ है, किसी रोकेट का धुआँ नहीं दिखता। पर शेल्टर पर ताला कोई क्यों लगाएगा? एक पड़ोसी बताता है की ये शेल्टर एक आर्ट कार्यशाला की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है, और जो व्यक्ति ये कार्यशाला चलता है उसने इस पर ताला लगा दिया है। हम तीन ग़ैर-इज़राइली प्रवासी कुछ पड़ोसियों से बात कर ताले की चाबी ढूँढने की कोशिश करते हैं। कोई और परेशान नहीं है। यहाँ के लोगों को ग़ाज़ा की ओर से आने वाले रोकेट की चेतावनी देने वाले साइरन सुनने की आदत है। इनमें से ज़्यादातर रोकेट इज़राइल के “आइरन डोम” की पकड़ में आने से इज़राइल की ज़मीन पर कम ही गिरते हैं।
लगता है हमारे पड़ोसियों ने आज का सोशल मीडिया अभी तक नहीं पढ़ा। वहाँ अकल्पनीय विडीओ दिखा रहे हैं कि किसी तरह ग़ाज़ा से कुछ लड़ाके इज़राइल में घुस आए हैं। ये कैसे सम्भव है? ग़ाज़ा तो ऊँची दीवारों से घिरा है और साथ में लगे हैं अत्याधुनिक कैमरे, सेन्सर, और इज़राइली सेना के गार्ड। मैंने तो सोचा था के इन दीवारों और सैनिक चौकियों को पार करना नामुमकिन था।
शेल्टर का दरवाज़ा थोड़ी देर बाद खोल दिया जाता है। अंदर काफ़ी जगह है - एयर कंडिशनर लगा है, बाथरूम भी हैं। ये इलाक़ा अमीर लोगों का है, तो ज़ाहिर है यहाँ पर मानव जीवन का महत्व भी ज़्यादा ही होगा। दक्षिण इज़राइल के गावों और ग़रीब इलाक़ों में पर्याप्त शेल्टर नहीं हैं। ग़ाज़ा के शेल्टरों का क्या? वहाँ कोई “आइरन डोम” तो है नहीं जो ग़ाज़ा वसियों को इज़राइल की मिसाइलों से बचा सके।
मेरे फ़ोन पर एक दोस्त का मेसेज आया है। ग़ाज़ा से ख़लील का मेसेज है, जो वहाँ अंग्रेज़ी पढ़ाता है, और साहित्य और कविताओं का शौक़ीन है। वो ग़ाज़ा से बाहर निकलने के सपने देखता है, पीएचडी करना चाहता है। न्याय, शांति और ओक्यूपेशन पर उसके विचारों, और ग़ाज़ा की दीवारों के भीतर के जीवन के उसके विवरण ने इन दीवारों के परे भी कई दिलों को छुआ है। कई लोग उससे गहरा प्रेम रखते हैं। मेसेज में लिखा है:
“तुम्हारा मेसेज सुन कर अच्छा लगा। मैंने अपना घर ख़ाली कर दिया है और ग़ाज़ा पर इज़राइली हमला चालू हो चुका है।”
मेरे साथी की आँखों में आंसू हैं। हमास के हमले का पैमाना तो धीरे-धीरे ही पता चलेगा, पर एक बात साफ़ है: ग़ाज़ा पर अब गिरने वाले बम पिछले कई सालों को मात देंगे। ख़लील को ग़ाज़ा में कोई सुरक्षित जगह ढूँढनी पड़ेगी। ख़लील का एक मेसेज और आता है:
“मेरा दिल और मेरे दोस्तों का प्यार ही मेरा शेल्टर है।”
कई लोग ख़लील का हाल नियमित पूछ रहे हैं, और एक ग्रुप में मैसेज कर अपडेट दे रहे हैं। ख़लील के बारे में हर अपडेट या अपडेट का ना होना मुझे चिंतित कर रहा है। ग्रुप पर एक और दोस्त लिखता है:
“दृढ़ता, प्रेम, संघर्ष या एकजुटता पर कविताएँ ढूँढने में कोई मेरी मदद कर सकता है? अगर यहाँ बता सको तो मैं ख़लील को भेजूँगा, ये कह कर कि हम उसके बारे में सोच रहे हैं।”
इज़राइल और ग़ाज़ा के बीच आख़िरी बड़ा टकराव 2021 में हुआ था। रॉकेट और हवाई हमलों के अलावा बड़े पैमाने पर दंगे और पुलिस द्वारा हिंसा भी हुई थी। इज़राइली पुलिस और सेना के साथ मिलकर अधिवासी (सेट्लर) लोगों ने पूर्वी जेरूसलम में अनंत क़हर बरपाया, जो कि मुख्य रूप से फ़िलस्तीनी लोगों का इलाक़ा रहा है, इज़राइल के क़ब्ज़े में। एक फ़िलस्तीनी-यहूदी जोड़ा जो मेरे मित्र हैं, वे इस दहशत से खुद गुज़रे हैं, और फिलस्तिनियों पर शेख़ जर्राह इलाक़े में हुए दंड-मुक्त हमलों के साक्षी हैं। जब कभी मैं उनसे यहाँ के राजनीतिक हालातों के बारे में बात करता हूँ तो लगता है जैसे उनका मानवता पर से विश्वास उठ चुका है, और ये 2021 की घटनाओं के कारण है। काश मैं ग़लत हूँ, और नहीं तो काश कि उनका विश्वास फिर लौट आए।
क्या आज सुबह के हमास के हमले की वजह से जेरूसलम फिर लपटों में घिर जाएगा? साइरन ग़ाज़ा की ओर से आने वाले रोकेट की चेतावनी तो देते हैं, पर फिलस्तिनियों से बदला लेने को प्यासे अधिवासी लोगों की भीड़ की चेतावनी कौन देगा? शायद मुझे तेल अवीव में अपने दोस्तों के पास चले जाना चाहिए, जहां रॉकेट ज़्यादा गिरते हैं पर दंगों के आसार काम हैं। साइरन और रॉकेट से निबटना एक बात है, और सड़क पर मेरा चेहरा देख कर अचानक उग्र हो जाने वाली भीड़ से निबटना एक और बात।
अंधेरा हो गया है, जेरूसलम की सड़कें असामान्य रूप से खाली हैं, दुकानें बंद हैं, और हर जगह पुलिस का पहरा है। मैं बस स्टेशन के पास हूँ, कुछ लोगों का एक झुंड किसी वजह से इकट्ठा हो गया है। मैं देखता हूँ कि दो फ़िलस्तीनी आदमी कुछ पुलिसवालों से घिरे हैं। उनमें से एक अपना बैग खोल कर अपने समान की तलाशी करवा रहा है और पुलिस उसका आईडी जाँच रही है। दूसरा आदमी अपने हाथ और पैर फैलाए खड़ा है, उसके हाथ “सेंट्रल स्टेशन” के साइन पर टिके हैं। वो इस साइन की ओर देख रहा है और एक पुलिसकर्मी उग्र हो कर उसकी तलाशी ले रहा है।
धार्मिक यहूदियों का एक समूह - जिनमें किशोर और नौजवान वयस्क हैं - इन फ़िलस्तीनियों को देख कर हंस रहे हैं, उनका मज़ाक़ उड़ा रहे हैं। कोई उन्हें रोक नहीं रहा। इस सब में कुछ नया नहीं है, ये तो हमेशा से होता आया है। खुली सड़क पर कौन निडर होकर किसका अपमान कर सकता है इससे यह पता चलता है कि समाज में किसके पास कितनी ताक़त है।
तेल अवीव को जाने वाली बस खचाखच भारी है। मैं एक ब्रिटिश इज़राइली आदमी के पास बैठा हूँ जो आईटी में काम करता है और जिसे अपने काम से नफ़रत है। मैं उससे अपनी चिंता साझा करता हूँ और वो मुझे ना घबराने की सलाह देता है। वह बेंजामिन नेतनयाहू सरकार की आलोचना कर रहा है जो न्यायतंत्र को खोखला कर रही है, सरकारी शासन पर उसके अंकुश को ख़त्म कर रही है। वह फ़िलस्तीन पर इज़राइल के क़ब्ज़े को भी एक बड़ी चुनौती मानता है। अपनी ज़िंदगी का अधिकतर हिस्सा यहाँ बिताने के बावजूद वो कहता है उसके सोच-विचार बाक़ी इज़राइलियों से ज़्यादा नहीं मिलते।
मैं तेल अवीव में हूँ, ख़ाली सड़कों पर इलेक्ट्रिक स्कूटर से अपने दोस्त के घर जा रहा हूँ। मैं आशा कर रहा हूँ कि स्कूटर पर चलते-चलते कोई रोकेट साइरन नहीं बजेगा। एक बहुमंज़िली इमारत पर बड़ी स्क्रीन लगी है, जिस पर इज़राइल के लहराते हुए झंडे का वीडियो चल रहा है। मैं रेलवे स्टेशन के पास से गुज़र रहा हूँ, जहां एक जवान सिपाही अपने परिवार से विदा ले रही है। वो सब को एक-एक कर के गले लगा रही है; उसके घर के लोग कितने चिंतित होंगे। लगता है युद्ध असल में चालू होने वाला है। मुझे नहीं पता मैं क्या महसूस कर रहा हूँ। शायद भय और सन्नाटा।
लेखक अमन अभिषेक यूनिवर्सिटी ऑफ़ विस्कॉन्सिन से पीएचडी कर रहे हैं, और अभी जेरुसलम में रहते हैं।
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