मेरे अनुत्तरित प्रश्न

मेरे अनुत्तरित प्रश्न
Published on

चलते - चलते इस जीवन में 

मैंने बहुत कुछ सीखा है 

थे आँखों में अरमान बहुत 

रास्ते थे बियांबान बहुत

पर नदियों को भी तो

पहाड़ों को चीरता देखा है 

लगता है कभी क्या चल पाँऊगी यूँ 

मैं अपनी राह के हर कांटे को 

क्या पार कर पाऊंगी ?

पर जब सोचा धरती के बारे में 

अनवरत, अविराम अपनी धुरी पर चलते हुए 

न किसी चीज़ की चाह जिसे 

बस यूँही लोगों का बोझ सहते हुए 

तब लगा,

की ये लालच क्यों है ?

हमेशा पाने की चाहत क्यों है ?

जब सूरज को देखा मैंने 

सोचा की ये क्यों रोज आ जाता है ?

अपने चमक से ये क्यों दुनिया रोशन कर जाता है 

फिर लगा, की शायद जो कुछ नहीं जीवन में कर पाते 

वो ऐसी ही बातें कर जाते

पर ये सच है, 

वो सब बातें अनमोल है 

जो चलते - चलते देखा है 

यादें है अहसास है 

जो हमेशा मेरे आस - पास है 

चलते - चलते इस जीवन में मैंने बहुत कुछ सीखा हैI

डॉ. बानी आनन्द, देवेंद्र पी जी कॉलेज, बेल्थरा रोड, बलिया में मनोविज्ञान की असिस्टेंट प्रोफेसर हैं.

द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.

The Mooknayak - आवाज़ आपकी
www.themooknayak.com