जून 2018 में दिल्ली पुलिस द्वारा जारी आंकड़ों की माने तो दिल्ली में अमूमन 5 महिलाएं रोज दुष्कर्म का शिकार शिकार होती हैं, हर रोज राजधानी में 48 महिलाएं हादसों का शिकार होती हैं, जिसमें दुष्कर्म, छेड़छाड़, दहेज, घरेलू हिंसा इत्यादी शामिल हैं। हमारे समाज में लड़कियों की परवरिश इस तरह की जाती है कि वे इन हादसों की शिकायत तक नहीं करतीं। पुलिस थाने जाना तो दूर वे इनका जिक्र अपने घर में भी बमुश्किल कर पाती हैं, उन्हें लोकलाज का डर जो सिखाया जाता है। हालांकि, अब शिकायतों का ग्राफ थोड़ा बढ़ रहा है लेकिन सभी केसों की शिकायत नहीं ही दर्ज होती हैं न ही कार्यवाही ही हो पाती है, वजह बहुत सी गिनाई जा सकती हैं।
नए साल के मौके पर लोगों में नया उत्साह था, जोश था, जश्न का माहौल था, लेकिन देश की राजधानी में साल के पहले ही दिन एक ऐसी घटना घटी जिसने सबको शर्मसार कर दिया। नये साल 2023 के जश्न में डूबे 5 लड़कों ने अपनी कार से स्कूटी पर सवार एक लड़की को कुचल डाला। इसके बाद नशे में चूर उन लड़कों ने 20 वर्षीय लड़की के शव को लगभग चार किलोमीटर तक घसीटा। दिल्ली के कंझावला में हुए इस हादसे ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया है। मामले पर पुलिस का रिएक्शन भी हैरान करने वाली है। दिल्ली पुलिस इस घटना को एक एक्सीडेंट बता रही है।
दिल्ली आउटर के सुल्तानपुरी इलाके में दिलदहला देने वाली घटना में परिवार के बारे में बड़ी जानकारी सामने आई है. मृतक लड़की के पिता की पहले ही मौत हो चुकी है। घर में दो बहनें, दो भाई और मां रहती हैं. एक बड़ी बहन की शादी हो गई है। घटना में मारी गई 23 साल की लड़की ही पूरे घर में इकलौती कमाने वाली थी। उसकी मां किडनी की बीमारी से पीड़ित हैं। उनकी दोनों किडनी खराब हो चुकी हैं। जानकारी के मुताबिक, लड़की घर के खर्चे से लेकर अन्य जरूरतें पूरी करती थी। इस समय वो इवेंट कंपनी में जॉब कर रही थी। परिवार का सहारा छिनने से हर कोई गमजदा देखा जा रहा है। यहां तक की कोई बात करने तक को तैयार नहीं है।
लड़की का परिवार दिल्ली के अमन विहार इलाके में रहता है। उसके घर में मां और चार बहनें हैं। दो छोटे भाई हैं। एक भाई 13 साल और दूसरा भाई 9 साल का है। पिता की 8 साल पहले मौत हो चुकी है, एक बहन शादीशुदा है।
ऐसा पहली बार नहीं हुआ, न ही पुलिस का व्यवहार पहली बार ऐसा है, जिससे चौंका जाए? अक्सर ऐसी घटनाएँ होती हैं, और पुलिस लीपापोती में जुट जाती है, कुछ मामलों में जन सैलाब उमड़ता है, अन्दोलन होता है, मोमबत्तियां जलती हैं, त्वरित कार्यवाही होती है, फिर लोग इन हादसों को भूल जाते हैं।
16 दिसंबर, 2012 को चलती बस में एक हादसा हुआ था, जिसमें एक लड़की के साथ दरिंदों ने बलात्कार किया, लड़की ने 15 दिन बाद दम तोड़ दिया, सात साल की लम्बी प्रक्रिया के बाद उन दरिंदों को फांसी दी गयीं। निर्भया केस में फांसी हो गयी, लेकिन सवाल है कि फांसी के बाद भी क्या समाज में कोई बदलाव आया, क्या ऐसे हादसे रुके? जवाब मिलेगा की आज भी ऐसे हादसों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
जब भी इस तरह के हादसे हाईलाइट होते हैं- एक ही बात सामने आती है कि राज्य और केंद्र सरकार महिला सुरक्षा में नाकामयाब रही हैं, तब महिला सुरक्षा, नियमों की कड़ाई से पालन होने की मांग जोरशोर से उठती है, जन आन्दोलन होते हैं। सरकार आश्वासन देती है और सब कुछ पहले की तरह ठण्डे बस्ते में चला जाता है।
हाल ही मे कन्झावाला (दिल्ली) की सामने आई घटना के साथ ही बहुत सारे एंगल सामने आ रहे हैं, जहाँ एक एंगल स्कूटी में पीछे से एक कार के आकर टक्कर मार देने का है तो दूसरी तरफ पुलिस की इन्क्वायरी अलग ही कहानी बयान करती है। कहानी कुछ भी हो, मामला एक हत्या का है, संदेह रेप या गैंग रेप का है, पूरा मामला सामने आने पर मीडिया और आरोपी सब कुछ न कुछ साबित करने में लगे होंगे। जिस कार से ये हादसा हुआ बताया गया, उस कार में पाँच युवक सवार थे और उन पाँच युवको में से एक मनोज मित्तल (भाजपा नेता) भी शामिल बताया गया है।
जब ऐसे मामले होते हैं तो सबसे आसान होता है लड़की को खराब चरित्र की, बदचलन, आवारा घोषित या साबित करना। यह मामला भी इस आरोप से कैसे अछूता रहा सकता है? जाहिर है कि लड़की के चरित्र पर भी उँगली उठने लगी, उसको कॉल गर्ल बताया जा रहा है, जो कि किसी इवेंट मैनेजमेंट की कम्पनी में जॉब करती थी, लड़की की दोस्त (निधि के अनुसार) ने बताया की उसने शराब पी हुई थी, और वह स्कूटी ड्राइव करने की जिद्द कर रही थी, हालाकि पोस्टमार्टम की रिपोर्ट में अल्कोहल की पुष्टि नहीं हुई है।
अगर मान भी लिया जाए कि उसने शराब पी भी हुई थी तो इससे फर्क क्या पड़ता हैं ये हर व्यक्ति की निजी पसंद हो सकती है। शराब पीकर ड्राइव करना अवश्य ही अपराध है, जिसका समर्थन नहीं किया जा सकता, लेकिन अभी ये बात शाबित हुई नहीं की यह ड्रंक एंड ड्राइव का मामला है, फिर भी अगर दारू पीना इतना गलत हैं तो सरकार को सारी दारू दुकाने बंद कर देनी चाहिए,
लेकिन यहाँ तो लॉक डाउन में भी दुकानें खोली गईं, तब मंशा टैक्स उगाहने की थी। देश कि अधिकांश पार्टियाँ चुनाव के समय में शराब बांटती हैं, चुनाव आयोग और कार्यपालिका उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाती।
दरअसल ये सब बातें फिजूल हैं, बात सिर्फ इतनी है कि असल स्टोरी से लोगों का ध्यान भटकाना है, अपनी गलती छिपाने के लिए विक्टिम की ही गलती निकाल देना इस समाज और तन्त्र का पुराना दस्तूर है। किसी के व्यवसाय, उसके पेशे को अपराध की वजह से जोड़ना भी कोरा पागलपन ही है, यहाँ बात इस पर नहीं होनी चाहिए की विक्टिम क्या करता है बल्कि बात न्याय की होनी चाहिए, जोकि नहीं हो रही। सब जगह सोशल मीडिया पर यही दिखाया जा रहा हैं की लड़की कॉल गर्ल थी, चलिए मान लीजिए- अगर वह कॉल गर्ल थी भी तो क्या ऐसे मार देना चाहिए था उसे? क्या उसे न्याय मिलने का कोई अधिकार नहीं हैं? क्या ऐसी लड़कियो को मर जाना चाहिए?
हाथरस वाली लड़की के चरित्र पर भी उँगली उठाई थी, बोला था ये लव एंगल है इत्यादि चलिए मान लिया वो लव एंगल था भी तो क्या वह इस सबके लिए डिजर्व करती थी? पुलिस प्रशासन ने जैसे उसको रात के 2 बजे पेट्रोल डाल कर जला दिया था क्या ये सही था?
क्या हर लड़की का चरित्र ही खराब हैं? खराबी लड़कियों के चरित्र में नहीं खराबी हैं ऐसे नेताओं की नियत में जो अपने पार्टी से जुड़े लोगों को बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं चाहे फिर वो विक्टिम को जलवाना हो उसके भाई और पिता की हत्या कराना हो चाहे फिर गवाह को बिना नंबर प्लेट के ट्रक से टक्कर मरवाना हो। क्या अब न्यायपालिका हमारे देश में बस नाम के लिए रह गई हैं? बलात्कारियों को संस्कारी बोल कर रिहा कर दिया जाता हैं। किसी लड़की के साथ कुछ गलत हो जाए और वह व्यक्ति (आरोपी) राजनीतिक दल से संबंध रखता हो तो लड़की के चरित्र पर ही उँगली उठा दी जाती हैं।
और मीडिया भी लग जाती हैं लड़की को गलत साबित करने में, तो क्या अब मान लेना चाहिए कि अब देश संविधान पर नहीं चलता? लोकतंत्र के चारों स्तम्भ शासक की कठपुतली बन गए हैं।
देश की राजधानी दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की महिला सुरक्षा व्यवस्था देख कर सोचती हूँ कि मेरे गृह जनपद (मुजफ्फरनगर) में ऑनर किलिंग के नाम पर लड़कियों को फांसी पर लटकाया जाता रहा और देश की राजधानी में राजनेताओं के पनाह में रहने वाले अपराधियों को महिलाओं के साथ बदसलूकी के लाइसेंस दिए जा रहे हैं। पूरे देश की फिजा में ये कैसी जहरीली हवा घुल गई है, एक लड़की होने के नजरिये से जब ये सब देखती हूँ तो इन सब चीजों को देखते हुए बहुत डर लगता है। क्या बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा बस चुनावी भाषण तक ही सीमित रह गया हैं?
जब भारतीय मीडिया अपने आकाओं का गुणगान कर रही होगी तब तक और 48 महिलाएं अगले पाँच मिनट में नए हादसे का शिकार हो रही होंगी? सवाल है क्या देश भी सभी स्त्रियों को इस पुरुष-सत्तात्मक दम्भी समाज में सामूहिक जौहर कर लेना चाहिए?
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