बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के पीछे बिहार की एक बड़ी आबादी सड़क पर आ चुकी है। जन विश्वास यात्रा जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है लोगों की संख्या बढ़ती चली जा रही है। गाँव से लेकर शहर और ज़िला मुख्यालयों तक तेजस्वी को देखने-सुनने के लिए रात्रि के 12 बजे तक लाखों की भीड़ उमड़ रही है। वो जिस सर्किट हाउस में रात्रि विश्राम के लिए ठहर रहें हैं, बाहर उन्हें देखने के लिए हज़ारों लोगों की भीड़ सुबह होने का इंतज़ार कर रही है। तेजस्वी कहते है, “इन्हें भीड़ मत कहिए। ये भीड़ नहीं है। ये प्रेम और भरोसा है जो इन्हें यहाँ तक लेकर आया है।”
ये यात्रा तेजस्वी प्रसाद यादव के संघर्ष की गवाही देती है। वो पूर्व में भी ऐसी कई यात्राएँ कर चुके हैं। साल 2013 में जब उन्हें राजद की कमान सौंपी जा रही थी, वो “युवा जनसमर्थन यात्रा” के ज़रिए पूरे बिहार से अपना परिचय करा रहे थे। साल 2019 में भी “बेरोज़गारी हटाओ आरक्षण बढ़ाओ यात्रा” के ज़रिए पूरे बिहार को एकजुट कर रहे थे।
समय का दस्तूर है कि वो तेजस्वी कोई और थे। वो तेजस्वी एक नौसिखिया अनुभवविहीन राजनेता थे जो क्रिकेट छोड़ कर पिता की विरासत सम्भालने आए थे। लेकिन आज जो तेजस्वी आपको दिख रहें हैं, वो एक मास लीडर हैं। उनके संघर्ष, उनके परिश्रम, उनके मॉडल और ईमानदारी से काम करने को लेकर उनकी प्रतिबद्धता ने उन्हें जननेता के रूप में स्थापित कर दिया है।
इस बार की यात्रा एक मंझे हुए राजनेता की यात्रा है। जिनके पास एक विजन है। जिनकी बातों में ताक़त है। जब वो बोलते हैं तो पूरा देश उन्हें गंभीरता से सुनता है। वो जब हवा में हाथ हिलाते हैं तो पूरा बिहार जोश से भर जाता है। जब वो पगड़ी बांधते हैं तो बिहार का हर युवा स्वाभिमान के साथ उनके पीछे चल देता है।
तेजस्वी की यात्रा सदन में किए गए विश्वासघात का जवाब नहीं माँग रही। बल्कि जनता का विश्वास माँग रही है। उनके पास गिनवाने के लिए काम है। 17 महीनों का मॉडल है।
बीते 17 महीनों में जिन विभागों में तरक़्क़ी हुई, वो राज़द के मंत्रियों के पास थे। शिक्षा विभाग ने 70 दिनों के भीतर रिकॉर्ड तोड़ नौकरियाँ दीं। बिहार में पहली बार उद्योग के लिए 50 हज़ार करोड़ का निवेश आया। आईटी पॉलिसी, टूरिज्म पॉलिसी, स्पोर्ट्स पॉलिसी बनी। स्वास्थ्य विभाग ने मिशन-60 लॉंच कर के कराहते हुए सदर अस्पतालों का कायाकल्प कर दिया।
तेजस्वी के पास अब एक मॉडल है। पिछले 17 महीनों में सामाजिक न्याय की लड़ाई आर्थिक न्याय तक पहुँच पाई है। बिहार में ऐतिहासिक कास्ट सर्वे हुआ। उसके आँकड़े सार्वजनिक किए गए। आर्थिक आँकड़ों के आधार पर पॉलिसी बनी, आरक्षण को बढ़ाकर 75% किया गया। 94 लाख गरीब परिवारों के स्वरोज़गार के लिए ₹2 लाख देने की योजना बनी।
जिन कामों को नीतीश कुमार असंभव बताते थे। उसे तेजस्वी यादव ने कर के दिखा दिया। तेजस्वी ने साबित किया है कि वो ही बिहार का मुस्तकबिल तय करेंगे। अक्सर जब कोई युवा नेता किसी बड़ी लेगेसी को लेकर चलता है तो लड़खड़ा जाता है। तेजस्वी ने बेहद कम समय में कई-कई बार ठोकर खाने के बावजूद ना केवल उसे बचाए रखा है, बल्कि पहले से ज़्यादा मज़बूती से स्थापित कर दिया है। अब तेजस्वी भी लालू प्रसाद यादव के समानांतर एक बड़ी लकीर खींचने निकल चुके हैं।
बिहार के युवा, बुजुर्ग, महिलाएँ रात्रि दो बजे तक उनका इंतज़ार कर रही है। तेजस्वी ने माय-बाप समीकरण से एक बड़े जनसमूह का भरोसा जीतने की कोशिश की है। बिहार उनकी यात्रा को जैसा रिस्पांस दे रही है, वैसा केवल साउथ में कुछ दो चार बड़ी फ़िल्मी हस्तियों के लिए हुआ करता था। लेकिन उत्तर भारत में इतनी दीवानगी, इतना उत्साह, इतना स्नेह शायद ही किसी राजनेता को मिला होगा।
जन विश्वास यात्रा देश के सबसे लोकप्रिय जननेता की आहट महसूस कर रहा है। यह लोकप्रियता 2025 विधानसभा चुनाव के परिणाम तो है ही आगामी लोकसभा चुनाव में भी अपने तेवर दिखाने जा रही है।
लेखक परिचयः- प्रियांशु कुशवाहा, जामिया मिल्लिया इस्लामिया में पोस्ट ग्रेजुएशन के छात्र हैं। बिहार के पूर्वी चम्पारण से आते हैं और आरजेडी से जुड़े है।
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