जयपुर: राजस्थान में सोलहवीं विधानसभा के लिए शनिवार 25 नवम्बर को प्रदेश की 200 में से 199 में विधानसभा सीटों पर मतदान हुआ। अपने मत से नई सरकार के गठन को लेकर मतदाताओं में उत्साह नजर आया। राजस्थान के मतदाताओं ने इस बार रिवाज बदलेगा या राज यह भविष्य के गर्भ में है। 3 दिसंबर को मतगणना के साथ मतदाताओं का निर्णय सार्वजनिक होगा। प्रदेश में इस बार मतदाताओं के उत्साह और मतप्रतिशत ने राजनीतिक विशेषज्ञों की गणित भी गड़बड़ा दी है। निर्वाचन आयोग के अनुसार प्रदेश में शनिवार 25 नवम्बर को पोलिंग बंद होने तक 74.13 प्रतिशत मतदान हुआ। 0.83 प्रतिशत होम वोटिंग के आंकड़ों के साथ राजस्थान के 74.96 प्रतिशत मतदाताओं ने अपनी सरकार चुनने के लिए मतों का उपयोग किया। बैलेट पेपर के मतों का आंकड़ा अभी जारी नहीं हुआ है। ऐसे में राज्य में मतदान का प्रतिशत और बढ़ने वाला है।
राजस्थान में अब तक कांग्रेस व भाजपा के बीच मुकाबले को लेकर चुनाव होता रहा है। इस बार प्रदेश में यह रिवाज बदला नजर आया। कांग्रेस विकास की गारंटी के साथ जनता के बीच गई। जबकि भाजपा प्रदेश नेतृत्व चेहरे के बिना मोदी के दम पर चुनाव मैदान में थी। ऐसे में इस बार यहां सीएम गहलोत व पीएम नरेंद्र मोदी के बीच चुनावी मुकाबला देखने को मिला। यह 3 दिसंबर को पता चलेगा कि लोग विकास की गारंटी के साथ गए या फिर पीएम मोदी के चेहरे को ध्यान रख कर वोट किया। राजस्थान के अलवर जिले की तिजारा और जैसलमेर की पोकरण सीट पर बढ़ा हुआ मतदान प्रतिशत बहुत कुछ इशारा करता है। इन दिनों सीटों पर कांग्रेस के मुस्लिम चेहरों के सामने भाजपा ने हिन्दु संतों को मैदान में उतारा। ऐसे में यहां बढ़ हुआ मतदान प्रतिशत ध्रुवीकरण की ओर भी इशारा करता है।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इस बार भी अपने परंपरागत सरदारपुरा सीट से चुनाव लड़े हैं। गत चुनाव के मुकाबले इस बार यहां मतदान 2.59 प्रतिशत तक कम हुआ है। ऐसे में इस सीट पर हार जीत का अंतर भी बहुत कम होता दिखाई दे रहा है। इसी तरह कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा मंत्री शांति धारीवाल व अशोक चांदना की सीटों पर कांटे की टक्कर है। भाजपा के राजेंद्र राठौड़, वासुदेव देवनानी, सतीश पूनिया और नरपत सिंह राजवी जैसे बड़े नेता भी कड़ी टक्कर में है। ऐसे में इनके परिणामों को लेकर राजनीतिक विशेषज्ञों के आकलन भी साफ संकेत नहीं दे रहे हैं।
पिछली बार राजस्थान में कांग्रेस सरकार बनाने में पूर्वी राजस्थान की अहम भूमिका रही थी। पूर्वी राजस्थान की 39 सीटों से भाजपा केवल 4 पर सिमट गई थी। जबकि शेष सीटों पर कांग्रेस व अन्य ने जीती थी। बहुजन समाज पार्टी के साथ ही विधायकों ने कांग्रेस सरकार बनाने में अहम रोल अदा किया था। इस बार भाजपा को पूर्वी राजस्थान से अधिक उम्मीद है। सचिन पायलट फेक्टर ने भी पूर्वी राजस्थान में भाजपा की उम्मीदों को पंख दिए हैं। कांग्रेस में पायलट को बैकफुट रखने से गुर्जर समाज कांग्रेस से नाराज नजर आया। यह नाराजगी किस हद तक भाजपा को सपोर्ट करने में सफल रही यह 3 दिसंबर को ही पता चलेगा। इस बार भी पूर्वी राजस्थान से चौंकाने परिणाम सामने आने वाले हैं।
राजस्थान में विधानसभा चुनावों में मतदाता लहर या भावनाओं से ज्यादा प्रभावित नहीं होता है। राजस्थान में लहर या भावनाएं जातीय समीकरण के सामने फीकी नजर आती है। विकास और प्रत्याशी का चेहरा भी मतदाताओं को प्रभावित करता है।
शेखावाटी के तीन जिलों सीकर, चूरू और झुंझुनूं में विधानसभा की 21 सीटें हैं। यहां विकास कांग्रेस विकास की गारंटी के साथ थे भाजपा मोदी लहर के भरोसे मैदान में उतरी। यहां तीन सीटों पर अन्य अन्य दल और दो सीटों पर बागी प्रत्याशी भाजपा का समीकरण बिगाड़ते दिख रहे हैं।
मारवाड़ में शामिल जोधपुर, पाली, जालोर, सिरोही, जैसलमेर, बाड़मेर और नागौर की 43 सीटों पर कांटे की टक्कर है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी इसी इलाके से आते हैं। बागी होकर निर्दलीय व अन्य दलों के सिंबल पर चुनाव लड़ रहे प्रत्याशी दोनो ही प्रमुख पार्टियों का गणित गड़बड़ाने की भूमिका में है।
बांसवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़ और उदयपुर जिले की आरक्षित सीटों पर बीएपी और बीटीपी ने भाजपा और कांग्रेस दोनों का खेल बिगाड़ दिया है। राजस्थान में वर्तमान में बीटीपी के दो विधायक हैं। इस बार बीएपी ने भी पूरे दम से चुनाव लड़ा है। ऐसे में आदिवासी बाहुल्य इलाकों से बीटीपी और बीएपी के बढ़त बनाने का अनुमान भी है। जानकारों का कहना है कि नव गठित बीएपी 3 से 5 सीटें जीत सकती हैं जबकि बीटीपी का होल्ड कुछ कमजोर होता नजर आ रहा है. उदयपुर की आठ सीटों में से 5 सीटों पर भाजपा को बहुमत मिलने के अनुमान लगाये जा रहे हैं. सलुम्बर में दिग्गज कांग्रेसी नेता रघुवीर सिंह मीना का सीधा मुकाबला भाजपा के अमृत लाल से हैं जो काफी रोचक हो सकता है. उदयपुर शहर और ग्रामीण में भाजपा का पलड़ा भारी रहने के अनुमान लगाये जाते हैं. इस हिसाब से मेवाड़ में कांग्रेस का पक्ष कमजोर रह सकता है.
राजस्थान में बसपा 188 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ी है। ऐसे में बसपा के पिछले दो चुनावों की स्थिति बरकरार रखने की उम्मीद जताई जा रही है। अनुमान यह भी है कि इस बार आजाद समाज पार्टी ने आरएलपी के साथ गठबंधन कर राजस्थान में चुनाव में एंट्री की है। आजाद समाज पार्टी आरएलपी गठबंधन कई इलाकों में मजबूती से चुनाव लड़ा है। ऐसे में कांग्रेस-और भाजपा की स्पष्ट बहुमत वाली सरकार बनने पर भी संशय है। आरएलपी आजाद समाज पार्टी के सहयोग से बढ़त में आने की बात भी कही जा रही है। आजाद समाज पार्टी का राजस्थान में खाता खुलेगा या नहीं यह भी स्पष्ट नहीं है। हालांकि, सभी राजनीतिक दलों के अपने अपने दावे हैं। 3 दिसंबर को ही दावों की हकीकत सामने आएगी।
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