जयपुर। परिसीमन के बाद वर्ष 2009 में अस्तित्व में आई टोंक-सवाई माधोपुर लोकसभा सीट पर चुनावी मुकाबला रोचक होने वाला है। कांग्रेस ने हरीश मीणा तो, भाजपा ने फिर से सांसद सुखबीर सिंह जौनपुरिया पर दांव खेला है। यहां पिछले तीन चुनावों में से दो बार भाजपा, एक बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की है। जौनपुरिया पिछले दो बार से लगातार भाजपा का परचम लहरा रहे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में जौनपुरिया ने कांग्रेस प्रत्याशी हरीश मीणा के भाई नमोनारायण मीना को हराया था।
मीणा, गुर्जर, अल्पसंख्यक मतदाताओं बाहुल्य वाली इस सीट पर दोनों ही पार्टियों ने अब तक जातिगत समीकरणों को साधते हुए टिकट दिया है। परिसीमन के बाद से ही भाजपा ने यहां लगातार चौथी बार गुर्जर जाति के प्रत्याशी को चुनाव मैदान में उतारा है। कांग्रेस ने दो बार मीणा, एक बार अल्पसंख्यक को टिकट दिया। इस बार फिर मीणा जाति का प्रत्याशी मैदान में उतार कर मुकाबला रोचक बना दिया।
लगातार पिछले दो चुनावों में भाजपा प्रत्याशी सुखबीर सिंह जौनपुरिया कांग्रेस पर भारी रहे हैं। एक बार मीणा तो एक बार मुस्लिम प्रत्याशी को हराया। यही वजह है कि भाजपा ने तीसरी बार भी जौनपुरिया पर भरोसा जताया है। उधर, कांग्रेस प्रत्याशी हरीश मीणा सचिन पायलट खेमे से हैं। पायलट व हरीश दोनो ही टोंक जिले विधायक है। ऐसे में इस बार कांग्रेस नेता सचिन पायलट की साख भी दांव पर लगी है। यह देखना होगा कि पायलट गुर्जर कम्यूनिटी को कांग्रेस की ओर कितना मोड़ पाते हैं। विधानसभा चुनाव 2023 में सचिन की अनदेखी की आड़ लेकर गुर्जर समुदाय ने भाजपा के पक्ष में वोट किया था।
2009 के लोकसभा चुनावों से पहले यह सीट टोंक लोकसभा सीट के नाम से जानी जाती थी, जिसमें दूदू और फुलेरा क्षेत्र भी शामिल थे। टोंक-सवाई माधोपुर की 8 विधानसभा सीटों से मिलकर 2009 में टोंक-सवाई माधोपुर लोकसभा सीट पर पहला चुनाव बीजेपी से गुर्जर नेता कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला और कांग्रेस से नमोनारायण मीणा लड़े, जिसमें कांग्रेस के प्रत्याशी नमोनारायण मीणा ने बहुत कम अंतर से जीत अर्जित की। मीना चुनाव जीत कर यूपीए सरकार के केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री बने। 2014 में कांग्रेस ने इस सीट पर भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन को प्रत्याशी बनाया। वहीं, भाजपा ने हरियाणा के व्यवसायी और गुर्जर नेता सुखबीर सिंह जौनपुरिया को चुनाव मैदान में उतार दिया। मोदी लहर के चलते भाजपा ने चुनाव जीता। यहां कांग्रेस का अल्पसंख्यक चेहरे पर दांव फेल रहा। 2019 के चुनावों में कांग्रेस ने इस सीट पर नमोनारायण मीणा को प्रत्याशी बनाया। भाजपा ने फिर गुर्जर नेता जौनपुरिया को मैदान में उतार दिया। सुखबीर सिंह जौनपुरिया ने लगातार दूसरा चुनाव जीत लिया। भाजपा ने तीसरी बार भी जौनपुरिया पर भरोसा जताया है। हालांकि इस बार जौनपुरिया के चेहरे पर भाजपा के लिए एंटी इंकम्बेंसी के खतरे से भी इनकार नहीं कर सकते।
8 सीटों में 4-4 पर कब्जा
हाल ही हुए विधानसभा चुनावों में टोंक-सवाईमाधोपुर लोकसभा सीट की आठ सीटों पर कांग्रेस और भाजपा बराबरी पर रही है। ऐसे में लोकसभा चुनावों में कांटे की टक्कर मानी जा रही है। वर्तमान में टोंक जिले में दो सीटों पर बीजेपी तो, दो सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है। सवाई माधोपुर जिले मे भी दो सीटों पर भाजपा तो दो पर कांग्रेस से विधायक चुने गए हैं।
कहां किस पार्टी का विधायक
टोंक विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के सचिन पायलट, देवली-उनियारा से कांग्रेस के हरीश चंद्र मीणा, मालपुरा-टोडारायसिंह से भाजपा के कन्हैया लाल चौधरी, निवाई-पीपलू से भाजपा के रामसहाय वर्मा विधायक है। इसी तरह सवाई माधोपुर विधानसभा सीट से भाजपा के डॉ. किरोड़ी लाल मीणा, खंडार से भाजपा के जितेंद्र गोठवाल, बामनवास से कांग्रेस की इंदिरा मीणा, गंगापुर सिटी से कांग्रेस के रामकेश मीणा विधायक हैं।
इसलिए है लोगों में चर्चा
2024 में होने वाले चुनावों के टिकट वितरण को लेकर लोगों में चर्चा है। राजनीतिक पार्टियों से जुड़े लोग भी अब दबी जुबान कहने लगे हैं कि कि सामान्य सीट पर गुर्जर और मीणा समुदायों पर ही पार्टियों का फोकस रहा तो अन्य समुदाय क्या करेंगे। सोशल मीडिया पर भी इस तरह की प्रतिक्रिया आ रही है। यह विरोध की सुगबुगाहट चुनावी रण में मुखर होगी या फिर मोदी लहर में दब जाएगी, यह देखना होगा। इस सीट पर मीणा, गुर्जर, एससी और अल्पसंख्यकों के साथ जाट, माली, ब्राह्मण, राजपूत मतदाताओं का भी खासा प्रभाव है। इस बार कांग्रेस ने पायलट खेमे के हरीश मीणा को प्रत्याशी बनाकर गुर्जर मीणा समुदायों को साधने का प्रयास किया है।
लोकसभा चुनाव में मुद्दे
टोंक-सवाई माधोपुर लोकसभा सीट पर वैसे तो जाति ही बड़ा मुद्दा बनकर रह गया है। दोनों ही पार्टियों ने इसी आधार पर टिकट दिए हैं। लेकिन आजादी के बाद से अब तक टोंक में रेल हर चुनावों में मुद्दा रहा है। रेल के अलावा रोजगार, बीसलपुर बांध से गांव-गांव पेयजल की पहुंच, इस बार दोनो जिलों में बजरी खनन से आमजन को रोजगार भी बड़ा मुद्दा रहने वाला है। लोगों का कहना है कि बनास नदी टोंक-सवाई माधोपुर के वाशिंदो के लिए लाइफ लाइन है, लेकिन सत्ता में आने के बाद राजनीतिक पार्टियों ने इसका व्यवसायीकरण कर स्थानीय लोगों का रोजगार छीनने का काम किया है। नदी किनारे बसे लोगों को भी महंगे दामों पर बजरी खरीदना पड़ रहा है। जबकि लीज के नाम पर अड़ी कंपनियां राज्य से बाहर बजरी ले जा कर मोटा मुनाफा कमा रही है। इस चुनाव में आमजन की यह आवाज राजनीतिक पार्टियों की सभाओं में गूंजेगी।
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