नई दिल्ली: राष्ट्रीय लोक दल (RLD) के वरिष्ठ नेता एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता रोहित जाखड़ ने भारतीय कुश्ती संघ के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के बेटे को टिकट दिए जाने से नाराज होकर पार्टी और पद से इस्तीफा दे दिया है। इससे पहले भी RLD के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी के भाजपा के साथ चुनाव लड़ने के फैसले के बाद कई अन्य शीर्ष पदाधिकारी पार्टी से इस्तीफा दे चुके हैं.
पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को हाल ही में भारत रत्न दिए जाने के बाद गठबंधन इंडिया से अलग होकर चरण सिंह के पौत्र जयंत सिंह चौधरी के नेतृत्व वाले रालोद ने राजग में हिस्सेदारी कर ली। उत्तर प्रदेश में रालोद को गठबंधन में लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए दो सीटें मिली हैं। रोहित जाखड़ ने कहा कि हमने कल रालोद के राष्ट्रीय प्रवक्ता पद के साथ ही पार्टी की सदस्यता से त्यागपत्र पार्टी अध्यक्ष जयंत चौधरी को भेज दिया है।
उन्होंने अगले कदम के बारे में पूछने पर कहा कि फिलहाल हम किसी राजनीतिक पार्टी में नहीं जा रहे हैं। अलबत्ता, सामाजिक मुद्दों पर हमारा संघर्ष पहले की तरह जारी रहेगा।
अप्रैल की शुरुआत में ही राष्ट्रीय लोक दल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शाहिद सिद्दीक़ी अपने पद से इस्तीफा दे चुके हैं. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर अपने इस्तीफे की जानकारी देते हुए उन्होंने लिखा था, ''मैंने अपना त्यागपत्र राष्ट्रीय लोक दल के अध्यक्ष माननीय जयंत चौधरी को भेज दिया है. मैं ख़ामोशी से देश के लोकतांत्रिक ढाँचे को समाप्त होते नहीं देख सकता. आज जब भारत के संविधान और लोकतांत्रिक ढांचा ख़तरे में है ख़ामोश रहना पाप है."
"मैं जयंत जी का आभारी हूं पर भारी मन से आरएलडी से दूरी बनाने के लिए मजबूर हूं. भारत की एकता,अखंडता विकास और भाईचारा सर्वप्रिय है. इसे बचाना हर नागरिक की ज़िम्मेदारी और धरम है. धन्यवाद!'' उन्होंने एक्स पर लिखा.
शाहिद सिद्दीक़ी 2002 से 2008 तक उत्तर प्रदेश से राज्यसभा सांसद रहे हैं. वह एक पत्रकार हैं और नई दिल्ली से प्रकाशित उर्दू साप्ताहिक नई दुनिया के मुख्य संपादक भी हैं.
मुस्लिम बुद्धिजीवियों में शाहिद सिद्दीकी का नाम चर्चित है. वह चौधरी अजीत सिंह के बेहद करीबी रहे, लेकिन उन्होंने अब जयंत का साथ छोड़ दिया है. माना जा रहा है कि पार्टी में उन्हें वो तवज्जो नहीं मिल रही थी जिसकी उन्हें उम्मीद थी. यहां तक कि मेरठ में पीएम के मंच पर भी उन्हें जगह नहीं मिली और राज्यसभा की उम्मीदें भी धूमिल होती जा रही थी.
बताया जा रहा है कि हाल के दिनों में जयंत के साथ कोई दूसरा मुस्लिम चेहरा लगातार नजदीक बना हुआ है. यही नहीं बीजेपी के साथ गठबंधन के वक्त भी शाहिद सिद्दीकी समझौता करने वालों में शामिल नहीं थे. इसके अलावा माना जा रहा है कि आरएलडी को राज्यसभा में कोई सीट गठबंधन में आने के बाद नहीं मिली. इससे उन्हें अपना भविष्य इस गठबंधन में नहीं दिखाई दे रहा था.
दूसरी ओर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुसलमान इस गठबंधन को लेकर सहज नहीं थे उन्हें लग रहा था कि 2013 के दंगों का जख्म जो कि सपा और आरएलडी के गठबंधन के बाद से जाटों और मुसलमान के बीच भरने लगा था वह फिर हरा हो सकता है. शाहिद सिद्दीकी अब किस पार्टी का रूख करेंगे यह कहना मुश्किल है, लेकिन कांग्रेस और समाजवादी पार्टी से भी उनके रिश्ते अच्छे रहे हैं.
शाहिद सिद्दीक़ी के इस्तीफे के कुछ ही दिन बाद, 14 अप्रैल को राष्ट्रीय लोकदल के तत्कालीन नेशनल कैम्पेन इंचार्ज प्रशांत कन्नौजिया ने सोशल मीडिया एक्स पर RLD से इस्तीफा देने की जानकारी पोस्ट की थी. उन्होंने दो पेज के इस्तीफा पत्र को साझा करते हुए लिखा था कि, “700 शहीद किसानों के लिए, लखीमपुर खीरी के किसानों के लिए, हाथरस की बेटी के लिए, महिला पहलवानों के लिए, जातिगत जनगणना के लिए, लोकतंत्र के लिए, संविधान बचाने के लिए, RLD party से में इस्तीफ़ा देता हूँ। देश तोड़ने और संविधान को बदलने वाले भाजपा का साथ देना मतलब देश से ग़द्दारी करना।”
RLD से लगातार शीर्ष पदाधिकारियों के इस्तीफे जारी हैं. यह कहना मुश्किल है कि इन इस्तीफ़ों का सिलसिला कब रुकेगा. लेकिन यह स्पष्ट है कि अगर यह सब जारी रहा तो आने वाले समय में पार्टी के सामने अपने अस्तित्व को बचाने की बड़ी चुनौती होगी.
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