जयपुर। "चुनाव में नेता आते हैं। विकास का वादा करते हैं। चुनाव के बाद कोई पलट कर भी नहीं पूछता क्या हो रहा है। पिछली भाजपा सरकार में हमारे गांव के प्राथमिक स्कूल को 6 किलोमीटर दूर माणोंली गांव के स्कूल में मर्ज कर दिया गया। उम्मीद थी कि कांग्रेस सरकार में हमारे गांव के स्कूल में पढ़ाई चालू होगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। दोनों पार्टियों की सरकार दलितों की शिक्षा को लेकर गंभीर नहीं हैं", यह कहना है ससवाईमाधोपुर जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर भाड़ौती-मथुरा मेगा हाइवे किनारे बसी माणोंली बैरवा बस्ती के लोगों का। पहले यह लोग 6 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत तारनपुर के माणोंली गांव में रहते थे। वहां भी रहने की तंगी थी। आजीवीका के लिए खेती की जमीन भी नहीं थी।
गांव के बुजुर्ग नत्थू बैरवा बताते हैं कि 1975 में 25 परिवारों को सड़क किनारे सरकार ने 90 बीघा भूमि आवंटित की थी। भूमि आवंटन के बाद सभी परिवार माणोंली गांव छोड़ कर सड़क किनारे आवंटित भूमि में झोंपड़ी बनाकर रहने लगे। उम्मीद थी कि आवंटित भूमि में खेती कर परिवार का पालन पोषण कर लेंगे, लेकिन किस्मत ने साथ नहीं दिया। जिस क्षेत्र में उन्हें भूमि आवंटित की गई वहां पानी नहीं था। मोरेल बांध की नहर से पानी मिलने पर ही खेती होती है। बारिश कम होने पर अकाल जैसे हालात रहते हैं। रोजगार के लिए दूसरे शहरों तक में जाना पड़ता।
आपको बता दें कि बैरवा समाज अनुसूचित जाति (एससी) के अंतर्गत आते हैं.
पानी की कमी को देखते हुए सरकार ने खेत तलाई (फार्म पोण्ड) योजना शुरू की। इस योजना के तहत किसान को पहले अपने खेत में एक निर्धारित क्षेत्र में खेत तलाई बनानी होती है। इसके बाद सरकार लागत की कुछ राशि अनुदान के रूप में देती है। किसानों ने बताया कि उनके पास इतने पैसे भी नहीं है कि वह फार्म पोण्ड बनवा सके। आज भी उनकी खेती नहर पर निर्भर है। भूमि में खारा पानी है। इसे ना तो खेती में उपयो ग कर सकते हैं। ना ही पीने के काम लिया जा सकता है।
द मूकनायक की टीम भाड़ौती-मथुरा मेगा हाईवे से निकलते हुए माणोंली टापरों के नाम से जानी जाने वाली बैरवा बस्ती पहुंची। यह बस्ती सवाईमाधोपुर जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर है। यहां एक 70 वर्षीय बुजुर्ग महिला अपने कच्चे कोल्हूपोश के घर के आंगन में खड़ी नजर आई। द मूकनायक ने महिला से नाम पूछा तो उसने अपना नाम कल्याणी बैरवा बताया। हमने कल्याणी से बात की तो उनका दर्द जुबां पर आ गया। बुजुर्ग महिला कल्याणी ने द मूकनायक से बात करते हुए कहा कि वह इस घर में अकेली रहती है। चार बेटी हैं। चारों की शादी कर दी। गुजर बसर के लिए पहले मजदूरी करती थी। अब तो बुढ़ापे के कारण कोई मजदूरी भी नहीं देता। 700 रुपए महीना पेंशन मिलती है। बस्ती के लोग भी सहारा लगा देते हैं। राशन में पांच किलो अनाज भी मिलता है। तीन बार ही दाल व तेल मिला है। लेकिन अब बंद हो गया।
वह आगे कहती हैं कि, उन्होंने प्रधानमंत्री आवास योजना के लिए ग्राम पंचायत में आवेदन किया था। आवास योजना के चयनितों की सूची में उसका नाम भी था, लेकिन उसे इस योजना का लाभ नहीं मिला।
कल्याणी लालसोट-सवाईमाधोपुर मेगा हाईवे पर स्थित ग्राम पंचायत मुख्यालय तारनपुर पहुंची। सरपंच व ग्राम विकास अधिकारी से बात की तो उन्होंने कहा कि, "तेर नाम है। अबकी बार तुझे आवास का लाभ मिल जाएगा, लेकिन फिर नाम काट दिया गया। किसने नाम काटा पता नहीं", कल्याणी बैरवा ने द मूकनायक को बताया.
कल्याणी बैरवा कहती हैं कि उसने दो बार कागज भी पंचायत में जमा करवा दिए हैं। हर बार आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला। उन्होंने कहा कि एक बार तारनपुर गांव में एक व्यक्ति ने उससे आवास योजना दिलाने के लिए 12 हजार रुपए मांगे थे। किसने मांगे? पूछने पर बताया कि वह उस व्यक्ति का नाम नहीं जानती। उन्होंने कहा कि "मैं कोई झूठ नहीं बोल रही हूं। मेरे पास पैसे होते तो में आवास खुद ही नहीं बनवा लेती। मैं मर जाऊंगी उसके बाद आवास पास होगा क्या मेरा?" उन्होंने कहा कि "अब मैं बार-बार नहीं जा सकती।"
बुजुर्ग महिला ने कहा कि सरकार ने कहा कि उन्हें मोबाईल फोन देंगे, लेकिन उसे मोबाईल फोन भी नहीं मिला है। वोट के बारे में पूछने पर वह कहती हैं कि जो मेरा काम करवा देगा उसे वोट दे दूंगी। आप करवा दो आपको वोट दे दूंगी। उन्होंने कहा कि पिछली बार पंजे को वोट दिया था।
द मूकनायक टीम बस्ती में अंदर पहुंची तो सामने कुछ युवा खड़े मिले। हमने यहां एक युवा इन्द्रराज बैरवा से बात की। उन्होंने कहा कि "हमारी बस्ती गड्ढे में है। बरसात में घरों में पानी भर जाता है। पहले सड़क किनारे माइनर नहर निकलती थी। इससे बरसात का पानी उसमें निकल जाता था, लकिन जब मेगा हाईवे बनाया गया तो माइनर नहर अवरुद्ध हो गई। अब पानी निकासी नहीं होती।"
इन्द्रराज ने कहा कि, डर के मारे किसी को अपनी समस्या नहीं बता पाते हैं। किसका डर!! पूछने पर उन्होंने बताया कि, "ऊपर राजनीति से जुड़े लोग दबाव डलवा कर चुप करवा देते हैं। अधिकारी भी नहीं सुनते। हमने पिछली वसुंधरा सरकार में विधायक दीयाकुमारी तथा वर्तमान गहलोत सरकार में विधायक दानिश अबरार को व अधिकारियों को अपनी समस्या बताई, लेकिन किसी ने भी समाधान नहीं किया।"
उन्होंने कहा कि, बस्ती में हैण्डपम्प ही पानी का स्रोत है। इनमें भी खारा पानी है। फ्लोराइड की मात्रा अधिक है। बस्ती में आरओ प्लांट लगाने के लिए सरकार से निवेदन किया था, लेकिन सुनवाई नहीं हुई। उन्होंने कहा कि उनकी बस्ती में जनसंख्या कम होने की बात कहकर आरओ प्लांट लगाने से मना कर दिया गया। "ऐसे में हम पूछते हैं कि क्या शुद्ध पानी पीने के लिए जनसंख्या बढ़ानी होगी। हमें पीने के लिए शुद्ध पानी तक नसीब नहीं हो रहा", इन्द्रराज ने कहा.
"हमारी बस्ती में सन् 2000 में राजीव गांधी पाठशाला खोली गई थी। जो बाद में राजकीय प्राथमिक विद्यालय में क्रमोन्नत हो गई। बस्ती के बच्चे कक्षा 5वीं तक स्थानीय स्कूल में ही पढ़ते थे, लेकिन गत भाजपा सरकार में हमारी बस्ती के प्राथमिक स्कूल को भी 6 किलोमीटर दूर माणोंली गांव के सरकारी स्कूल में मर्ज कर दिया। इसका हमने विरोध भी किया था। हमारा विरोध भी जायजा था। बस्ती से दूसरे सरकारी स्कूल तक जाने के लिए मासूम बच्चों को कई किलोमीटर तक मेगा हाइवे पर पैदल चल कर जाना था। यह संभाव नहीं था। हाईवे पर बच्चों की जान को भी खतरा था। मजबूरी में हम लोगों ने सरकारी स्कूल में नहीं भेजकर बच्चों का निजी स्कूलों में दाखिला करवाया," इन्द्रराज बैरवा ने कहा.
इन्द्रराज बैरवा ने आगे कहा, "विभाग की मनमानी से हमारे बच्चे शिक्षा में दी जाने वाली सरकारी योजनाओं से वंचित हो गए। निजी स्कूल के लोग अपना वाहन लेकर बच्चों को घर लेने आते हैं। इसका अतिरिक्त खर्च भी उन्हें ही उठाना पड़ता है। क्या करें..!! बच्चों को पढ़ाना तो पढ़ेगा। कम खा लेंगे, लेकिन बच्चों को तो पढ़ाएंगे। राजनीतिक पार्टियां दलित हितैषी होने का बखान तो करती हैं, लेकिन दलितों की शिक्षा को लेकर कतई गंभीर नहीं है।"
एक अन्य निवासी अखिलेश बैरवा ने कहा कि, "अनुसूचित जाति वर्ग को राजनीति में आबादी के अनुपात हिस्सेदारी नहीं मिल रही है। कांग्रेस हो या बीजेपी दोनों दलों ने अनुसूचित जाति वर्ग के लोगों का केवल राजनीतिक लाभ के लिए उपयोग किया है। ऐसे में राजस्थान के दलित युवा इस बार तीसरे विकल्प की तलाश में है।"
अखिलेश बैरवा ने कहा कि, "हमने 70 सालों में भाजपा और कांग्रेस दोनों को जान लिया है। इन्होंने हमारे लिए कुछ नहीं किया। दलितों को आज तक सामाजिक सुरक्षा की गारंटी नहीं दी गई। यह लोग दलितों के हितैषी होने की बात तो कहते हैं, लेकिन हमदर्दी करते नहीं है। बाबा साहब ने कहा है कि शिक्षित बनो। हम शिक्षित होंगे तो अपने अधिकारों को समझेंगे साथ ही अपना हक हासिल करना भी शिक्षा से सीख पाएंगे। जब युवा पढ़ेगा तो अपनी रक्षा व अधिकारों को समझ पाएगा।"
बस्ती में रहने वाली महिला, जमना देवी बैरवा कहती है कि, "हम बीपीएल में है। परिवार में 8 सदस्यों को 25 किलो अनाज मिलता है प्रति महीने मिलता है। जो हमारा काम करवाएगा हम उसी को वोट देंगे।" जमना देवी ने कहा, "चुनाव में नेता आते हैं। पैरों में गिरकर ढोक देते हैं। हाथ जोड़ते हैं, लेकिन चुनाव के बाद कोई पलट कर नहीं देखता। दोबारा आकर नहीं पूछते क्या हो रहा है।"
"आज हमारी बहन बेटियां सुरक्षित नहीं है। अकेली बहन बेटी को कहीं भेज नहीं सकते। खेतों में बाजार में हर जगह अत्याचार हो रहा है। दौसा जिले के राहुवास में पुलिसकर्मी ने ही एक मासूम बच्ची के साथ दुष्कर्म किया। मतलब रक्षक ही भक्षक बन गए। दलितों को राजनीति में आगे आना चाहिए। तब ही इस समाज का भला हो सकता है", लोखराज बैरवा ने कहा.
दिव्यांग किशोर की मां कमला बैरवा कहती है कि, उसके बेटे का एक पैर सड़क दुर्घटना में कट गया। सरकार से कोई मदद नहीं मिली। एक बार स्थानीय विधायक को समस्या बताई थी। उनके कहने पर जिला मुख्यालय गए थे, लेकिन बेटे को ट्राइसाइकिल नहीं दी गई। कमला ने कहा कि उसके बेटे का दिव्यांग प्रमाण पत्र भी नहीं बना है।
स्थानीय निवासी कजोड़ी देवी ने कहा कि हम गरीब लोग हैं। हमारी कोई सुनता ही नहीं। इस बार जो हमारा काम करेगा उसी को वोट देंगे। सरकार ने मोबाईल फोन बांटा है। लेकिन हमारी बस्ती में किसी को नहीं दिया। विधवा और पढ़ने वाली बच्चिायों को भी नहीं दिया गया। कजोड़ी ने बेबाकी से सरकारों से सवाल करते हुए कहा कि, "राशन के नाम पर आप पांच किलो अनाज देते हो। आप कितना खाते हो कभी महसूस किया। कम से कम इस हिसाब से तो अनाज देते।"
उन्होंने कहा कि, वोट लेने के बाद कोई राम-राम भी नहीं करता। हमपर दबाव बनाकर हमारा वोट हथिया लिया जाता है। हमने कभी वोट के बदले एक पैसा नहीं लिया। मैंने खुद विधायक को रोक कर हमारी समस्या बताई थी, लेकिन समाधान नहीं हुआ। जो काम करेगा उसी को वोट देंगे।
सड़क किनारे बने बाड़ेनुमा एक घर के बाहर अपनी दाढ़ी बना रहे एक सुरज्ञान बैरवा से समस्याओं के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि "गरीबी ही मेरी समस्या है। पानी भी खारा है। पीने के लिए कम से कम मीठा पानी तो मिले।"
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