MP: कांग्रेस विधायक सप्रे की सदस्यता रद्द के दस्तावेज़ विधानसभा से गुम, कोर्ट का रुख करेगी कांग्रेस

विधायक निर्मला सप्रे पर लंबे समय से पार्टी विरोधी गतिविधियों में संलिप्त होने के आरोप लगे हैं। कांग्रेस का कहना है कि सप्रे ने हाल ही में भाजपा के प्रदेश कार्यालय में आयोजित एक बैठक में भाग लिया था, जो पार्टी विरोधी गतिविधियों का प्रमाण है।
फाइल फोटो
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भोपाल। मध्य प्रदेश के सागर जिले के बीना विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस विधायक निर्मला सप्रे की सदस्यता समाप्त करवाने को लेकर कांग्रेस अब कानूनी रास्ता अपनाने की तैयारी कर रही है। कांग्रेस के नेताओं ने आरोप लगाया है कि विधानसभा सचिवालय में दलबदल विरोधी कानून के तहत नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार द्वारा 90 दिन पहले दी गई याचिका पर कोई निर्णय नहीं लिया गया है, जबकि इस याचिका पर समय सीमा के भीतर फैसला लिया जाना चाहिए था। कांग्रेस का कहना है कि अब सचिवालय द्वारा दस्तावेज़ गुमने का बहाना बनाकर मामले को जानबूझकर टालने का प्रयास किया जा रहा है।

कांग्रेस की ओर से नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने सोमवार को मीडिया से बातचीत के दौरान कहा कि "हमने बीना सीट से कांग्रेस विधायक निर्मला सप्रे के दलबदल से जुड़े सभी दस्तावेज़ जमा किए थे। सचिवालय की ओर से इस पर दो बार नोटिस भी जारी किया गया, लेकिन यह केवल औपचारिकता बनकर रह गई।" उन्होंने कहा कि दलबदल विरोधी कानून के तहत विधानसभा अध्यक्ष को 90 दिनों के भीतर निर्णय लेना होता है, परंतु इसके बावजूद अब तक कोई फैसला नहीं हुआ है। कांग्रेस नेताओं का मानना है कि सचिवालय की यह देरी और टालमटोल का रवैया इस मामले को दबाने का प्रयास है।

दस्तावेज गुमने का बहाना

कांग्रेस नेताओं का यह भी आरोप है कि अब यह कहकर मामले को खींचा जा रहा है कि दस्तावेज गुम हो गए हैं, और इन्हें दोबारा जमा करने की आवश्यकता है। उमंग सिंघार का कहना है कि "हमें अब इस बात का भरोसा नहीं रह गया है कि निष्पक्ष तरीके से इस मामले में कोई कार्रवाई होगी। सचिवालय की ओर से बार-बार दस्तावेज की मांग करना केवल एक बहाना है।" कांग्रेस ने अब इस मामले को कोर्ट में ले जाने का निर्णय लिया है और इस संदर्भ में वरिष्ठ अधिवक्ताओं से भी चर्चा की गई है। कांग्रेस नेताओं ने आशंका जताई है कि कोर्ट में जाने के बाद ही इस मामले में निष्पक्षता से सुनवाई हो पाएगी।

निर्मला सप्रे पर पार्टी विरोधी गतिविधियों का आरोप

निर्मला सप्रे पर लंबे समय से पार्टी विरोधी गतिविधियों में संलिप्त होने के आरोप लगे हैं। कांग्रेस का कहना है कि सप्रे ने हाल ही में भाजपा के प्रदेश कार्यालय में आयोजित एक बैठक में भाग लिया था, जो पार्टी विरोधी गतिविधियों का प्रमाण है। दलबदल कानून के तहत इस प्रकार की गतिविधियाँ गंभीर मानी जाती हैं और इस पर विधानसभा अध्यक्ष को समय सीमा के भीतर निर्णय लेना चाहिए था। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि सप्रे की गतिविधियाँ स्पष्ट रूप से पार्टी के आदर्शों और नीतियों के खिलाफ हैं, और इस कारण से उनकी सदस्यता रद्द की जानी चाहिए।

विधानसभा प्रमुख सचिव ने कहा- 'गायब नहीं हुए कागज'

विधानसभा के प्रमुख सचिव एपी सिंह ने दस्तावेज गुमने के आरोपों को नकारते हुए कहा कि "ऐसी कोई बात नहीं है कि दस्तावेज गुम हो गए हैं। हमने केवल यह जानने के लिए पूछा है कि क्या विधायक दल या पार्टी की ओर से सप्रे के खिलाफ कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई है।" उनका कहना है कि दस्तावेज़ को लेकर सचिवालय की प्रक्रिया साफ और निष्पक्ष है, और किसी भी तरह का विलंब नहीं किया जा रहा है। प्रमुख सचिव के इस बयान के बाद कांग्रेस नेताओं के आरोप और अधिक गहराने लगे हैं, और पार्टी अब इसे सचिवालय द्वारा मामले को टालने का एक प्रयास मान रही है।

कांग्रेस जाएगी हाईकोर्ट कोर्ट

कांग्रेस ने अब इस मुद्दे पर न्यायिक मार्ग अपनाने का निर्णय लिया है। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि हाईकोर्ट ही अब इस मामले में उचित निर्णय ले सकता है और सप्रे की सदस्यता समाप्त करने की प्रक्रिया को आगे बढ़ा सकता है। कांग्रेस का कहना है कि दलबदल विरोधी कानून के तहत साफ-साफ दिशानिर्देश हैं, जिनका पालन होना चाहिए। कांग्रेस की योजना है कि जल्द ही हाईकोर्ट में याचिका दायर की जाएगी ताकि निष्पक्ष निर्णय की उम्मीद की जा सके।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है की यह मामला केवल दलबदल कानून से ही संबंधित नहीं है, बल्कि इसकी पृष्ठभूमि में राजनीतिक दलों के बीच आपसी संघर्ष भी नज़र आ रहा है। कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा के साथ मिलकर निर्मला सप्रे पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल हो रही हैं, जो पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचा रहा है। कांग्रेस के नेताओं का यह भी मानना है कि सप्रे पर कोई कड़ी कार्रवाई न होने से अन्य विधायकों में भी पार्टी अनुशासन को लेकर गलत संदेश जाएगा।

क्या कहता है दलबदल विरोधी कानून?

दलबदल विरोधी कानून के अनुसार, अगर कोई विधायक पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में शामिल होता है या पार्टी की आधिकारिक लाइन के खिलाफ काम करता है, तो उस विधायक की सदस्यता रद्द की जा सकती है। इसके लिए संबंधित पार्टी या उसके नेता को स्पीकर के पास शिकायत दर्ज करानी होती है, जिसके आधार पर स्पीकर को 90 दिन के भीतर निर्णय लेना होता है। कांग्रेस का कहना है कि इस मामले में सभी कानूनी प्रक्रियाएं पूरी की जा चुकी हैं, लेकिन अभी तक निर्णय में देरी हो रही है, जो कानून के खिलाफ है।

निर्मला सप्रे की सदस्यता समाप्त करने के लिए कांग्रेस द्वारा कोर्ट जाने का फैसला इस विवाद को और बढ़ा सकता है। कांग्रेस का आरोप है कि विधानसभा अध्यक्ष का फैसला टालने का रवैया संविधान के प्रावधानों के विपरीत है।

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