भोपाल। मध्य प्रदेश में कांग्रेस से भाजपा में आए नेताओं की स्थिति राजनीतिक अनिश्चितता और असंतोष का कारण बन रही है। लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामने वाले एक नेता को मंत्री पद का इनाम मिला, तो कई अभी भी प्रतीक्षा सूची में हैं। कांग्रेस के कद्दावर नेता रामनिवास रावत को भाजपा में शामिल होने के बाद मंत्री पद से नवाज़ा गया, लेकिन छिंदवाड़ा के अमरवाड़ा से विधायक कमलेश शाह और बीना विधायक निर्मला सप्रे को भाजपा से वादा तो मिला, लेकिन वह आज भी असमंजस में हैं। स्थिति यह है कि विधायक सप्रे कन्फ्यूजन में हैं.
कमलेश शाह का मामला भाजपा में तेजी से बढ़ रहे असंतोष का प्रतीक बन चुका है। छिंदवाड़ा, जो कांग्रेस और पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ का गढ़ माना जाता है, उसमें भाजपा को जीत दिलाने में कमलेश शाह की प्रमुख भूमिका रही थी। कांग्रेस से त्यागपत्र देकर शाह ने उपचुनाव में जीत दर्ज की, जिसके बाद माना जा रहा था कि उन्हें मंत्री पद से नवाज़ा जाएगा। आदिवासी वर्ग से आने वाले शाह को भाजपा ने मंत्री पद का आश्वासन देकर पार्टी में शामिल किया था, लेकिन अब तक यह वादा पूरा नहीं हुआ!
छिंदवाड़ा जिले की सात विधानसभा सीटों में भाजपा का एक भी विधायक नहीं था, जब तक शाह ने पार्टी का दामन नहीं थामा था। शाह को मंत्री बनाए जाने की उम्मीद थी, लेकिन भाजपा के भीतर कांग्रेस से आए अन्य नेताओं को मंत्री पद दिए जाने के बाद शाह का मामला ठंडे बस्ते में जाता दिख रहा है। भाजपा के भीतर बढ़ते असंतोष और शाह को दिए गए आश्वासन के पूरा न होने के कारण अब पार्टी के भीतर खटास बढ़ने लगी है।
बीना से कांग्रेस की एससी सीट से विधायक निर्मला सप्रे की भाजपा में एंट्री भी विवादों में घिर गई है। भाजपा से हरी झंडी न मिलने के कारण उन्होंने अभी तक कांग्रेस से त्यागपत्र नहीं दिया है। अब सप्रे राजनीतिक अनिश्चितता में फंसी हुई हैं। कांग्रेस ने सप्रे के विरुद्ध अभियान छेड़ रखा है और उनके विधानसभा से सदस्यता खत्म करने की मांग कर रही है। बीना में कांग्रेस ने उनके खिलाफ प्रदर्शन कर उनकी स्थिति और भी मुश्किल कर दी है। कांग्रेस द्वारा उनकी सदस्यता शून्य मामले में उन्होंने 10 अक्टूबर को विधानसभा अध्यक्ष को अपना जवाब भेजा, जिसमें उन्होंने कहा कि वह कांग्रेस पार्टी की ही सदस्य हैं। और उन्होंने कोई दूसरा राजनीतिक दल की सदस्यता नहीं ली। जबकि बीना में निर्मला सप्रे ने भाजपा में जाने का खुद एलान किया। हालांकि यह मामला विधानसभा में विचाराधीन है।
रामनिवास रावत की कहानी कुछ अलग है। कांग्रेस से भाजपा में शामिल होते ही उन्हें विजयपुर विधानसभा क्षेत्र से उपचुनाव का सामना करना पड़ेगा। हालांकि, रावत को मंत्री पद का लाभ मिला, और अब वे वन एवं पर्यावरण मंत्री के रूप में कैबिनेट का हिस्सा हैं। रावत ने कांग्रेस का त्यागपत्र तब दिया जब उन्हें मंत्री पद की शपथ राज्यभवन में कराई गई थी।
भाजपा में शामिल होने वाले कांग्रेस नेताओं का मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की कैबिनेट में भी दबदबा बना हुआ है। इनमें से इंदौर के तुलसी सिलावट जल संसाधन मंत्री, ग्वालियर के प्रद्युम्न सिंह तोमर ऊर्जा मंत्री, और सागर जिले के गोविंद सिंह राजपूत खाद्य नागरिक आपूर्ति उपभोक्ता संरक्षण मंत्री के रूप में कार्यरत हैं। इन नेताओं ने भाजपा के भीतर अपना मजबूत प्रभाव बनाया है और शिवराज सिंह चौहान के पिछले कार्यकाल में भी मंत्री पद पर थे। यह सभी ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भाजपा में शामिल हुए थे।
कृषि मंत्री एदल सिंह कंषाना और परिवहन एवं स्कूल शिक्षा मंत्री उदय प्रताप सिंह भी कांग्रेस से भाजपा में आए नेताओं में शामिल हैं। हालांकि, कैबिनेट में अभी भी तीन पद खाली हैं, जिससे अन्य नेताओं की उम्मीदें जिंदा हैं।
कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए नेताओं की राजनीतिक अनिश्चितता और आंतरिक असंतोष भाजपा के लिए बड़ी चुनौती साबित हो रही है। आदिवासी वर्ग से आने वाले कमलेश शाह जैसे नेताओं को मंत्री पद दिए जाने का आश्वासन अब पार्टी के भीतर विवाद का कारण बन रहा है। वहीं, निर्मला सप्रे की स्थिति भी असमंजस में है, और कांग्रेस से आए अन्य नेताओं के तेजी से बढ़ते प्रभाव के कारण भाजपा के पुराने नेताओं में असंतोष का माहौल बनता जा रहा है।
मध्य प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए नेताओं की स्थिति अब चुनौतीपूर्ण हो गई है। जहां कुछ नेताओं को मंत्री पद का इनाम मिला है, वहीं कई अभी भी वादों के पूरा होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। भाजपा के भीतर असंतोष और राजनीतिक अनिश्चितता ने पार्टी के भीतर एक नए समीकरण को जन्म दिया है, जो आने वाले समय में भाजपा के लिए नई चुनौतियां खड़ी कर सकता है।
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