भोपाल। बुंदेलखंड की टीकमगढ़ लोकसभा सीट पर इस बार कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी बदला है, वहीं भाजपा से केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र कुमार को फिर चुनाव लड़ने का मौका मिला है। अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित टीकमगढ़ लोकसभा सीट पर इस बार परिणाम बदल सकते हैं। राजनीतिक विश्लेषक यह मान रहे हैं कि कांग्रेस के पंकज अहिरवार को फायदा मिल सकता है। जबकि केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र कुमार की निष्क्रियता और बाहरी प्रत्याशी होने के कारण उन्हें नुकसान उठाना पड़ सकता है।
2019 के लोकसभा चुनाव में टीकमगढ़ सीट से कांग्रेस ने किरन अहिरवार को चुनावी मैदान में उतारा था, लेकिन वह भारी वोटों से चुनाव हार गईं थी। इस बार पार्टी ने पंकज अहिरवार को प्रत्याशी बनाया है। भाजपा को प्रधानमंत्री मोदी लहर और किए गए विकास कार्यों पर भरोसा है, तो कांग्रेस की ताकत अहिरवार समाज का वोट है, जो क्षेत्र में सबसे ज्यादा लगभग 6 लाख है।
भाजपा के वीरेंद्र कुमार बाहरी हैं, इसके अलावा वह खटीक समाज से आते हैं, इस समाज का वोट लोकसभा क्षेत्र में एक प्रतिशत भी नहीं हैं। इसका कुछ नुकसान चुनाव में हो सकता है। कांग्रेस ने जातीय समीकरण और क्षेत्रीय कांग्रेसी युवा नेता को टिकट देकर राजनीतिक विसात बिछाई है। कांग्रेस को उम्मीद है कि इस सियासी कदम से सफलता मिल सकती है।
भाजपा प्रत्याशी मंत्री वीरेंद्र कुमार को क्षेत्र में व्याप्त समस्याएं भी नुकसान पहुँचा सकती है। बुंदेलखंड आर्थिक और शिक्षा दोनों में ही पीछे है। यहां तक कि स्वास्थ्य व्यवस्था भी खस्ताहाल है। टीकमगढ़ जिले में गंभीर बीमारी और इमरजेंसी में झांसी, ग्वालियर, दिल्ली और भोपाल जाना पड़ता है। इसके साथ ही रोजगार के अवसर न होना ऐसी ही समस्याएं भाजपा को नुकसान पहुँचा सकती हैं।
टीकमगढ़ से भाजपा प्रत्याशी वीरेंद्र कुमार 2009 से पहले सागर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ते और जीतते थे। तब सागर लोकसभा सीट अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित थी। वीरेंद्र यहां 1996 से 2004 तक लगातार चार लोकसभा चुनाव लड़े और जीते लेकिन इसके बाद परिसीमन में सागर सीट सामान्य हो गई। भाजपा नेतृत्व ने इसके बाद भी वीरेंद्र पर भरोसा कायम रखा और उन्हें टीकमगढ़ से प्रत्याशी बनाया जाने लगा। यहां भी वे चौथा चुनाव लड़ रहे हैं और हर बार की तरह इस बार भी टीकमगढ़ में वीरेंद्र के बाहरी होने को मुद्दा बनाया जा रहा है। भाजपा के अंदर भी इसे लेकर असंतोष की खबरें मिल रही हैं।
2008 में परिसीमन के बाद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित टीकमगढ़ लोकसभा सीट का गठन हुआ था। तब से ही यहां से भाजपा जीत रही है। इसके साथ ही लगातार जीत का अंतर भी बढ़ रहा है। भाजपा ने लगातार चौथी बार यहां से वीरेंद्र कुमार को प्रत्याशी बनाया है। वे 2009 में पहला लोकसभा चुनाव 41 हजार 862 वोटों के अंतर से जीते थे। 2014 के चुनाव में उनकी जीत का अंतर 2 लाख 8 हजार से ज्यादा हो गया। वीरेंद्र ने 2019 में अपनी निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस की किरन अहिरवार को साढ़े तीन लाख वोटों के बड़े अंतर से हराया था।
इस बार फिर कांग्रेस को भी मजदूरों के पलायन का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। पलायन करने वाले ज्यादातर मजदूर अहिरवार समाज के होते हैं। भाजपा-कांग्रेस दोनों दलों ने मोर्चाबंदी शुरू कर दी है। इस बार टीकमगढ़ में वीरेंद्र और पंकज के बीच मुकाबला रोचक देखने को मिल सकता है।
द मूकनायक से बातचीत करते हुए टीकमगढ़ जिले के जतारा नगर के रहवासी अक्षय कुशवाहा ने बताया कि इस बार भाजपा और कांग्रेस दोनों के बीच में ही काटें का मुकाबला होगा। बीजेपी सरकार ने जिस तरह के दावे और वादे किए उस तरह से क्षेत्र का विकास नहीं हो पाया है। जनता में मंत्री वीरेंद्र कुमार को लेकर नाराजगी है। सरकार में होने के कारण लोग खुलकर बोलने में डर रहे हैं, आंतरिक विरोध तेज हो रहा है।
टीकमगढ़ शहर की एक उच्च शिक्षा की छात्रा बताती हैं कि, पूरा जिला पिछड़ेपन से उबर नहीं पा रहा है। जिसकी जिम्मेदार वर्तमान भाजपा की सरकार है। जब भी मैं टीकमगढ़ जाती हूँ, कोई विकास दिखाई नहीं देता। ग्रामीण इलाकों की हालत तो और भी ज्यादा खराब है।
इधर, छतरपुर के अंकित तिवारी ने बताया कि, "भाजपा सरकार सराहनीय काम करती है। आज गांव-गाँव तक पक्की सड़क, बिजली, पानी पहुँच रहा है। सिंचित खेती के रकबा में भी बढोत्तरी हुई है। मंत्री वीरेंद्र ने बहुत विकास कार्य किए है। इस बार भी उनकी जीत पक्की है।"
टीकमगढ़ क्षेत्र में तीन जिलों की विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें निवाड़ी जिले की 2, टीकमगढ़ जिले की 3 और छतरपुर जिले की 3 विधानसभा सीटें शामिल हैं। विधानसभा चुनाव की ताकत के लिहाज से इनमें से 5 पर भाजपा और 3 सीटों पर कांग्रेस के विधायक हैं।
यदि विधानसभा से इसे देखें तो, इस आधार पर क्षेत्र में भाजपा मजबूत स्थिति में है। विधानसभा चुनाव में मिले वोटों की दृष्टि से भाजपा ने सभी 5 क्षेत्रों में बड़ी जीत दर्ज की है जबकि कांग्रेस की जीत का अंतर कम रहा है। 5 विधानसभा सीटों में भाजपा की जीत 94 हजार 419 वोटों से हुई है जबकि कांग्रेस का तीन सीटों में जीत का अंतर महज 19 हजार 66 वोट है। इस प्रकार टीकमगढ़ लोकसभा क्षेत्र में भाजपा को कांग्रेस पर 75 हजार से ज्यादा वोटों की बढ़त हासिल है।
होली के बाद खेतों में कटाई के दौरान ही क्षेत्र का मजदूर बाहर पलायन करता है। इनमें अहिरवार समाज के मजदूरों की संख्या सबसे ज्यादा होती है। मतदान तक इन्हें रोकना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती होगी।
दूसरा कारण यह भी है कि, अहिरवार समाज का अन्य समाजों के साथ मेल जोल कम है। इसका कारण बुंदेलखंड क्षेत्र में फैला जातिवाद है, इसकी वजह से जहां अहिरवार समाज जाता है, दूसरे समाज अपने आप दूसरे पाले में चले जाते हैं। यही वजह है कि किरन अहिरवार 2019 में लोकसभा का चुनाव बड़े अंतर से हारी थीं और चार माह पहले जतारा से विधानसभा का चुनाव भी हार गईं जबकि जतारा में भाजपा प्रत्याशी हरिशंकर खटीक का काफी विरोध था।
कांग्रेस ने अहिरवार समाज के युवा पंकज अहिवार को प्रत्याशी बनाया है। क्षेत्र में अहिरवार समाज के मतदाताओं की तादाद सबसे ज्यादा 6 लाख के आसपास है। सिर्फ यह वोट ही पंकज को मिल जाए तो वे मुकाबले में होंगे।
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