देश में मोदी लहर कमजोर फिर भी एमपी की सभी सीटें क्यों हारी कांग्रेस?

मध्य प्रदेश में पहली बार भाजपा ने लोकसभा चुनाव में सभी 29 सीटों पर क्लीन स्वीप किया है। 1980 से 2024 तक हुए 12 चुनावों में यह पहला मौका।
देश में मोदी लहर कमजोर फिर भी एमपी की सभी सीटें क्यों हारी कांग्रेस?
इंटरनेट
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भोपाल। मध्य प्रदेश लोकसभा चुनाव में बीजेपी को ऐतिहासिक जीत मिली है। यहां भाजपा ने क्लीन स्वीप कर सभी 29 सीटों पर जीत दर्ज की है। राजनीतिक विश्लेषक मानते है कि देश में लोकसभा चुनाव के पूर्व से ही मोदी लहर पिछले दो चुनाव के मुताबिक बेहद कमजोर थी।

भाजपा के कार्यकर्ताओं में उत्साह का कम होना और दूसरा मोदी और शाह की सभाओं में भीड़ का ग्राफ कम रहना, यह देखकर मोदी लहर कमजोर होने का अनुमान लगाया जा रहा था। द मूकनायक ने मध्य प्रदेश में कांग्रेस की करारी हार पर पडताल की है, पढ़िए हमारी ये रिपोर्ट.

मध्य प्रदेश में पहली बार भाजपा ने लोकसभा चुनाव में सभी 29 सीटों पर क्लीन स्वीप किया है। 1980 से 2024 तक हुए 12 चुनावों में यह पहला मौका है, जब प्रदेश की सभी लोकसभा सीटों पर भाजपा के सांसद काबिज हो गए है।

बता दें, वर्ष 1984 में कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में एमपी में क्लीन स्वीप किया था। वर्ष 2000 से पहले अविभाजित मध्यप्रदेश में लोकसभा की 40 सीटें थीं। इन सभी सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवार जीते थे। अब ठीक 40 साल बाद 2024 में भाजपा ने सभी 29 सीटों पर कब्जा जमा लिया है।

राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक इस बार देश में मोदी लहर नहीं थी। इसलिए महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तरप्रदेश जैसे बड़े राज्यों में भाजपा की सीटें घट गईं, लेकिन मध्य प्रदेश में भाजपा ने सभी सीटें जीत कर इतिहास रच दिया।

कांग्रेस के दिग्गज भी हारे

पिछली बार 2019 के चुनाव में छिंदवाड़ा से कांग्रेस के नकुलनाथ जीते थे, बाकी 28 सीटों पर भाजपा का कब्जा था। लेकिन इस बार कांग्रेस की एक मात्र सीट छिंदवाड़ा पर भी भाजपा ने कब्जा जमा लिया है। यह सीट कमलनाथ-नकुलनाथ की परंपरागत सीट मानी जाती थी। प्रदेश में कांग्रेस को उम्मीद थी कि 10 से 12 सीट पर कड़ी टक्कर के बाद 3-4 सीटों पर जीत दर्ज हो सकती है, लेकिन कांग्रेस के दिग्गजों को भी हार का मुंह देखना पड़ा है।

पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी चुनाव हार गए राजगढ़ सीट से बीजेपी प्रत्याशी रोडमल नागर से वह लगभग 1,46,000 वोटो से चुनाव हार गए हैं। इसी तरह पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ छिंदवाड़ा सीट से 1,13,000 वोटों से बीजेपी के बंटी साहू से चुनाव हार गए। जबकि रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीट पर पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया को बीजेपी की अनीता नागर चौहान 2,07,000 वोटों से चुनाव हरा दिया।

कांग्रेस छोड़ भाजपा में पहुँचे नेता...

चुनाव शुरू होने के पहले हर रोज खबर आने लगी कि कांग्रेस का एक और नेता बीजेपी शामिल हो गया। कमलनाथ जैसे पुराने नेता की जगह पर जीतू पटवारी जैसे कम अनुभव वाले नेता को चुनाव के 4 महीने पहले मध्य प्रदेश जैसे राज्य की जिम्मेदारी सौंपना भी उलटा पड़ गया। चुनाव से ठीक पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी का कांग्रेस छोड़कर भाजपा में चले जाना, अक्षय कांति बम जिसको कांग्रेस ने इंदौर से प्रत्याशी बनाया उन्होंने नामंकन वापस लेकर भाजपा भाजपा जॉइन करना। खजुराहो सीट से इंडिया अलायंस की बंटवारे की सीट से समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी का नामंकन निरस्त हो जाने के कारण भाजपा के पक्ष में हवा बनी थी। जिसकों कांग्रेस समझने में पूरी तरह नाकाम रही।

बीजेपी बूथ मैनेजमेंट से हारी

मध्य प्रदेश में बीजेपी का बूथ लेवल का मैनेजमेंट काफी स्ट्रांग था। हर बूथ पर सक्रिय कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी चुनाव ऐलान के बाद सौंप दी गई थी। भाजपा ने मंडल स्तर से चुनाव को कसने की कोशिश की थी। वहीं कांग्रेस का संगठन काफी कमजोर था। कुछ बूथों पर एजेंट की व्यवस्था तक नहीं थी।

भाजपा के मजबूत बूथ मैनेजमेंट के कारण 29 सीटों में से करीब 25 सीटों पर पार्टी ने एक लाख से अधिक वोटों से जीत हासिल की। बीजेपी ने अर्ध पन्ना प्रमुखों की नियुक्ति की थी जिनकी जिम्मेदारी वोटर लिस्ट में शामिल आधे लोगों को बीजेपी को वोट दिलवाने की थी। इसके अलावा पार्टी ने त्रिदेव की नियु्क्ति की थी। इसमें बूथ लेवल एजेंट, बूथ इंचार्ज इसमें बूथ अध्यक्ष शामिल थे। इसके ठीक उलट कांग्रेस के पास इस तरह की कोई योजना नहीं थी। अधिकतर जगहों पर अपने स्थानीय नेता के साथ ग्रासरूट लेवल के कार्यकर्ता भी पार्टी छोड़कर बीजेपी में चले गए थे। पार्टी को इतना मौका ही नहीं मिला कि नए लोगों की नियुक्ति की जा सके।

स्थानीय मुद्दे नहीं भुना सकी कांग्रेस

उत्तरप्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र में भाजपा को हुए भारी नुकसान से यह अनुमान लगाया जा रहा है कि वर्तमान चुनाव में मोदी लहर के गुम होने के बावजूद भी एमपी में जनता ने कांग्रेस को नकार दिया है।

राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक जिन स्थानीय मुद्दों पर चुनाव लड़ा जाना चाहिए था, उन्हें कांग्रेस भुनाने में पूरी तरह असफल रही है। जबकि भाजपा ने अपनी योजनाओं को आगे कर वोट मांगे। चुनाव के समय से ही मोदी लहर का असर कम दिखाई पड़ रहा था, लेकिन भाजपा का मजबूत संगठन और राज्य सरकार की योजनाओं ने बीजेपी को सफलता दिलाई है। इन योजनाओं में लाडली बहना जैसी गेम चेंजर योजना का योगदान माना जा रहा है।

बड़े नेताओं के चुनाव नहीं लड़ने से भी हुआ नुकसान

मध्य प्रदेश में बड़े नेताओं का चुनाव लड़ने से मना करना भी मध्य प्रदेश कांग्रेस के लिए भारी पड़ गया। गोविंद सिंह और अजय सिंह जैसे लोगों ने चुनाव लड़ने में अपनी असमर्थता जता दी। केवल पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिह ने चुनाव लड़ने की इच्छा जताई। उन्होंने काफी मेहनत भी की पर चुनाव जीतने में असफल रहे। क्योंकि राज्य में मतदाताओं तक पहले ही यह संदेश चला गया था कि कांग्रेस नेता अनमने ढंग से चुनाव लड़ रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषक यह भी मानते है कि कांग्रेस की बड़े नेताओं ने प्रदेश की सीटों पर कोई काम नहीं किया।

पूर्व नेता प्रतिपक्ष ने उठाए सवाल

कांग्रेस की करारी हार पर चिंता व्यक्त करते हुए, पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने कहा, "मैं प्रदेश पार्टी अध्यक्ष जीतू पटवारी के कार्यकाल की उच्च स्तरीय समीक्षा की मांग करता हूं. ना सिर्फ पार्टी को अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा, बल्कि बड़ी संख्या में नेताओं और कार्यकर्ताओं ने पार्टी छोड़ दी। इसके लिए उन्हें पार्टी छोड़ने से रोकने के लिए उठाए गए कदमों पर भी चर्चा करनी चाहिए।" एक राष्ट्रीय चैनल को इंटरव्यू देते हुए अजय सिंह ने मांग की कि चुनाव में पार्टी की हार के कारणों का पता लगाया जाना चाहिए।

अजय सिंह ने पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि यह दोनों ही नेता अपने गृह क्षेत्र से बाहर क्यों नहीं निकले और चुनाव में इन्होंने किसके लिए प्रचार किया, इसका पता भी नेतृत्व को करना चाहिए।

अजय सिंह ने कहा, "पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी और विधायक रामनिवास रावत जैसे नेताओं ने पार्टी छोड़ी। साथ ही उन्होंने कहा कि स्वार्थी नेताओं ने जब संकट के समय पार्टी छोड़ दी है, तो उन्हें कभी वापस नहीं लिया जाना चाहिए।"

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