नई दिल्ली। महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण आंदोलन का चेहरा बने मनोज जरांगे पाटिल ने इस बार एक अनोखी पहल करते हुए मराठा, मुस्लिम और दलित समुदायों को एक साथ लाने की रणनीति बनाई है। राज्य में आगामी विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए उन्होंने जालना जिले के अंतरवाली सराटी में मुस्लिम धर्मगुरु सज्जाद नोमानी और दलित नेता आनंदराज अंबेडकर के साथ एक बैठक की, जिसमें एक साझा रणनीति पर चर्चा की गई। इस बैठक के बाद तीनों ने एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की, जिसमें उन्होंने अपनी एकजुटता और आगामी चुनावों में एक साझा न्यूनतम कार्यक्रम के तहत साथ आने की योजना का ऐलान किया।
बैठक में मनोज जरांगे ने स्पष्ट किया कि महाराष्ट्र में राजनीतिक संतुलन को बदलने के लिए मराठा, मुस्लिम और दलित समुदायों को साथ आना होगा। उन्होंने मराठा समुदाय से अपील की कि वे अपने अधिकारों और पहचान को बचाने के लिए दलित और मुस्लिम उम्मीदवारों को समर्थन दें। उन्होंने कहा, "हमें एकता के साथ उन ताकतों का सामना करना है, जिन्होंने हमारे समुदायों को दबाने और बांटने का काम किया है। सत्ता के खिलाफ हमें एकजुट होने की जरूरत है।"
मनोज जरांगे की इस अपील का मुस्लिम धर्मगुरु सज्जाद नोमानी और आनंदराज अंबेडकर ने भी समर्थन किया। सज्जाद नोमानी ने बीजेपी पर देश को धार्मिक आधार पर बांटने का आरोप लगाते हुए कहा, "देश में नफरत फैलाने वाले तत्वों का सामना करने के लिए एकीकृत मोर्चा आवश्यक है। हमारा प्रयास केवल चुनावों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह पूरे देश के लिए एक नया उदाहरण पेश करेगा।"
प्रेस कॉन्फ्रेंस में सज्जाद नोमानी ने बताया कि तीनों समुदायों के नेताओं ने मिलकर एक साझा न्यूनतम कार्यक्रम तैयार करने का निर्णय लिया है। इसका उद्देश्य उन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना है, जो इन समुदायों की आम समस्याओं का समाधान कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि यह एकता महाराष्ट्र तक ही सीमित नहीं रहेगी, बल्कि इसका असर पूरे देश में दिखेगा।
दलित नेता राजरत्न आंबेडकर और आनंदराज अंबेडकर ने भी इस एकता का स्वागत किया और इसे जड़ जमाई सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए आवश्यक बताया। उन्होंने कहा कि दलित, मुस्लिम और मराठा एकता राज्य में राजनीतिक बदलाव की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।
मराठा आरक्षण की मांग के चलते महाराष्ट्र में बीते कुछ सालों में कई आंदोलनों की लहरें उठी हैं। मनोज जरांगे द्वारा शुरू किए गए इस आंदोलन को कई बार राज्य में व्यापक समर्थन मिला है। हालांकि, मराठा आंदोलन को सफलता नहीं मिलने के बावजूद जरांगे का यह नया कदम यह दर्शाता है कि अब इस मुद्दे को केवल मराठा समुदाय का मुद्दा न मानकर, व्यापक सामाजिक मुद्दे के रूप में देखा जा रहा है। मुस्लिम और दलित नेताओं के साथ आकर जरांगे ने यह स्पष्ट कर दिया है कि उनका उद्देश्य सिर्फ आरक्षण तक सीमित नहीं है, बल्कि महाराष्ट्र की राजनीति में एक मजबूत सामाजिक एकजुटता स्थापित करना है।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के संदर्भ में इस गठबंधन का सीधा असर चुनावी गणित पर पड़ सकता है। राज्य की 288 विधानसभा सीटों पर 20 नवंबर को एक चरण में मतदान होगा, जबकि मतगणना 23 नवंबर को होगी। महाराष्ट्र में चुनावी माहौल पहले से ही गर्म है, और इस गठबंधन के कारण राज्य के प्रमुख राजनीतिक दलों को अपनी रणनीतियों पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है।
इस एकजुटता से राज्य के ग्रामीण और शहरी इलाकों में एक बड़ा प्रभाव पड़ने की संभावना है। जहां मराठा आंदोलन का प्रभाव ग्रामीण क्षेत्रों में देखने को मिलता है, वहीं मुस्लिम और दलित समुदाय के समर्थन से शहरी इलाकों में भी चुनावी समीकरण बदल सकते हैं।
महाराष्ट्र की राजनीति में तीन समुदायों का एक साथ आना राज्य के प्रमुख राजनीतिक दलों के लिए एक चुनौती बन सकता है। मराठा समुदाय राज्य की राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, और मुस्लिम व दलित समुदायों का समर्थन मिलना बीजेपी और कांग्रेस जैसी पार्टियों के लिए मुश्किलें पैदा कर सकता है।
राज्य के विभिन्न नेताओं ने इस एकता पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। कुछ नेताओं ने इसे महाराष्ट्र की राजनीति में बदलाव का संकेत बताया है, जबकि अन्य ने इसे एक अस्थाई गठबंधन करार दिया है। हालांकि, मनोज जरांगे, सज्जाद नोमानी और आनंदराज अंबेडकर के साथ आने से यह स्पष्ट है कि यह गठबंधन अपनी एकता को मजबूती से पेश कर रहा है।
महाराष्ट्र में मराठा, मुस्लिम और दलित समुदायों का यह गठबंधन एक नए राजनीतिक समीकरण को जन्म दे सकता है। जहां राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह गठबंधन राज्य में एक बड़ा बदलाव ला सकता है, वहीं आने वाले चुनावों में इसका प्रभाव देखने लायक होगा। मनोज जरांगे, सज्जाद नोमानी और आनंदराज अंबेडकर के नेतृत्व में बनी इस एकता ने यह संदेश दिया है कि राज्य की राजनीति में सामाजिक न्याय और समानता के लिए यह एक महत्वपूर्ण कदम है।
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