नई दिल्ली। महाराष्ट्र में इस बार के विधानसभा चुनाव बेहद दिलचस्प होने जा रहे हैं, खासकर मुंबई की वर्ली विधानसभा सीट पर। जहां एक ओर शिवसेना यूबीटी के उम्मीदवार आदित्य ठाकरे अपनी मौजूदा विधायक सीट बचाने के लिए मैदान में हैं, वहीं शिवसेना (शिंदे गुट) ने एक दांव खेलते हुए मिलिंद देवड़ा को टिकट दिया है। 23 नवंबर चुनावों के परिणाम वाले दिन यह देखना खास होगा कि इस प्रतिष्ठित सीट पर किसकी जीत होगी।
वर्ली विधानसभा सीट लंबे समय से शिवसेना का गढ़ रही है। यह दक्षिण मुंबई लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है और इसके मतदाता ऐतिहासिक रूप से शिवसेना के प्रति वफादार माने जाते रहे हैं। बालासाहेब ठाकरे के बाद शिवसेना में दो गुट बनने से इस सीट पर सत्ता का समीकरण बदल सकता है। इस विभाजन का लाभ किसे मिलेगा, यह देखने योग्य होगा!
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में वर्ली सीट पर मुकाबला, इसलिए भी रोमांचक हो सकता है, क्योंकि इस सीट पर 1990 से शिवसेना का दबदबा है। 2019 के विधानसभा चुनाव मे आदित्य ठाकरे ने 65 प्रतिशत वोट शेयर के साथ जीत हासिल की थी। इस बार देवड़ा का कहना है कि वे लोगों की उम्मीदों को पूरा करने के इरादे से मैदान में उतरे हैं और उन्हें विश्वास है कि वे इस सीट पर लोगों का विश्वास जीतेंगे।
आदित्य ठाकरे, जो बालासाहेब ठाकरे के पोते और पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बेटे हैं, उन्होंने पिछले चुनाव में वर्ली सीट से जीत हासिल की थी और वे वर्तमान विधायक हैं। उनके प्रतिद्वंदी मिलिंद देवड़ा, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मुरली देवड़ा के बेटे हैं और तीन बार दक्षिण मुंबई से लोकसभा सांसद रह चुके हैं। वर्तमान में वे राज्यसभा सांसद भी हैं। दोनों उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि, उनकी राजनीतिक विरासत और अनुभव इस सीट पर मुकाबले को और अधिक रोचक बनाते हैं।
शिवसेना के शिंदे और यूबीटी गुट के बीच के विभाजन से वर्ली सीट पर बंटे हुए मतदाताओं के रुख का असर देखने को मिल सकता है। शिवसेना यूबीटी गुट, जिसमें आदित्य ठाकरे शामिल हैं, उन्होंने अब तक वर्ली सीट पर अपना दबदबा बनाए रखा था, लेकिन शिंदे गुट ने इस बार मिलिंद देवड़ा पर दांव लगाया है। शिवसेना की बंटी हुई ताकत का सीधा असर इस सीट के चुनावी परिणामों पर पड़ सकता है।
मिलिंद देवड़ा को शिवसेना (शिंदे गुट) द्वारा टिकट देने के पीछे का मुख्य कारण उनका मजबूत चुनाव प्रबंधन है। पिछले लोकसभा चुनावों में वर्ली क्षेत्र में उन्होंने यूबीटी को केवल 6,500 वोटों की बढ़त तक ही सीमित कर दिया था। यह आंकड़ा उनके प्रभावी प्रबंधन और जनसंपर्क कौशल को दर्शाता है। शिंदे गुट की उम्मीदवारी को मिलिंद देवड़ा की मजबूत पकड़ और स्थानीय समर्थन को देखते हुए गंभीरता से लिया जा रहा है।
महाराष्ट्र में महायुति (शिवसेना शिंदे गुट और भाजपा) और महाविकास अघाड़ी (शिवसेना यूबीटी, कांग्रेस और एनसीपी) गठबंधन के बीच कड़ा मुकाबला है। दोनों ही पक्षों ने अपनी-अपनी जीत के दावे किए हैं, लेकिन वर्ली सीट पर किस गठबंधन की रणनीति सफल होगी, इसका अंदाजा चुनावी परिणामों से ही लगेगा। जहां एक ओर महायुति का समर्थन बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है, वहीं महाविकास अघाड़ी ने भी अपने प्रमुख नेता आदित्य ठाकरे को फिर से मैदान में उतार कर मजबूती दिखाई है।
महाराष्ट्र की वर्ली सीट पर हो रहे इस हाई-प्रोफाइल मुकाबले में शिवसेना के बंटे हुए गुटों का असर, आदित्य ठाकरे और मिलिंद देवड़ा की राजनीतिक विरासत, और दोनों गठबंधनों की रणनीति मिलकर चुनाव के परिणाम को तय करेंगे। आदित्य ठाकरे का शिवसेना यूबीटी के गढ़ को बचाने का प्रयास और मिलिंद देवड़ा का प्रभावी चुनाव प्रबंधन दोनों ही चुनावी समीकरण को कठिन बना रहे हैं। आखिरकार, 23 नवंबर को ही यह स्पष्ट होगा कि वर्ली की जनता किसे अपना प्रतिनिधि चुनती है और शिवसेना के इस गढ़ पर कौन काबिज होता है!
द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.