भोपाल। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का पिछड़ा वर्ग के आरक्षण और जातिगत जनगणना का मुद्दा पूरी तरह फेल हो गया। इसके अलावा, कांग्रेस ने कर्मचारियों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए पुरानी पेंशन बहाली का मुद्दा भी रखा था। लेकिन यह भी नाकाम साबित हुआ।
मध्य प्रदेश में राहुल गांधी ने लगभग हर जनसभा में जोर दिया कि देश के 90 सचिवों में से सिर्फ 3 ओबीसी हैं। इसका असर ओबीसी वोटों पर नहीं दिखा। कांग्रेस को ओबीसी वोट तो मिले नहीं, आदिवासी और दलित वोटर भी भाजपा में शिफ्ट कर गए। कांग्रेस आदिवासी और दलितों को अपने पाले में लेने के लिए जातिगत जनगणना को उठा रही थी लेकिन यह मुद्दा भी फेल हो गया।
कांग्रेस का इस बार प्रदर्शन खराब रहा, वचन पत्र की 101 गारंटी जनता को आकर्षित करने में विफल रहीं। कांग्रेस को ओबीसी बहुल 72 सीटों में से 55 सीटें 47 आदिवासी सीटों में से 24 सीटें, अनुसूचित जाति की 35 में से 26 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा। भाजपा को पिछले चुनाव के मुकाबले आदिवासी सीटों पर 9 सीटें और 37% वोट अधिक मिले।
इस बार के चुनाव में भाजपा ने जातिगत गणित को समझा, आदिवासियों के कार्यक्रमों में भाजपा की सक्रियता और आदिवासी महापुरुषों और क्रांतिकारियों के नाम पर सड़क, चौराहे रेलवे स्टेशन के नाम परिवर्तित करना, चौक-चौराहो पर मूर्ति स्थापित करने के साथ योजनाओं का सीधा लाभ आदिवासियों तक पहुँचने के कारण फायदा हुआ। भाजपा को आदिवासी सीटों पर पिछले चुनाव से 37% वोट अधिक मिले। कांग्रेस को 2018 में 31 आदिवासी सीटें जीती थी। इस बार 22, यानी 9 सीटों का नुकसान हुआ है। भाजपा 2018 में 15 आदिवासी सीटें जीती 2023 में उसे 47 में से 24 सीटें मिलीं।
2018 में एससी की 35 में से 17 कांग्रेस और 18 सीटें भाजपा को मिली थीं। 2023 के चुनाव में 35 में से 26 सीटें भाजपा ने जीतीं। यानी 8 सीटों का फायदा कांग्रेस सिर्फ 9 सीटें ही जीत सकी। वहीं जिन सीटों पर ओबीसी आबादी 50 से 80% तक है, ऐसी 22 में से 17 सीटें भाजपा जीती। सामान्य वर्ग में कांग्रेस के 86 में से सिर्फ 17 जबकि भाजपा के 80 में से 72 प्रत्याशी जीते।
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