भोपाल। मध्य प्रदेश में बीते 17 नम्बर को सभी 230 सीटों पर मतदान हो चुका है, जिसकी मतगणना 3 दिसम्बर को की जानी है। प्रदेश में 15 साल राज के बाद साल 2018 में कांग्रेस मध्य प्रदेश में सरकार बनाने में कामयाब हुई थी। हालांकि, कुछ विधायकों की खरीद फरोख्त के बाद 15 महीने बाद भाजपा फिर से सत्ता में आ गई। अगर 15 महीने का वह शासन हटा दें तो करीब 18 साल से भाजपा अपनी योजनाओं और विकास कार्यों को लेकर जनता के बीच गई थी, लेकिन वो दलित और आदिवासी मतदाता को रिझा नहीं पाई, वहीँ 101 गारंटी और राहुल गांधी के मुहब्बत की दुकान खोलने के बयान से मतदाता कांग्रेस की ओर जाते दिख रहे है।
भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों का फोकस दलित और आदिवासियों पर रहा है। प्रदेश की कुल जनसंख्या में करीब 21 प्रतिशत आदिवासी हैं, वहीं करीब 18 फीसदी दलितों की भी आबादी है। दलित और आदिवासियों की प्रदेश में करीब 39 प्रतिशत आबादी है। यह संख्या किसी भी दल की सरकार बनाने के लिए काफी है। इन दोनों समुदायों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए सत्ता में बनी भाजपा और विपक्ष की भूमिका निभा रही कांग्रेस ने अपने-अपने तरीके से जोर लगाया है।
प्रदेश में 47 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित है, वहीं 35 सीटें अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं। दलित आदिवासियों की कुल 82 सीटों में पिछली बार 2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 47 सीटें मिली थीं। इसके अलावा प्रदेश के अनारक्षित 138 सीटों पर भी दलित-आदिवासियों की 5 से लेकर 25 प्रतिशत तक की आबादी है।
मध्य प्रदेश में सात संभागों के अंतर्गत 20 जिले और 89 विकासखण्ड आदिवासी बाहुल्य हैं। मध्य प्रदेश देश में सर्वाधिक आदिवासी जनसंख्या वाला प्रदेश माना जाता है। इनमें बुरहानपुर, खंडवा, झाबुआ, अलीराजपुर, बड़बानी, खरगौन, धार, मण्डला, सिवनी, छिंदवाड़ा, बालाघाट, डिंडौरी, होशंगाबाद, बैतुल, रतलाम, शहडोल, अनूपपुर, उमरिया, सीधी और श्योपुर जिले शामिल हैं।
मध्य प्रदेश में दलित राजनीति भी उफान पर है। दलित वोटरों को साधने के लिए बीजेपी ने संत रविदास का मंदिर बनाने और चुनाव के पहले समरसता यात्राएं भी निकाली। इसी साल अगस्त में प्रधानमंत्री मोदी ने मध्य प्रदेश के सागर में संत रविदास के 100 करोड़ रुपये के मंदिर का भूमिपूजन किया। साथ ही कई सौ करोड़ रुपये के अन्य प्रोजेक्ट्स का लोकार्पण और शिलान्यास भी किया था। भाजपा ने संत रविदास के भव्य मंदिर का भूमिपूजन कर दलितों को साधने की कोशिश की थी। प्रदेश के बुंदेलखंड और ग्वालियर-चंबल संभाग में सर्वाधिक दलित आबादी निवासरत हैं। पिछली बार दलित बोट बैंक भाजपा के हाथों से खिसक गया था। लेकिन इस चुनाव में भाजपा ने दलितों को लुभाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी।
भाजपा ने इस बार 2023 के विधानसभा चुनाव में दोनों ही वर्गों को साधने की कोशिश की है। लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार इस बार 2018 से भी ज्यादा भाजपा को नुकसान हो सकता है। द मूकनायक को वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक नितिन दुबे ने बताया कि वर्तमान में दोनों ही वर्गों का वोटर साइलेंट हैं। भाजपा ने एससी-एसटी के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं संचालित की महापुरुषों के मंदिर बनाए, आदिवासी क्रांतिकारी और शहीदों की मूर्ति लगाई गई कई मार्गों के नाम परिवर्तित कर उनके नाम पर रखे गए। लेकिन पिछली बार की तुलना में इस बार वोटर्स साइलेंट है, इसलिए यह अनुमान है कि इस बार वोटर्स बदलाव की तरफ गया होगा। सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर भी एक महत्वपूर्ण कारण है।
वहीं भोपाल संभाग में भाजपा पूर्व के चुनाव की तरह मजबूत दिखाई दे रही है। भोपाल और आस-पास के जिलों में विदिशा, रायसेन और सीहोर वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस का प्रदर्शन लगभग 2013 के चुनाव की तरह ही रहा। तब भाजपा को 19 सीटें मिलीं थीं और कांग्रेस को 4 वहीं एक सीट पर निर्दलीय की जीत हुई थी।
मालवा-निमाड़ क्षेत्र में 66 सीटें हैं, इनमें ज्यादातर सीटें भाजपा के प्रभाव वाली हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को यहां 28 सीटें मिली थीं, जो पिछले 2013 के चुनाव की अपेक्षा कम थीं। कांग्रेस ने यहां 35 सीटें जीती थीं। निमाड़ क्षेत्र आदिवासी बाहुल्य है। पिछली बार यहां कांग्रेस को बढ़त मिली थी। और इस बार भी कांग्रेस को यहां से अच्छी मात्रा में सीटें मिल सकती हैं।
महाकौशल क्षेत्र में पिछले विधानसभा चुनाव 2018 में कांग्रेस ने इस क्षेत्र में अपना परचम लहराया था। इस क्षेत्र में पार्टी ने अहम बढ़त बनाई थी, जिससे उसका सत्ता में आना तय हुआ था। 2018 के चुनावों में महाकौशल के छिंदवाड़ा जिले की सभी विधानसभा सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। जबलपुर की आठ में से 4-4 सीटें दोनों पार्टियों को मिली थी, जबकि 2013 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को 6 और कांग्रेस को 2 ही सीटें मिली थीं। इस बार के चुनाव में भी यह माना जा रहा है कि कांग्रेस को इस क्षेत्र से पूर्व की तरह सीटें मिल सकती हैं।
कांग्रेस पार्टी ने अक्टूबर में चुनावी घोषणा पत्र जारी किया था। पार्टी ने अपने घोषणा पत्र को वचन पत्र का नाम दिया है और इसमें प्रमुख तौर पर 101 गारंटियों का जिक्र भी किया है। इन गारंटियों में किसान, युवा आदिवासी सहित कर्मचारी सभी पर फोकस रखा गया है। इन गारंटियों में मध्य प्रदेश कांग्रेस ने धान 2600, गेहूं 2599 रुपये में खरीदने का वादा किया है। इसके अलावा पार्टी ने कहा कि वह सत्ता में आएगी तो गोबर भी ख़रीदेगी। रोजगार के मोर्चे पर पार्टी ने वादा किया है कि दो लाख नई भर्ती होगी। राज्य में नौकरियों के लिए कहा गया है कि एमपी को उद्योगों को हब बनायेंगे। कृषि पर कांग्रेस ने कहा कि किसान का कर्जा माफ़ होगा। इसके साथ ही लोगों का दस लाख का दुर्घटना बीमा, पच्चीस लाख का स्वास्थ बीमा किया जायेगा। वहीं महिला सम्मान निधि योजना बनाकर हर महीने महिलाओं को 1500 रुपये दिए जाएंगे।
इसके साथ ही कांग्रेस पार्टी के वचन पत्र में कहा गया है कि शासकीय सेवाओं एवं योजनाओं में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देंगे और संत शिरोमणि रविदास के नाम पर कौशल उन्नयन विश्वविद्यालय सागर में स्थापित करेंगे। तेंदूपत्ता की मजदूरी की दर 4000/- रूपए प्रति मानक बोरा करेंगे। पढ़ो-पढ़ाओ योजना के अंतर्गत सरकारी स्कूलों के बच्चों को कक्षा 1 से 8वीं तक 500/- रूपए, कक्षा 9वीं-10वीं के लिए 1000/- एवं कक्षा 11वीं-12वीं के बच्चों को 1500/- रूपए प्रतिमाह देंगे। कांग्रेस ने वादा किया है कि मध्यप्रदेश में स्कूली शिक्षा निःशुल्क करेंगे और आदिवासी अधिूसचित क्षेत्रों में कांग्रेस के कार्यकाल में बना पेसा एक्ट लागू करेंगे। वहीं विजली के विलो को लेकर कांग्रेस की घोषणा है कि उनकी सरकार बनी तो वह 100 यूनिट बिजली माफ करेंगे और 200 यूनिट के बिल को हाफ किया जाएगा। किसानों के बिजली बिल में भी छूट की बात कही है।
कांग्रेस के वचन पत्र में जनता से की गई 101 गारंटी कांग्रेस को चुनावी रण में मजबूती प्रदान कर रही है। दरअसल 2018 में बनी कांग्रेस की पंद्रह महीने की सरकार ने घोषणा पत्र में किसान कर्ज माफी के वादे को पूरा किया था। किसानों को 2 लाख तक के कर्ज माफ के सर्टिफिकेट भी मिले थे। जिन किसानों के नाम कर्ज माफी सूची में थे उनसे बैंक ने रिकवरी भी बंद कर दी थी। दो किश्तों में सरकार ने बैंकों को पैसा भेजा था लेकिन फिर कांग्रेस की सरकार गिर गई। इसके साथ ही पिछली साल 2022 में भारत जोड़ो यात्रा में मध्य प्रदेश के आदिवासी इलाकों में पहुँचे राहुल गांधी को मिले जनसमर्थन से भी कांग्रेस के जीत के दावे को और पक्का कर रही है। राहुल गांधी के मोहब्बत की दुकान खोलने वाले बयान का असर भी फायदा पहुँचा रहा है।
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