जयपुर। आगामी लोक सभा चुनावों में भाजपा सत्ता की तिकड़ी लगाने की तैयारी में है। तीसरी बार केन्द्र में सत्ता पर काबिज होने के लिए भाजपा दलित और आदिवासी मतदाताओं के सहारे राजस्थान में क्लीन स्वीप कर सकती है? पिछले दो लोकसभा चुनावों में राजस्थान से भाजपा को 25 की 25 सीटों पर विजय मिली है। इस बार भी 25 सीटों की तिकड़ी लगाने के लिए भाजपा दलित और आदिवासी नेताओं को साथ लेकर इस वर्ग के मतदाताओं को साधने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है।
राजस्थान की सत्ता पर काबिज होने के साथ ही पार्टी ने दलित नेता को उप मुख्यमंत्री बनाने के साथ आदिवासी समुदाय से आने वाले विधायकों को मंत्रिमंडल में शामिल कर साफ कर दिया था कि आगामी लोकसभा चुनावों में एससी, एसटी वर्ग के सहारे केन्द्र की सत्ता तक जाने वाले हैं। एक बार फिर आदिवासी समुदाय को साधने के लिए भाजपा ने आदिवासी नेता चुन्नीलाल गरासिया को राज्यसभा भेजा है।
चुन्नीलाल गरासिया उदयपुर ग्रामीण से दो बार विधायक रह चुके हैं। गरासिया मूल रूप से डूंगरपुर जिले के लिए बिडुला गांव के रहने वाले हैं। राजनीति में आने से पहले चुन्नीलाल बैंक में एलडीसी रहे हैं। गरासिया संघ पृष्ठ भूमि से काफी मजबूत माने जाते हैं। वे संघ के तृतीय वर्षीय स्वयंसेवक प्रशिक्षित है। संघ पदाधिकारियों के करीबी भी हैं। वर्तमान में बीजेपी एसटी मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष होने से आदिवासी समुदाय में खासी पकड़ मानी जा रही है। इससे लोकसभा चुनावों में भाजपा को फायदा होने की बात से इनकार नहीं कर सकते।
राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के बागीदौरा से कांग्रेस विधायक महेंद्रजीत सिंह मालवीय भी कांग्रेस को बड़ा झटका दिया है। मालवीय को पार्टी में शामिल कर भाजपा ने कांग्रेस मुक्त भारत अभियान की ओर बढ़ता कदम बताया है। मालवीय 19 फरवरी को भाजपा में शामिल हो गए। भाजपा का दामन थामने के साथ ही मालवीय का नजरिया बदल गया है। कल तक जो नेता भाजपा पर हमलावर था, आज उस पार्टी की तारीफ में कसीदे पढ़ रहे हैं। हालांकि मालवीय ने कहा कि उन्होंने वागड़ क्षेत्र के विकास के लिए ऐसा कदम उठाया है।
कांग्रेस नेताओं का भाजपा से बढ़ता मोह लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की मुश्किल बढ़ाने वाला है। मालवीय के बाद अब दलित नेता एवं पूर्व सांसद व एससी आयोग के अध्यक्ष खिलाड़ी लाल बैरवा के भी भाजपा में शामिल होने की अटकलें लगाई जा रही है। बैरवा ने बीते रविवार को दिल्ली में मीडिया से बात करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर पार्टी को खत्म करने के आरोप लगाए थे। बैरवा ने आरोप लगाया था कि गहलोत के कारण ही कांग्रेस नेता पार्टी छोड़ भाजपा में जा रहे हैं। राजस्थान में केवल गहलोत और गोविंद सिंह डोटासरा ही बचेंगे। बैरवा के इस बयान के बाद राजनीतिक गलियारों में उनके पार्टी छोड़ने की चर्चा तेज हो गई है। हालांकि पार्टी छोड़ने को लेकर बैरवा ने कोई अधिकारिक बयान नहीं दिया है।
उधर पार्टी से भाजपा की तरफ दौड़ते कांग्रेस नेताओं पर कटाक्ष करते हुए कांग्रेस ने कहा है कि भारतीय जनता पार्टी वाशिंग मशीन की तरह है। राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी एजेंसियों के माध्यम से दबाव डाल कर नेताओं को अपने खेमे में शामिल कर रही है। डोटासरा ने सवाल किया कि क्या भाजपा में शामिल होने से लोग चमत्कारिक रूप से ईमानदार हो जाते हैं? प्रदेश कांग्रेस कमेटी के वॉर रूम में मीडिया से बातचीत के दौरान डोटासरा ने दावा किया कि इससे पार्टी को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। पार्टी मजबूती के साथ लोकसभा चुनाव लड़ेगी। उन्होंने मालवीय के पार्टी पर छोड़ने पर कहा कि मालवीय पहले से पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल रहे हैं। इससे उनका मतदाता आधार कम हो गया, जिससे वह भाजपा में चले गए।
डोटासरा ने आगे कहा कि मालवीय को यह अहसास है कि कांग्रेस में उनका राजनीतिक भविष्य धूमिल है, खासकर लोकसभा टिकट से वंचित होने के बाद पार्टी में खुद को हाशिए पर महसूस कर रहे मालवीय ने भाजपा में शामिल होने का विकल्प चुना। डोटासरा ने कहा कि मालवीय के जाने से कांग्रेस कमजोर नहीं होगी, बल्कि मजबूत होगी, उन्होंने ऐसी चुनौतियों का सामना करने की बात कही।
आदिवासी समुदाय से आने वाले पूर्व सांसद, विधायक और कांग्रेस कार्य समिति के पूर्व सदस्य रहे रघुवीर सिंह मीना ने कहा कि ''मालवीय कांग्रेस में रहते हुए लगातार प्रधानमंत्री की आलोचना करते रहे। बीजेपी में शामिल होने के बाद से अचानक नरेंद्र मोदी उनकी नजरों में एक सम्मानित नेता बन गए हैं और वह पीएम की नीतियों से काफी प्रेरित नजर आते हैं। उन्होंने कहा कि हो सकता है, सत्ता और पद की चाहत में मालवीय भाजपा में शामिल हुए हो, लेकिन जनता उन्हें आगामी चुनावों में सबक सिखाएगी।
राजस्थान में 25 लोकसभा सीट है। इनमें तीन एसटी व चार एससी वर्ग के लिए आरक्षित हैं। 18 लोकसभा सीटों पर किसी भी वर्ग का व्यक्ति चुनाव लड़ सकता है। कुछ सीटें ऐसी हैं जिन पर कुछ बड़ी जातियों का अघोषित कब्जा है। वोट बैंक की राजनीति के कारण बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां इन सीटों पर जातियों के आधार पर प्रत्याशियों का चयन करती हैं। भरतपुर, करौली-धौलपुर, बीकानेर और श्रीगंगानगर अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। तीन सीटें बांसवाड़ा-डूंगरपुर, उदयपुर और दौसा सीट अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं।
नागौर सीट जाट बाहुल्य नागौर देश में जाट राजनीति का केन्द्र माना जाता है। यहां पिछले चुनावों में जाट प्रत्याशी की जीत हुई है। बीजेपी-कांग्रेस दोनों ही यहां जाट प्रत्याशी पर दांव खेलती हैं। यहां मिर्धा परिवार का प्रभाव रहा है। शेखावाटी में सीकर, चुरू व झुंझुनूं की लोकसभा सीटें भी जाट बाहुल्य हैं। इन तीनों सीटों पर भी जाट समाज का झुकाव जीत तय करता है। इन सीटों पर भी पार्टियों की प्राथमिकता जाट प्रत्याशी होता है।
जयपुर ग्रामीण लोकसभा सीट पर जाट, राजपूत, गुर्जर, मीणा, यादव और एससी का प्रभाव है। यहां बीजेपी-कांग्रेस जाट या राजपूत प्रत्याशी को मैदान में उतारती है। जोधपुर सीट पर राजपूत, बिश्नोई वर्ग का प्रभाव है। दोनों प्रमुख पार्टियां यहां राजपूत कार्ड खेलती हैं। वर्तमान में यहां से गजेन्द्र सिंह शेखावत सांसद है।
बाड़मेर सीट पर भी जाट, राजपूत वर्ग का प्रभाव है। इस सीट पर दलित और मुस्लिम मतदाता हार-जीत का फैसला करने की स्थिति में है, लेकिन दोनों पार्टियां दांव जाट या राजपूत पर लगाती रही है। वर्तमान में कर्नल सोनाराम यहां से सांसद हैं।
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि राजस्थान में जाति की राजनीति का उभार पिछले दो दशकों में देखने को मिला है। ऐसा नहीं है की जाट-राजपूत जातियों का ही सभी सीटों पर आधिपत्य है। ब्राह्मण, वैश्य, गुर्जर और मीणा जातियां भी प्रभावशाली हैं। अनारक्षित सीटों पर भी इन जातियों का पूरा असर है। इन सीटों पर राजनीतिक दल दो तीन जातियों के इर्द-गिर्द टिकटों का वितरण करते हैं।
जयपुर शहर की लोकसभा सीट की बात करे तो यहां, पिछले नौ चुनावों से ब्राह्मण वर्ग का बोलबाला रहा है। जयपुर राजपरिवार की पूर्व महारानी गायत्री देवी, गिरधारी लाल भार्गव जैसे नेता भी जयपुर का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। यहां बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही ब्राह्मण प्रत्याशी को टिकट देती हैं।
इनके अलावा कोटा सीट पर भी वैश्य और ब्राह्मण वर्ग का बाहुल्य है। यहां भी दोनों ही प्रमुख पार्टियां इन्हीं जातियों को टिकट देती है। अलवर सीट पर यादव, मेव, ब्राह्मण और राजपूत जातियों का बाहुल्य है। यहां यादव जिस पार्टी की तरफ होते हैं जीत भी उसकी तय मानी जाती है। ऐसे में अब इस सीट पर अब यादवों को टिकट मिलने लगा है।
टोंक-सवाईमाधोपुर में मीणा गुर्जर व मुस्लिम, अजमेर में जाट व गुर्जर, चितौड़गढ़ सीट पर ब्राह्मण व राजपूत और जालोर में कलबी, राजपूत व माली जातियों का असर है। राजनैतिक दलों की जाति की राजनीति करने का असर यह हुआ है की अब राजनीतिक पार्टियां बाहुल्य वाली जाति के प्रत्याशी को टिकट देने लगी है। पार्टियों का मानना है की अंतिम लक्ष्य पार्टी को जीत दिलाना होता है। उसी लिहाज से रणनीति अपनाई जाती है।
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