नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव के छठे चरण में दिल्ली की सातों लोकसभा सीटों पर 25 मई को वोटिंग होगी। इससे पहले प्रत्याशियों का नामांकन और चुनाव प्रचार जोर-शोर से चल रहा है। इसी कड़ी में साउथ डिस्ट्रिक्ट लोकसभा सीट से शुक्रवार को ट्रांसपर्सन राजन सिंह अर्धनग्न पैदल नामांकन करने पहुंचे। वह संगम विहार से पैदल साकेत तक आए। यहां नामांकन के बाद उन्होंने कहा कि कोर्ट से सुरक्षा मिलने के पांच दिन बाद भी पुलिस ने अभी तक सुरक्षा नहीं दी है। बीते दिनों मुझ पर हमला भी हुआ, लेकिन पुलिस ने इसे गंभीरता से नहीं लिया।
द मूकनायक को राजन ने बताया- "दिल्ली में हर व्यक्ति समान है। दिल्ली क्या देश में भी सभी को समानता का अधिकार मिला हुआ है, लेकिन थर्डजेंडर की जगह जो हमें मिल चुकी है पर भेदभाव अभी तक है। ट्रांसजेंडर कब तक भेदभाव सहता रहेगा।"
राजन ने आगे कहा-"हमारी लड़ाई शुरू हुई है। हम चाहते हैं कि हॉस्पिटल, मेट्रो स्टेशन व सार्वजनिक स्थानों पर कम से कम शौचालय तो अलग से बने होने चाहिए। मैं बताना चाहूंगा कि हर सरकारी दफ्तर कार्यालय या किसी भी जगह पर हमारे साथ भेदभाव ही होता है। मैं इसका सबसे बड़ा उदाहरण हूं।"
"29 अप्रैल को दिल्ली हाई कोर्ट ने मुझे पुलिस सुरक्षा दी जाने की बात कही थी। उसके बाद भी मुझको कोई सुरक्षा नहीं दी गई। वह भी इसी वजह से क्योंकि मैं थर्ड जेंडर हूं। इसी वजह से मैंने अर्धनग्न अवस्था में नामांकन किया। इसलिए भी मैं अर्धनग्न होकर गया, क्योंकि समाज में हमें नंगा ही समझा जाता है। हम नंगे नहीं हैं। देश का गरीब या पिछड़ा वर्ग कम कपड़ों में ही अपनी जिंदगी बसर करता है इसलिए अर्धनग्न होकर नामांकन करने गया था। हम संसद भी पहुंचेंगे।"-राजन ने कहा।
नामांकन करने से पहले उन्होंने कहा कि आजादी के 75 साल बाद भी हमें आरक्षण की सुविधा नहीं मिली है, जबकि संविधान हमें समानता का अधिकार देता है। उन्होंने कहा कि वह अपने समुदाय को लोकसभा, विधानसभा व अन्य जगहों पर एक फीसदी आरक्षण दिलाने की मांग को लेकर काम करने के लिए चुनाव लड़ रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महिलाओं को आगे बढ़ा रहे हैं, हम LGBTQIA समुदाय भी अपने विकास के लिए उनके साथ मिलकर आगे बढ़ना और काम करना चाहते हैं।
आगे राजन बताते हैं कि "2014 में जब नालसा जजमेंट पास हुआ। वह हमारी पहले आजादी थी। दूसरी आजादी वह थी जब 2019 में संसद में ट्रांसजेंडर सुरक्षा एक्ट पास हुआ था। शायद यह तीसरी आजादी होगी, जब ट्रासजेंडर जिलाधिकारी के पास नामांकन करने के लिए पहुंचा है। मेरे पास अपना घर भी नहीं है। जहां पर भी मैं खाना खाता हूं। या पैदल चलता हूं। मैं वहीं पर सो जाता हूं।"
"कभी-कभी अपने दफ्तर में भी, जब कोई नहीं होता तो वहीं पर सो जाता हूं। मेरे माता-पिता का छोटा सा घर है। पर वह उनका है इसलिए मैं वहां बहुत ही कम ही रहता हूं। मैं कल नामांकन करने गया तो कोई मजिस्ट्रेट नहीं था। वहां दो लाइन बनी थी। एक महिला और दूसरी पुरुष के लिए थी। ट्रांसजेंडर के लिए कोई अंदर जाने वाली लाइन नहीं थी। डीसी ऑफिस में कल मुझे शौचालय जाना था। वहां पर भी ट्रांसजेंडर्स के लिए शौचालय नहीं था। तो सोचिए समाज में ट्रांसजेंडर की क्या हालत है।"-राजन ने सत्ता और समाज से सवाल किया।
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