Exclusive Interview: कौन हैं झारखंड की कांग्रेस विधायक शिल्पी नेहा तिर्की, कैसा रहा राजनीतिक सफर?

आरक्षण का असली मतलब प्रतिनिधित्व है। यह केवल नौकरियों या शैक्षिक अवसरों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उस वर्ग के लोगों को समाज में बराबरी से आगे बढ़ने का अवसर प्रदान करता है। मैं मानती हूं कि जातिगत जनगणना बहुत जरूरी है, ताकि हम समझ सकें कि कितने लोग किन परिस्थितियों में हैं और उन्हें उचित प्रतिनिधित्व कैसे दिया जाए:- शिल्पी नेहा तिर्की
झारखंड की कांग्रेस विधायक शिल्पी नेहा तिर्की और द मूकनायक की एडिटर इन चीफ मीना कोटवाल के बीच ख़ास बातचीत
झारखंड की कांग्रेस विधायक शिल्पी नेहा तिर्की और द मूकनायक की एडिटर इन चीफ मीना कोटवाल के बीच ख़ास बातचीत
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रांची। झारखंड की मांडर विधानसभा से कांग्रेस की विधायक शिल्पी नेहा तिर्की ने 2022 में हुए उपचुनाव में जीत हासिल की थी। राजनीति में आने से पहले शिल्पी बेंगलुरू की एक कंपनी में काम करती थीं, लेकिन परिस्थितियों ने उन्हें राजनीति में ला खड़ा किया। हाल ही में 'द मूकनायक' की एडिटर इन चीफ मीना कोटवाल ने उनसे विशेष बातचीत की, जिसमें शिल्पी ने अपने जीवन, राजनीति, और आदिवासी समाज के मुद्दों पर खुलकर बात की।

शिल्पी ने बताया कि राजनीति में आने से पहले वह एक कॉर्पोरेट कंपनी में काम कर रही थीं, लेकिन उनके पिता को लगे आरोपों के बाद उन्हें अचानक राजनीति में कदम रखना पड़ा। जब उनसे पूछा गया कि क्या कभी उन्होंने सोचा था कि राजनीति में आना पड़ेगा, उन्होंने कहा कि, "मेरे पिता बाबा (बन्धु तिर्की) पहले से ही राजनीति म थे। वह बैंक की नौकरी छोड़कर समाज सेवा में रुचि के कारण राजनीति में आए थे। हालांकि, अचानक से चुनावी मैदान में उतरना मेरे लिए चुनौतीपूर्ण था, लेकिन अब मैं राजनीति और समाज सेवा में रुचि लेती हूं।"

आपने राजनीति में कैसे कदम रखा, और इससे पहले आपका करियर कैसा था?

जवाब: राजनीति में आने से पहले, मैं बेंगलुरु की एक कॉर्पोरेट कंपनी में काम कर रही थी। मैंने कभी सोचा नहीं था कि मुझे राजनीति में आना पड़ेगा, लेकिन परिस्थितियां ऐसी बनीं कि मुझे अचानक राजनीति में उतरना पड़ा। मेरे पिता पहले से ही राजनीति में थे, और उनके ऊपर आय से अधिक संपत्ति के आरोप लगने के बाद मुझे राजनीति में आना पड़ा। मैं जनता की सेवा के लिए पूरी तरह समर्पित हूं और अब राजनीति को ही अपने जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा मानती हूं।

आपके पिता पर आय से अधिक संपत्ति के आरोप लगे थे, इस पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?

जवाब: मेरे पिता हमेशा से झारखंड के आदिवासी समाज की आवाज रहे हैं। उन्होंने हमेशा अपने आदर्शों के प्रति वफादारी दिखाई और कभी किसी प्रकार के समझौते को स्वीकार नहीं किया। उन पर जो आरोप लगे थे, वो राजनीतिक प्रतिशोध के परिणाम थे। सीबीआई ने उन्हें क्लीन चिट दी, लेकिन फिर भी एमपी-एमएलए कोर्ट ने तीन साल की सजा सुनाई, जिसके चलते उनकी सदस्यता समाप्त कर दी गई। मेरे पिता ने हमेशा झारखंड के हित के लिए संघर्ष किया है, और मुझे पूरा विश्वास है कि न्यायालय से उन्हें जल्द ही न्याय मिलेगा।

आपके पिता का राजनीति में लंबा अनुभव है, क्या वह आपके लिए कोई मार्गदर्शन करते हैं?

जवाब: हां, मेरे पिता एक अनुभवी नेता हैं और उनका अनुभव मेरे लिए हमेशा मार्गदर्शक रहा है। लेकिन यह भी सच है कि वह मेरे फैसलों में दखलअंदाजी नहीं करते। वह मुझे सलाह देते हैं, लेकिन निर्णय लेने की पूरी स्वतंत्रता मेरी होती है। उन्होंने मुझे हमेशा खुद पर विश्वास करने और अपने तरीके से काम करने की सलाह दी है।

आपके बयानों को अक्सर राजनीतिक मुद्दा बना दिया जाता है, इस पर आप क्या कहना चाहेंगी?

जवाब: झारखंड में बीजेपी मेरे बयानों को मुद्दा बनाकर राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश करती है। यहां के कुछ मीडिया संस्थान भी इसे टीआरपी के लिए इस्तेमाल करते हैं। मेरा मानना है कि झारखंड के असली मुद्दे पलायन, बेरोजगारी, और सामाजिक-आर्थिक बदलाव हैं, लेकिन बीजेपी जानबूझकर ध्यान भटकाने के लिए बांग्लादेशी घुसपैठ जैसे मुद्दों को उछालती है। यह राज्य पांचवीं अनुसूची के अंतर्गत आता है, और यहां के राज्यपालों को संवैधानिक जिम्मेदारियों के तहत सही दिशा में ध्यान देना चाहिए। लेकिन दुर्भाग्यवश, आज तक दो रिपोर्ट्स ही केंद्र को भेजी गई हैं, और उन्हें भी सार्वजनिक नहीं किया गया।

आपने कांग्रेस पार्टी को क्यों चुना?

जवाब: मेरे पिता निर्दलीय चुनाव लड़ते थे, लेकिन उनके विचार कांग्रेस पार्टी की विचारधारा से मेल खाते थे। उन्होंने हमेशा कांग्रेस का समर्थन किया है, चाहे वह लोकसभा चुनाव हो या राज्यसभा का समर्थन। जब मैंने राजनीति में कदम रखा, तो मैं भी कांग्रेस के विचारों से सहमत थी। मैंने कभी ऐसा महसूस नहीं किया कि मुझे जबरदस्ती कांग्रेस में रहना पड़ रहा है। मेरे पिता का हमेशा से कांग्रेस के प्रति झुकाव था, और मेरी विचारधारा भी उनसे मेल खाती है।

एक आदिवासी और दलित महिला के रूप में आपको कभी किसी भेदभाव का सामना करना पड़ा?

जवाब: व्यक्तिगत रूप से मुझे कभी किसी भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ा। लेकिन यह सच है कि उच्च पदों पर आदिवासी और दलित महिलाओं को बहुत कम मौके दिए जाते हैं। समाज में आदिवासियों के प्रति एक पुरानी और संकीर्ण मानसिकता रही है, जिसमें उन्हें सिर्फ जंगलों में रहने वाले और पिछड़े लोग माना जाता है। जब मैं बेंगलुरु में पढ़ रही थी, तो कई लोग मुझसे पूछते थे कि क्या आदिवासी लोग पत्तों के कपड़े पहनते हैं और जंगलों में रहते हैं। यह समाज की गलत धारणाएं हैं। लेकिन अब चीजें बदल रही हैं, और आदिवासी समुदाय के लोग पढ़ाई कर बाहर आ रहे हैं और अपने अधिकारों के लिए आवाज उठा रहे हैं। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी कल्पना सोरेन जैसी महिलाएं राज्य को आगे ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।

पिछले दो वर्षों में ऐसा कौन सा काम है जिस पर आपको सबसे ज्यादा गर्व है?

जवाब: पिछले दो सालों में हमने शिक्षा के क्षेत्र में बहुत महत्वपूर्ण काम किया है। हमारे क्षेत्र के बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले, इसके लिए मैंने राज्य सरकार से दो कॉलेजों के लिए बजट स्वीकृत करवाया। अब उन कॉलेजों की हालत में सुधार हो रहा है। शिक्षा के क्षेत्र में मेरा प्रयास जारी रहेगा, क्योंकि एक शिक्षित समाज ही सशक्त समाज बन सकता है। इसके अलावा, हमने महिलाओं के आत्मनिर्भरता के लिए भी कई योजनाओं को लागू किया है, जिससे उनके जीवन में सुधार हो रहा है।

आपने अपने क्षेत्र में किस प्रकार के काम करने की योजना बनाई है?

जवाब: मेरा मुख्य ध्यान महिलाओं के लिए स्वयं सहायता समूहों पर है। इन समूहों के माध्यम से महिलाएं आत्मनिर्भर हो रही हैं, भले ही वे शिक्षित न हों। मेरा प्रयास है कि इन समूहों की समस्याओं का समाधान किया जाए और राज्य सरकार से उन्हें और अधिक सहायता मिले। इसके अलावा, मैं अपने क्षेत्र में शिक्षा और रोजगार के अवसरों को बढ़ाने पर भी काम कर रही हूं।

राहुल गांधी का कहना है कि बीजेपी आदिवासियों को 'वनवासी' बनाना चाहती है, इस पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?

जवाब: राहुल गांधी जी ने सही कहा है। आदिवासी समुदाय इस देश के मूल निवासी हैं, और बीजेपी का षड्यंत्र है कि वह आदिवासियों को उनके अधिकारों से वंचित करके उन्हें 'वनवासी' बना देना चाहती है। आदिवासियों का इतिहास 65,000 साल पुराना है, और हम इस देश के असली मालिक हैं। बीजेपी यह बात समझ नहीं पा रही है, और वह आदिवासियों के अधिकारों को खत्म करने की कोशिश कर रही है।

आरक्षण के मुद्दे पर आपका क्या विचार है?

जवाब: आरक्षण का असली मतलब प्रतिनिधित्व है। यह केवल नौकरियों या शैक्षिक अवसरों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उस वर्ग के लोगों को समाज में बराबरी से आगे बढ़ने का अवसर प्रदान करता है। मैं मानती हूं कि जातिगत जनगणना बहुत जरूरी है, ताकि हम समझ सकें कि कितने लोग किन परिस्थितियों में हैं और उन्हें उचित प्रतिनिधित्व कैसे दिया जाए। आरक्षण समाज में समानता लाने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है।

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