झारखंड चुनाव 2024: क्या कल्पना सोरेन बन रहीं हैं बीजेपी के लिए मुश्किलों का सबब?

नक्सल प्रभावित इलाकों में जहाँ शाम 5-6 बजे बाद आम तौर पर महिलाएं घर से बाहर नहीं निकलती, कल्पना सोरेन के निकलने पर सडकों पर महिलाएं दिखाई देती हैं जो एक सुखद परिवर्तन है.
कल्पना सोरेन महिला मतदाताओं के बीच काफी लोकप्रिय हो रही है।
कल्पना सोरेन महिला मतदाताओं के बीच काफी लोकप्रिय हो रही है।
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रांची- झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की नेता और विधायक कल्पना सोरेन द्वारा हाल में आयोजित रैलियों ने बीजेपी में खलबली मचा दी है। उनकी रैलियों में भारी भीड़, खासकर महिलाओं का समर्थन, बीजेपी के लिए चिंता का विषय बन गया है। 'मईया सम्मान यात्रा' के दौरान जनता का जबरदस्त समर्थन मिलने से बीजेपी ने विरोध तेज कर दिया है।

गुमला जिले में एक रैली के दौरान कल्पना सोरेन ने बीजेपी पर तीखा हमला किया, उन्हें "पीआईएल मास्टर गैंग" कहा, जो राज्य की जनता के लिए शुरू की गई योजनाओं में लगातार रुकावट डालने का काम कर रही है। उन्होंने कहा कि बीजेपी ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा शुरू की गई झारखंड मुख्यमंत्री मैयान सम्मान योजना (JMMSY) के खिलाफ जनहित याचिका (PIL) दायर की है।

कल्पना सोरेन की यह यात्रा खासकर महिला मतदाताओं के बीच काफी लोकप्रिय हो रही है। सरकार की योजना के तहत 21 से 50 साल की महिलाओं को हर महीने ₹1,000 की आर्थिक सहायता दी जा रही है। इसके साथ ही, उन्होंने आदिवासी समुदाय की पहचान और संस्कृति की रक्षा के लिए अलग सरना धर्म कोड और आदिवासी भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग को भी जोरदार तरीके से उठाया।

बीजेपी ने इसके जवाब में 'गोगो दीदी' योजना की घोषणा की है, जिसमें सरकार बनने पर महिलाओं को ₹2,100 प्रति माह दिए जाने का वादा किया गया है। लेकिन झारखंड सरकार ने आरोप लगाया है कि बीजेपी इस योजना के लिए चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन कर रही है, जिसके तहत बीजेपी चुनाव से पहले महिलाओं से फॉर्म भरवा रही है।

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सभी जिलाधिकारियों को चुनाव नियमों का सख्ती से पालन कराने के निर्देश दिए हैं और कहा है कि जो भी नियम तोड़ेगा उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। इसके जवाब में, बीजेपी नेताओं ने सोरेन सरकार पर अपने कल्याणकारी योजनाओं में रुकावट डालने का आरोप लगाया है।

कल्पना की विशेषता उनकी सहजता है जिसके जरिये वे आम आदिवासी महिलाओं से आसानी से कनेक्ट कर पाती हैं. वे रैलियों में ना केवल महिलों के सम्मान की बात करती हैं , उन्हें सरकारी सुरक्षा और मदद का भरोसा जगाती हैं बल्कि साथ साथ आदिवासी संस्कृति और भाषा की रक्षा का भी वादा करती हैं. " हमारी कुडुक भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए हेमन्त जी नें केंद्र सरकार को पत्र लिखा है। पर अभी तक यह मामला केंद्र की भाजपा सरकार के पास लंबित है। हालांकि, हमें निश्चिंत रहना चाहिए क्योंकि हमारे अधिकारों के लिए हेमंत सोरेन जी दिन-रात प्रयास कर रहे हैं।"- इस प्रकार से सहज संवाद करने की कुशलता ही कल्पना की ताकत हैं.

कल्पना के प्रति क्रेज का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भाजपा की चुनावी सभाओं की तुलना में कल्पना को सुनने एलोगों की जबरदस्त भीड नजर आती है. वरिष्ठ पत्रकार शकील अख्तर लिखते हैं कि नक्सल प्रभावित इलाकों में जहाँ शाम 5-6 बजे बाद आम तौर पर महिलाएं घर से बाहर नहीं निकलती, कल्पना सोरेन के निकलने पर सडकों पर महिलाएं दिखाई देती हैं जो एक सुखद परिवर्तन है. शकील के अनुसार परिस्थितियोंवश एक महिला नेता का उदय हो जाना झामुमो के लिए वरदान बन चुका है.

गौरतलब है कि हेमन्त सोरेन के जेल जाने के बाद जब झामुमो पर संकट छाया था, कल्पना ने एक गृहिणी की भूमिका को छोड़कर सक्रिय राजनीति में अचानक प्रवेश किया, इंडिया गठबंधन की सभाओं में भाग लिया, हेमन्त सोरेन के लिए न्याय की मांग करते हुए भाजपा को ललकारा था. गांडेय विधानसभा सीट से उपचुनाव जीतकर विधायक बनी कल्पना कुछ ही महीनों में राष्ट्रीय मीडिया की सुर्ख़ियों में छा गयीं.

कल्पना सोरेन की बढ़ती लोकप्रियता और 'मईया सम्मान यात्रा' की सफलता ने बीजेपी को परेशान कर दिया है। जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, झामुमो और बीजेपी के बीच यह राजनीतिक मुकाबला और तीव्र होता जा रहा है।

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