नई दिल्ली। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्रसंघ चुनाव में वामपंथी एकता ने एक बार फिर से अपना परचम लहरा दिया है। सेंट्रल पैनल के चार में से तीन पदों- अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और जॉइंट सेक्रेटरी के पद पर लेफ्ट यूनाइटेड के उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की है। वहीं, जनरल सेक्रेटरी के पद पर बापसा की उम्मीदवार ने जीत हासिल की है। यह पहली बार है जब बापसा के किसी उम्मीदवार ने सेंट्रल पैनल के पद पर अपनी जगह बनाई है। मेरे लिए यह पहला मौका है जब मैं जेएनयू के छात्रसंघ चुनाव को इतने करीब से देख रही हूँ।
चार साल के बाद हुए छात्रसंघ चुनावों ने जेएनयू के छात्रों को एक बार फिर उत्साह से भर दिया है। कैंपस में हर तरफ चुनावी माहौल की सरगर्मी है। चारों ओर ‘लाल सलाम’, ‘जय भीम’ और ‘वंदे मातरम्’ के नारों की आवाज़ें और ढोल-डफली की गूंज सुनाई दे रही है।
लंबे समय बाद जेएनयू फिर से अपने रंग में रंगा हुआ नजर आ रहा है। होली के दिन चुनाव परिणाम घोषित होने से यह और भी खास हो गया है। जीत का जश्न मनाने के साथ ही जेएनयू के छात्र एक-दूसरे को रंग और गुलाल लगाकर बधाई दे रहे हैं। किसी के गालों पर लाल, किसी के केसरिया तो किसी के चेहरे पर नीला रंग लगा हुआ है।
चुनाव के अंतिम परिणामों की घोषणा के बाद पिछले तीन दिन से मतगणना स्थल के बाहर डेरा लगाकर बैठे सैकड़ों छात्र अब जीते हुए प्रत्याशियों को कंधों पर उठाकर नारेबाजी करते हुए जुलूस निकाल रहे हैं। यह जुलूस गंगा ढाबा के पास जाकर खत्म हुआ, जहाँ छात्रसंघ के नव-निर्वाचित पदाधिकारियों ने वहाँ मौजूद छात्रों को संबोधित किया। इसके बाद छात्र देर तक ढपली बजाते और जोगीरा..सारा..रा..रा.. जैसे होली के गीतों को गाते हुए थिरकते रहे।
बेहतर शिक्षा का ख़्वाब देखने वाले छात्रों को जीत का श्रेय
अध्यक्ष पद पर चुने गए धनंजय से जीत के बाद जब मैंने बात की तो उनसे पूछा कि आप इस जीत का श्रेय किसे देना चाहेंगे? इस पर वह कहते हैं, “मैं इस जीत का श्रेय कैंपस के उन तमाम छात्रों को देता हूँ जो अलग-अलग वर्ग से आते हैं, अलग-अलग जगह से आते हैं…वे जो बेहतर नौकरी और बेहतर शिक्षा का ख़्वाब देखते हैं। क्योंकि बहुत कम लोग यहाँ तक पहुंच पाते हैं, हर कोई यहाँ तक नहीं पहुँच पाता…।”
धनंजय आगे जोड़ते हैं, “जेएनयू एक बेहतरीन कैंपस है, यहाँ अच्छी पढ़ाई होती है, अच्छे डिस्कशन और डिबेट होते हैं। इस कैंपस को ऐसा ही बचाए रखना एक बहुत बड़ी लड़ाई है, एक संघर्ष है ताकि आगे आने वाली पीढ़ियों को यह कैंपस इसी रूप में मिल सके।”
ऐसे समय में जब देशभर में हिंदुत्ववादी राजनीति का बोलबाला है, जेएनयू के छात्रसंघ चुनाव में वामपंथी संगठनों के पैनल को बड़ी जीत मिली है। इससे जुड़े मेरे सवाल पर धनंजय कहते हैं, “यहाँ लेफ्ट यूनाइटेड को सेंट्रल पैनल समेत काउंसलर्स के तमाम पदों पर बड़े अंतर से जीत मिली है, क्योंकि स्टूडेंट्स को पता है कि जब उनके मुद्दों को लेकर प्रोटेस्ट करने की बात होगी, फीस बढ़ोतरी की बात होगी तो लेफ्ट ही आगे खड़ा रहेगा। जब-जब इस कैंपस की गरिमा पर हमला होता है तो लेफ्ट यूनियन ही सबसे पहले आगे आकर लड़ाई लड़ता है।”
जेएनयू छात्रसंघ के नव-निर्वाचित अध्यक्ष धनंजय मूलरूप से बिहार के गया जिले के रहने वाले हैं और वो दलित समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। उनके संगठन आइसा के मुताबिक 27 साल बाद दलित समाज का कोई छात्र जेएनयू छात्रसंघ का अध्यक्ष बना है।
“यह प्रतिनिधित्व और पहचान की लड़ाई की जीत है”
जेएनयू छात्रसंघ चुनाव सेंट्रल पैनल में पहली बार किसी दलित क्वीयर महिला को चुना गया है। जनरल सेक्रेटरी के पद पर निर्वाचित बापसा की प्रियांशी आर्या से जब मैंने बात की तो उन्होंने कहा, “यह एक ऐतिहासिक जीत है। यह प्रतिनिधित्व और पहचान की लड़ाई की जीत है। यह हमारे लिए बहुत भावुक पल है।” ऐसा कहते हुए प्रियांशी की आंखें खुशी के आंसुओं से छलकने लगती है।
प्रियांशी कहती हैं, "बापसा को बनाने वाले हमारे सीनियर्स ने अपनी पहचान और गरिमा के लिए लंबी लड़ाई लड़ी है। हमें चुनाव में अगर 300-400 वोट भी मिल जाते थे तो भी बापसा विक्ट्री मार्च निकालता था क्योंकि यह हमारे लिए बहुत बड़ी बात थी कि बहुजन इतने निचले तबके से आकर भी यह लड़ाई लड़ पा रहे हैं। वहाँ से लेकर आज हम कितना दूर आ गए हैं कि सेंट्रल पैनल में अपनी जगह बनाने में कामयाब हुए हैं। यह हमारे लिए उत्साहवर्धन करने और प्रेरणा देने वाला पल है। मेरा मानना है कि देश भर में जो लोग अंबेडकरवादी आंदोलन का समर्थन करते हैं, यह उन सबके लिए बहुत भावुक कर देनेवाला लेकिन गर्व करने का क्षण है।”
बता दें कि जेएनयू में सन 1972 से छात्रसंघ के चुनाव हो रहे हैं। वहीं, बिरसा अंबेडकर फुले स्टूडेंट्स एसोशिएशन यानी बापसा 2014 में अस्तित्व में आया। हालांकि, बापसा अभी तक जेएनयू के छात्रसंघ चुनाव में सेंट्रल पैनल के पदों पर कभी भी जीत हासिल नहीं कर सका है। लेकिन काउंसलर के पदों पर बापसा के उम्मीदवार पहले भी जीतते रहे हैं।
नव-निर्वाचित जनरल सेक्रेटरी प्रियांशी आर्या समेत बापसा से जुड़े छात्रों का कहना है कि सेंट्रल पैनल में जनरल सेक्रेटरी के पद पर जीत उनके संगठन की अपनी जीत है। यह उन्हीं की मेहनत का नतीजा है। वहीं, यूनाइटेड लेफ्ट से जुड़े छात्रों का दावा है कि उनके समर्थन से ही बापसा सेंट्रल पैनल में अपनी जगह बनाने में कामयाब हो पाया है। इस बारे में जब मैंने नव-निर्वाचित अध्यक्ष धनंजय से सवाल किया तो उन्होंने कहा, “बापसा ने वाकई बहुत मेहनत की है और वह इस जीत के हकदार हैं। मैं इसके लिए उनको बधाई देता हूँ।”
“हम पीछे हटने वालों में से नहीं है”
लेफ्ट पैनल की जीत के बाद जब मैंने आइसा के जेएनयू इकाई अध्यक्ष क़ासिम दरगाही से बात की तो उन्होंने कहा, “हम मुद्दों की राजनीति करते हैं इसीलिए स्टूडेंट्स हमेशा हमें चुनते हैं। हमें तो जीतना ही था। पिछले चार वर्षों में जेएनयू प्रशासन ने चुनाव को रोक कर रखने की बहुत कोशिश की। यहाँ तक कि प्रोग्रेसिव और अंबेडकरवादी संगठनों के जो भी संभावित उम्मीदवार होते थे उन्हें किसी न किसी तरह का नोटिस थमा दिया जाता था ताकि यहाँ लीडरशिप क्राइसिस पैदा हो जाए। लेकिन इन सबके बावजूद जेएनयू के स्टूडेंट्स में ऐसा पोटेंशियल है कि वो अपना लीडर खुद चुन लेते हैं।”
उन्होंने आगे कहा, “जेएनयू के स्टूडेंट्स ने इस चुनाव में एबीवीपी और प्रशासन के खिलाफ एकतरफा मतदान किया और वह उनके नेक्सस को नाकामयाब करने में सफल रहे हैं। आप देख रहे हैं कि प्रशासन ने हमारी एक जीतने वाली उम्मीदवार का नामांकन सात दिन के प्रचार के बाद चुनाव से महज कुछ घंटे पहले रद्द कर दिया। इसके बाद भी इस कैंपस के छात्रों ने हिम्मत नहीं हारी और इस फेज में भी फैसला लिया और एबीवीपी को हराया।”
वह आगे जोड़ते हैं, “इस चुनाव के जरिए हम एक मैसेज देना चाहते हैं कि जेएनयू के स्टूडेंट्स और यहाँ के छात्र संगठन कितनी जल्दी अपने मुद्दों को लेकर सभी स्टूडेंट्स तक पहुंच गए। सिर्फ 7 दिन के कैंपैन से ही हमने एक-एक स्टूडेंट को यह बता दिया कि चुनाव को लेकर हमारे मुद्दे क्या हैं और हम किस तरह का कैंपस चाहते हैं।”
देश में चल रहे तमाम मुद्दों से जुड़े मेरे सवाल पर क़ासिम कहते हैं, “हम लोग कैंपस के मुद्दों के साथ-साथ पूरे देश को देखने का विजन रखते हैं। लेफ्ट के बारे में कहा जाता है कि वह संसद से ज्यादा सड़कें पसन्द करने वाले लोग हैं। हम इन सभी मुद्दों के साथ हमेशा खड़े रहते हैं। यह हमारे लिए एक रूटीन काम की तरह है। हम केवल चुनावी मौसम में सड़क पर उतरने वाले नहीं है। आज हम यहाँ इलेक्शन जीत रहे हैं, जश्न मना रहे हैं, कल आप हमें कहीं सड़क पर प्रोटेस्ट करते हुए पाएंगे, लाठियां खाते हुए पाएंगे। लेकिन एक चीज आप देखेंगे कि हम हमेशा डटे रहेंगे। हम पीछे हटने वालों में से नहीं है।”
जीत के बाद आगे की योजना के बारे में पूछने पर वह बताते हैं, “हमारी जेएनयू प्रशासन से यही मांग है कि वह अपनी पिछली हरकतें भूल जाए और जेएनयू छात्रसंघ के जो निर्वाचित प्रतिनिधि है उनकी बात मानें, हमें इंफ्रास्ट्रक्चर दें, किताबें दें और हमें एक अच्छा और शांत कैंपस दें जिसमें हिंसा के लिए कोई जगह न हों।”
“सबको प्रतिनिधित्व का हक़ मिलना चाहिए”
27 वर्षों की लंबी अवधि के बाद जेएनयू में लेफ्ट यूनाइटेड पैनल की ओर से किसी दलित छात्र को अध्यक्ष पद के लिए उम्मीदवार बनाया गया और उन्होंने जीत भी हासिल की है। इससे जुड़े मेरे सवाल पर क़ासिम बताते हैं, “एक संगठन का मुखिया होने के नाते मेरे लिए निजी तौर पर यह बहुत गर्व की बात है कि मेरे कार्यकाल में एक दलित उम्मीदवार अध्यक्ष पद पर चुनकर आया है। लेकिन बात यहीं तक खत्म नहीं होती। हमें एक संगठन के तौर पर यह भी सोचना चाहिए कि आखिर इतने साल कैसे लग गए? हम चाहेंगे कि यह सिलसिला निरंतर चलता रहे। क्योंकि, अगर देश की सबसे बड़ी आबादी को प्रतिनिधित्व मिलने में 27 साल लग रहे हैं तो यह हम सब के लिए चिंता की बात है। हमारा मानना है कि इस देश में जितने भी उत्पीड़ित समुदाय हैं, चाहे वह महिलाएं हों, दलित हों, ओबीसी हों या मुस्लिम हों इन सबको प्रतिनिधित्व का हक़ मिलना चाहिए।”
पहले से बेहतर हुई है एबीवीपी की स्थिति
एबीवीपी की ओर से जनरल सेक्रेटरी के पद पर चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार अर्जुन आनंद इस चुनाव को एबीवीपी के लिए एक बड़ी सफलता के तौर पर देखते हैं। जब मैंने चुनाव परिणामों के बारे में उनसे बात की तो उन्होंने कहा, “चुनाव प्रक्रिया पूरी तरह से लोकतांत्रिक तरीके से हुई है। छात्रों की जो इच्छा है हम उसका सम्मान करते हैं। हमें उनका फैसला खुशी-खुशी स्वीकार है।” जब मैंने उनसे पूछा कि एबीवीपी के लिए इस चुनाव का क्या हासिल रहा तो उन्होंने कहा, “इस चुनाव के जरिए एबीवीपी हर सेंटर में प्रवेश करने में सफल हुई है और एबीवीपी की स्थिति पहले से ज्यादा बेहतर हुई है। सेंट्रल पैनल में भी हर सीट पर हमारे लगभग एक हजार वोट बढ़े हैं। मतलब हम जीत की ओर बढ़ रहे हैं। यह हमारे लिए खुशी की बात है। हम जल्दी ही जीतेंगे।”
वहीं, एबीवीपी की ओर से उपाध्यक्ष पद की उम्मीदवार दीपिका शर्मा का कहना है कि, “पिछले चार वर्षों में जब जेएनयू में छात्रसंघ के चुनाव नहीं हो रहे थे तो लेफ्ट के सारे संगठन बिलकुल शांत हो गए थे उन्होंने छात्रों की समस्याओं को हल करने के लिए कुछ भी नहीं किया। लेकिन एबीवीपी के कार्यकर्ताओं ने हर एक छात्र से मिलकर उनकी समस्याओं को जाना और उन्हें हल करने का प्रयास किया।”
उन्होंने कहा, “जब हम डोर टू डोर कैम्पैन चलाते हैं, वन टू वन लोगों से मिलते हैं तो लोग भी हमारी लीडरशिप को पहचानते हैं और स्वीकार करते हैं। अगली बार हमारी कोशिश रहेगी कि हम ज्यादा से ज्यादा छात्रों तक पहुँचें।”
जेएनयू में छात्रसंघ के चुनाव ऐसे समय में हुए हैं जब देश में लोकसभा चुनाव कुछ ही दिनों में होने वाले हैं। ऐसे में पहले यह अटकलें लगाई जा रही थी कि इस बार एबीवीपी लेफ्ट को कड़ी टक्कर देगी और सेंट्रल पैनल के पदों पर जीत दर्ज करेगी। लेकिन चुनाव परिणाम में नतीजा इसके बिलकुल विपरीत रहा और लेफ्ट अपने गढ़ में दबदबा कायम रखने में कामयाब रहा।
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