आम चुनाव 2024: बैतुल लोकसभा सीट पर कौन मरेगा बाजी, विश्लेषण से समझिए समीकरण?

अनुसूचित जनजाति (एसटी) आरक्षित बैतुल लोकसभा सीट को भाजपा का अभेद किला कहा जाता है। किसको जीत मिलेगी। इस पूरे समीकरण को द मूकनायक के विश्लेषण से समझिए।
आम चुनाव 2024: बैतुल लोकसभा सीट पर कौन मरेगा बाजी, विश्लेषण से समझिए समीकरण?
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भोपाल। मध्य प्रदेश में अनुसूचित जनजाति (एसटी) आरक्षित बैतुल लोकसभा सीट पर इस बार कड़ा मुकाबला होगा। हरदा, बैतुल और खण्डवा इन तीनों जिलों को मिलाकर बैतुल लोकसभा बना है। इस लोकसभा क्षेत्र को भाजपा का अभेद किला कहा जाता है। यहां 1996 के बाद हुए 9 लोकसभा चुनाव और उपचुनाव समेत बीजेपी एक भी चुनाव नहीं हारी है। एक जमाने में बैतुल कांग्रेस की सुरक्षित सीट मानी जाती थी। लोकसभा चुनाव 2024 में बैतुल सीट पर किसको जीत मिलेगी। इस पूरे समीकरण को द मूकनायक के विश्लेषण से समझिए। 

बैतूल संसदीय क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी दुर्गादास उइके ने शनिवार को अपना नामांकन पत्र जिला निर्वाचन अधिकारी के पास जमा कर दिया है। दुर्गादास उइके बैतुल के मौजूदा सांसद हैं, भाजपा ने दूसरी बार उनपर भरोसा जताया है। वहीं कांग्रेस ने एक वार फिर इस सीट से रामू टेकाम को प्रत्याशी बनाया है। 2019 में रामू चुनाव हार गए थे। इस क्षेत्र में सक्रिय रहने के कारण कांग्रेस ने उन्हें पुनः मौका दिया है। 

पलायन का मुद्दा है मुख्य

इस क्षेत्र से लोगों का सीमावर्ती राज्य महाराष्ट्र में पलायन हो रहा है। रोजगार की तलाश में यहां के लाखों लोग पलायन कर जाते हैं। इसके साथ शिक्षा, स्वास्थ्य का भी मुद्दा अहम है। यहां के लोग इलाज के लिए नागपुर जाते है। महाविद्यालयों की भी कमी है, छात्र उच्च शिक्षा के लिए, नागपुर, भोपाल और जबलपुर जाते हैं। 

जनता की राय 

हरदा निवासी सौरभ सिंह बताते हैं कि इस क्षेत्र में रोजगार की खासी कमी है। कोई भी प्रोजेक्ट फैक्ट्री इस क्षेत्र में नहीं है। जहाँ लोगों को काम मिल सके। इस बार के चुनाव में रोजगार का मुद्दा है। इतने वर्षों से भाजपा के सांसद यहां रहे, लेकिन विकास नहीं हुआ। तीनों जिलों में सबसे ज्यादा हरदा जिले की हालत खराब है। 

खंडवा के प्रियांशु त्रिपाठी ने बताया कि यहां इंजीनियरिंग के कॉलेज नहीं होने के कारण उन्होंने भोपाल से पढ़ाई की है। सिविल इंजीनियर की डिग्री होने के बाद जब वह घर लौटे तो उन्हें नौकरी नहीं मिली। प्रियांशु ने कहा- "हमारे क्षेत्र में रोजगार की समस्या है, किसी क्षेत्र की पढ़ाई कर लो नौकरी नहीं मिलती, अब मैं प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहा हूँ।"

द मूकनायक से बातचीत करते हुए बैतुल के स्थानीय पत्रकार अनिल कजोडे कहते हैं। इस बार मतदाता साइलेंट हैं। भाजपा के दुर्गादास उइके की आंतरिक विरोध की जानकारी मिल रही है। भाजपा प्रत्याशी कार्यकर्ताओं से दूर रहे हैं, इसलिए पार्टी के मंडल स्तर के कार्यकर्ताओं में नाराजगी की खबरें भी सामने आ रही हैं। अनिल ने कहा- "इस क्षेत्र में सबसे बड़ा मुद्दा पलायन, रोजगार और स्वास्थ्य का है, जिस पर बीते 5 वर्षों में कोई खास काम नहीं हुआ।"

वोटर्स की स्थिति

बैतूल लोकसभा के अन्तर्गत आठ विधानसभा सीट है। इसमें हरदा जिले की दो सीटें-टिमरनी और हरदा, खंडवा जिले की हरसूद विधानसभा सीट और बैतूल जिले की पांच विधानसभा सीट घोड़ाडोंगरी, भैंसदेही, आमला, मुलताई,और बैतूल है। बैतूल लोकसभा में कुल 17,37,437 मतदाता हैं। इनमें पुरुष मतदाताओं की संख्या- 8,39,871 जबकि महिला मतदाताओं की संख्या-8,97,538 है। यहां थर्ड जेंडर निर्वाचक कुल 28 हैं। यहां की 40.56 प्रतिशत जनसंख्या अनुसूचित जनजाति के लोगों की है और 11.28 प्रतिशत जनसंख्या अनुसूचित जाति के लोगों की है। 

2019 में हुए लोकसभा चुनाव में कुल मतदान प्रतिशत 78.15% था। बात जातिगत समीकरण की करें तो इस लोकसभा सीट पर एससी/एसटी वर्ग के मतदाता निर्णायक हैं। इसके बाद ओबीसी और सामान्य वर्ग के मतदाता प्रभावी हैं। इसके साथ ही मुस्लिम मतदाता यहां जीत हार तय करने में अहम भूमिका निभाते हैं। 

क्या है सीट का इतिहास? 

बैतूल संसदीय क्षेत्र के इतिहास में हुए 17 चुनावों में कांग्रेस और भाजपा का मुकाबला बराबर का रहा है। दोनों ही दलों ने 8-8 बार जीत दर्ज की है। एक बार भारतीय लोकदल ने जीत दर्ज की थी। पिछले सात चुनावों से इस सीट पर लगातार भाजपा जीत दर्ज कर रही है। 2009 में नए परिसीमन के बाद यह सीट अजा वर्ग के लिए आरक्षित हुई। इसके बाद हुए दो चुनावों में भी भाजपा ने सीट बरकरार रखी।

बैतूल लोकसभा सीट पर 1951 में हुए पहले चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली। 1957, 1962, 1967 और 1971 के चुनाव में भी इस सीट पर कांग्रेस बरकरार रही। 1977 के चुनाव में यह सीट भारतीय लोकदल ने पहली जीत हासिल की। हालांकि 1980 में कांग्रेस ने यहां पर वापसी की और गुफरान ए आजम सांसद बने। इसके अगले चुनाव 1984 में भी कांग्रेस को जीत मिली। भाजपा ने पहली बार यहां पर जीत 1989 में हासिल की। आरिफ बेग ने कांग्रेस के असलम शेर खान को हराकर यहां पर भाजपा को पहली जीत दिलाई। 

1991 के चुनाव में कांग्रेस के असलम शेर खान ने भाजपा के आरिफ बेग को हरा दिया। 1996 में भाजपा ने यहां पर फिर वापसी की और विजय कुमार खंडेलवाल यहां के सांसद बने। तभी से यह सीट भाजपा के पास है। विजय कुमार खंडेलवाल ने 1996, 1998, 1999 और 2004 के चुनाव में जीत दर्ज की। उनके निधन के बाद 2008 में हुए उपचुनाव में विजय कुमार खंडेलवाल के बेटे हेमंत खंडेलवाल जीत कर सांसद बने। परिसीमन के बाद 2009 में यह सीट एसटी वर्ग के लिए आरक्षित हो गई। 2009 में भाजपा ने यहां से ज्योति धुर्वे को उतारा। ज्योति धुर्वे ने जीत हासिल की। धुर्वे 2014 की मोदी लहर में फिर सांसद चुनी गईं। 

2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने ज्योति धुर्वे का टिकट काट कर दुर्गा दास उइके को मैदान में उतारा था। उइके ने कांग्रेस पार्टी के रामू टेकाम को 3,60,241 वोटों से चुनाव हराया था। तीसरे स्थान पर बीएसपी के अशोक भलावी रहे थे। बीजेपी के दुर्गा दास उइके को जहां 811248 (59.74) प्रतिशत वोट मिले थे  जबकि कांग्रेस पार्टी के रामू टेकाम को 4,51,007 वोट मिले।  वहीं बीएसपी के अशोक भलावी को 23,573 वोट मिले थे। 

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