बिहार 75 प्रतिशत आरक्षण: ‘मुद्दे पर विस्तार से सुनवाई की जरूरत, आंकड़े सार्वजनिक डोमेन में डालें’

आरजेडी की राष्ट्रीय प्रवक्ता ने कहा, जब समाज में पिछड़ापन और गरीबी वर्ण व्यवस्था से प्रभावित होती है तो जाति आधारित सर्वे कराकर, सामाजिक और आर्थिक आधार पर पॉलिसी क्यों नहीं बनाई जा सकती?
75 प्रतिशत आरक्षण
75 प्रतिशत आरक्षणग्राफिक- द मूकनायक
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नई दिल्ली: बिहार सरकार एससी-एसटी, ओबीसी, अत्यंत पिछड़ा वर्ग और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 70 प्रतिशत करने के फैसले को अंतरिम रूप से लागू करने की स्थिति में आ चुकी है. सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को जातियों की गणना की राज्य सरकार की कवायद और उस फैसले को पटना हाईकोर्ट की तरफ से बहाल रखे जाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अंतरिम राहत देने से इंकार कर दिया है.

सर्वोच्च न्यायालय ने बिहार सरकार से कहा कि जाति गणना से जुड़े आंकड़ों का पूरा ब्रेकअप पब्लिक डोमेन में डालना सुनिश्चित करें ताकि उससे प्रभावित होने वाले लोग इसके निष्कर्षों को चुनौती दे सकें। इसके बाद ही सर्वोच्च न्यायालय की तरफ से इस मामले के कानूनी पहलुओं पर विचार किया जाएगा।

हालांकि, पक्ष विपक्ष की दलीलों को सुनने के बाद शीर्ष कोर्ट ने मामले की सुनवाई 5 फरवरी तक टाल दिया है। जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने जनहित याचिकाओं पर अंतरिम राहत से इनकार करते हुए कहा, इसका सवाल ही नहीं उठता क्योंकि हाईकोर्ट का आदेश उनके (सरकार के) पक्ष में हैं। अब जबकि डाटा सार्वजनिक डोमेन में डाला जा चुका है तो दो-तीन पहलू सामने आते हैं। इसमें पहला कानूनी मुद्दा हाईकोर्ट के फैसले की शुद्धता और इस पूरी कवायद की वैधता से जुड़ा है। 

इससे पहले याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरीष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन ने दलील दी कि चूंकि सर्वेक्षण डेटा सामने आ चुका है। रामचंद्रन ने कहा कि राज्य सरकार डेटा पर काम कर रही है इसलिए तत्कालिक हस्तक्षेप की जरूरत को देखते हुए मामले को अगले सप्ताह सूचीबद्ध किया जाना चाहिए।

राजद की राष्ट्रीय प्रवक्ता, कंचना यादव द मूकनायक को बताती हैं कि, जब से जाति आधारित सर्वे का आंकड़ा आया है तब से हम देख रहे हैं कि उस आंकड़ें को लेकर बीजेपी और आरएसएस में एकमत नहीं है। कभी गृहमंत्री अमित शाह बोलते हैं कि यादव और मुसलमानों की संख्या बढ़ा दी गई है तो कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बोलते हैं कि जातियों में तोड़ने की कोशिश हो रही है। नरेंद्र मोदी आजाद भारत के इतिहास में पहले प्रधानमंत्री बनें जो अपनी जाति बताकर चुनाव लड़े। सवाल यही है कि जब समाज में पिछड़ापन और गरीबी वर्ण व्यवस्था से प्रभावित होती है तो जाति आधारित सर्वे कराकर, सामाजिक और आर्थिक आधार पर पॉलिसी क्यों नहीं बनाई जा सकती?

“जाति आधारित सर्वे के आंकड़ें को देखते हुए बिहार सरकार ने 75% तक आरक्षण बढ़ाना उचित समझा और इसके साथ ही अन्य कई पॉलिसी भी बनाई जिससे जिनके पास जमीन नहीं है या घर नहीं है उन्हें जमीन खरीदने और घर बनाने के लिए आर्थिक मदद मिल सके”, कंचना यादव ने कहा.

“लेकिन आर्थिक और सामाजिक न्याय के विरोधी जातिगत सर्वे के बाद आए आंकड़ों के बाद सरकार द्वारा लिए जा रहे फैसलों को पचा नहीं पा रहे हैं। इसलिए वो हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीमकोर्ट तक का चक्कर लगा रहे हैं ताकि बिहार में हो रहे सामाजिक और आर्थिक न्याय को रोक सकें.”

प्रवक्ता, कंचना यादव ने आगे कहा, “सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को जाति-आधारित सर्वेक्षण के आंकड़ों के आधार पर आगे निर्णय लेने से रोक लगाने से इनकार करके सामाजिक और आर्थिक न्याय के विरोधियों के मंशा पर पानी फेर दिया है.”

किसने दाखिल की थी याचिका?

सिविल सोसायटी के सदस्यों, गौरव कुमार और नमन श्रेष्ठ द्वारा बिहार सरकार के 70 प्रतिशत आरक्षण के फैसले पर चुनौती देते हुए कहा गया था कि आरक्षण की सीमा को बढ़ाने के लिए जो तर्क दिए गए हैं वह तर्कसंगत नहीं दिख रहा है. इससे पहले पटना हाईकोर्ट में सरकार के फैसले को चुनौती देते हुए कहा गया था कि आरक्षण की सीमा को 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 75 प्रतिशत करना वाजिब नहीं है. ऐसे में सरकार के इस फैसले की समीक्षा होनी चाहिए.

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