नई दिल्ली। भारत ही नहीं पूरे विश्व में अंबेडकर जयंती हर्षोल्लास से मनाई जा रही है, लेकिन समय-समय पर अंबेडकर और उनके विचारों को लेकर तमाम तरह के विवाद चर्चा में आते रहते हैं। कई बार अंबेडकर के बनाये संविधान को ही समाप्त कर देने तक के बयान ने भारत की राजनीति में खलबली मचा दी है। ऐसे में कई सवाल उठते हैं। क्या बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के विचारों का महत्त्व आज भी रह गया है या सिर्फ उनके नाम का इस्तेमाल कर लोग और राजनीतिक पार्टियां अपना अपना स्वार्थ सिद्ध करने में लगी हैं।
द मूकनायक ने तमाम प्रश्नों को लेकर दलित चिंतकों और बुद्धजीवियों से बातचीत की। प्रोफेसर रतन लाल इस मामले में कहते हैं- "बहुजन समाज को लेकर की गई राजनीति ने अंबेडकर के विचारों पर गलत प्रभाव डाला है। सत्ता में आने के लिए लोग बाबा साहेब के नाम का गलत इस्तेमाल करते हैं। वहीं दलित चिंतक हमेशा प्रयास में रहते हैं कि इस वंचित समाज के साथ कोई भी छल न हो सके। बाबा साहेब के नाम पर अब पहले से ज्यादा राजनीति हो रही है। पहले समाजिक और आर्थिक मुद्दों पर बात होती थी।"
रतन लाल कहते हैं- "वर्तमान समय में चल रही राजनीति ने इसे गंदा कर दिया है। भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस जैसे संघठन देश में फिर से मनुवादी व्यवस्था लाने का प्रयास कर रहे हैं। वह समय समय पर खुद को दलितों का हितैषी बताते हैं। उनके घर बैठकर खाना खाते हैं। दलितों के पैर धुले जाते हैं। यह सब ओछी राजनीति है।"-
"उनसे न्याय की उम्मीद नहीं की जा सकती। यह पार्टी सिर्फ वैसे ही काम करती है जैसे एक बिल्ली को दूध की रक्षा करने के लिए कह दिया जाए। ऐसी राजनीति सिर्फ दलितों का वोट हासिल करने के लिए की जाती है। जब न्याय की बात आती है, तो दलितों को इससे वंचित रहना पड़ता है। आज भी भेदभाव जारी है।" -रतन लाल ने कहा।
द मूकनायक लगातार दलित-शोषित और वंचितों की लगातार खबरें कर रहा है। संविधान से जुड़े मुद्दों के मामले में दलितों और महिलाओं पर हो रहे अपराध के आंकड़ों में तेजी से इजाफा हुआ है। यही कारण है कि हम लागतार ऐसे मुद्दों की आवाज बन रहे हैं। सरकारी आंकड़े भी दलित उत्पीड़न के मामलों में हुए इजाफे को लेकर गवाही दे रहे हैं।
इस मामले को लेकर मध्य प्रदेश के पूर्व विधायक और दलित चिंतक सुनीलम मिश्र कहते हैं-"बाबा साहेब के विचारों की अगर बात करें, तो वर्तमान राजनीति में इसका गहरा प्रभाव पड़ा है। यही कारण है कि आज हर एक राजनीतिक पार्टी संविधान और अंबेडकर के विचारों को लेकर राजनीति कर रही हैं। कुछ पार्टियां मनुवादी व्यवस्था कायम करने में जुटी हैं, लेकिन अंबेडकर के विचारों का प्रचार-प्रसार करने वाले लोगों के कारण मनुवादी और संविधानवादी विचारों के बीच एक गहरी रेखा खींच गई है। वंचित समाज अब अपने अधिकारों को जान रहा है। आज वह समय है जब आधुनिकीकरण ने बाबा साहेब की छाप विश्व पटल पर बनाई है।"
"यह उनके विचारों का ही प्रभाव है। लोग कितना भी प्रयास कर लें, लेकिन बाबा साहेब के विचार आज आधुनिक माध्यम से लोगों तक पहुंच रहे हैं। आज कम शिक्षित व्यक्ति भी संविधान और उसके अधिकारों के विषय में जान रहा है। हालांकि यह हजारों साल पुरानी मनुवादी व्यवस्था है, लेकिन संविधान तैयार होने के बाद के इन 76 सालों में इसका गहरा प्रभाव पड़ा है।"-सुनीलम ने कहा।
सुनीलम कहते हैं- "बाबा साहेब के विचारों के कारण ही आज देश में संविधान को लेकर सबसे ज्यादा चर्चा होती है। सभी राजनीतिक पार्टियां अब संविधान को लेकर सबसे ज्यादा बहस कर रही हैं। पहले कभी ऐसा नहीं देखा गया था। बाबा साहेब ने जाति के आधार पर विभाजन और काम के बंटवारे पर जोर दिया। कांग्रेस जैसी पार्टी जो स्वयं मंडल कमीशन और जाति जनगणना के विरोध करती थी। आज जातीय जनगणना को चुनाव में मुद्दा बना रही है।
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