उत्तर प्रदेश: देशभर में सबसे अधिक लोकसभा सीटों के साथ उत्तर प्रदेश (यूपी) की राजनीति हर बार लोकसभा चुनावों के मद्देनजर काफी खास हो जाती है। प्रदेश की राजनीति में इस बार सत्तारूढ़ दल द्वारा भुनाने के लिए जहां राम मंदिर बड़े मुद्दे के रूप में देखा जा रहा है, वहीं सत्ता पक्ष के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड के खुलासे एक चुनौती के रूप में भी देखे जा रहे हैं।
द मूकनायक टीम ने उत्तर प्रदेश के पूर्वाञ्चल हिस्से में कुछ मीडिया समूहों के संपादकों से बात की कि क्या स्थानीय स्तर पर इलेक्टोरल बॉन्ड इस लोकसभा चुनाव में एक मुद्दा बन सकता है या नहीं। बातचीत के दौरान पत्रकारों ने बताया कि करोड़ों रुपए के इलेक्टोरल बॉन्ड के बारे में और उस पैसे के उपयोग के बारे में यहां लोगों के बीच कोई चर्चा ही नहीं है। अगर यह बात प्रदेश के गांव-देहात के हिस्से में जनता समझ गई तो सत्तारूढ़ दल के 400 पार वाले नारे बुरी तरह फेल हो सकते हैं।
बस्ती मण्डल से प्रकाशित ऑनलाइन मीडिया समूह तहकीकात समाचार के संपादक सौरभ वीपी वर्मा दावा करते हैं कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा चुनावी बॉन्ड को असंवैधानिक घोषित करने के बाद इसके खरीददारों और इस पैसों को प्राप्त करने वाली पार्टियों की जानकारी भारतीय चुनाव आयोग की वेबसाइट पर सार्वजनिक करने के बाद इलेक्टोरल बॉन्ड का जो सच सामने आया है मामला उससे भी कहीं बड़ा है।
सौरभ बताते हैं कि, “देश की लगभग 90 प्रतिशत जनता को इलेक्टोरल बॉन्ड के घोटाले की जानकारी ही नहीं है। अकेले 6 हजार करोड़ से भी ज्यादा का चंदा लेने वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) चाहती तो इससे किसान, मजदूरों, युवाओं के लिए नौकरी, शिक्षा और स्वास्थ्य की दशा बेहतर कर सकती थी। लेकिन भाजपा ने सारा पैसा लोगों को धार्मिक आधार पर झूठ फैलाने, लोगों के बीच नफरत बढ़ाने, आईटी सेल के माध्यम से लोगों को भ्रामक जानकारियां देने और देश की 140 करोड़ की आबादी में अपनी इमेज बनाने के लिए विज्ञापनों पर खर्च कर दिया।”
आपको बता दें कि, भारतीय चुनाव आयोग ने जो डेटा जारी किया है, उससे सारी जानकारी सार्वजनिक हो गई है कि इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिए किससे किस पार्टी को चंदे के रूप में कितनी बड़ी रकम मिली है. यह डेटा 12 अप्रैल 2019 से 24 जनवरी 2024 तक खरीदे गए इलेक्टोरल बॉन्ड का है.
चुनावी बॉन्ड में मिले पैसों को भुनाने वाली पार्टियों में भाजपा, कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी, AIADMK, बीआरएस, शिवसेना, TDP, YSR कांग्रेस, डीएमके, JDS, एनसीपी, जेडीयू और राजद भी शामिल हैं।
चुनाव आयोग द्वारा सार्वजनिक आंकड़ों से पता चलता है कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के कुल 487 दानदाताओं में से टॉप 10 ने 2119 करोड़ रुपये के बॉन्ड खरीदे हैं जो कि पार्टी द्वारा अप्रैल 2019 के बाद से भुनाए गए 6060 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड का 35 प्रतिशत है। यह आंकड़ा सभी दलों में सबसे ज्यादा है।
यूपी में लंबे समय से चुनावी राजनीति के करीब से देखते आ रहे मीडिया दस्तक के संपादक अशोक कुमार श्रीवास्तव द मूकनायक को बताते हैं कि इलेक्टोरल बॉन्ड देश ही नहीं बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा स्कैम है। जो पार्टी स्विस बैंकों में जमा कालाधन वापस लाने का वादा कर घत्ता में आई थी उसे अपने ही खाते छिपाने पड़े, ऐसी नौबत आ गई है। भला हो सीजेआई कि उन्होंने एसबीआई के गले में हाथ डालकर इलेक्टोरल बॉन्ड की सच्चाई को बाहर लाया।
उन्होंने कहा, “आज पूरा देश जान रहा है कि उद्योगपतियों को, नेताओं को जांच के दायरे में लेकर किस तरह इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये धन उगाही की गई है। आज जिस कमरतोड़ महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार को जनता झेल रही है वह भी इलेक्टोरल बॉन्ड का ही नतीजा है।”
“जिन्होंने अपने काले कारनामों पर पर्दा डालने के लिए अरबों रूपया सत्ताधारी दल को चुनावी चंदे के रूप में दिया वे अब जनता से ही उसकी रिकवरी कर रहे हैं। जहां तक इलेक्टोरल बॉन्ड के लोकसभा चुनाव पर साइड इफेक्ट का सवाल है तो स्पष्ट है कि नरेन्द्र मोदी ने इस चुनाव को एकतरफा करने का पूरा मन बना लिया है। आप देख सकते हैं कि अरबों रूपया चंदा लेने वाली पार्टी चुनाव जीतने के लिये पानी की तरह पैसा खर्च कर रही है और दूसरे सबसे प्रमुख विपक्षी दल के बैंक खाते फ्रीज कर दिये गये हैं।”
अशोक श्रीवास्तव इलेक्टोरल बॉन्ड की हकीकत विपक्षी पार्टियों द्वारा जनता के बीच पहुंचाने का जोर देते हुए कहते हैं, “आम आदमी पार्टी ने बोलना शुरू किया तो उसके प्रमुख नेता फर्जी मनगढ़न्त मामले में जेल भेज दिये गये, पार्टी का दफ्तर तक बंद कर दिया गया। इलेक्टोरल बॉन्ड का ऐसा असर हो सकता था कि ईवीएम की सेटिंग काम नही आयेगी और मोदी सरकार सत्ता से बाहर हो जाती। लेकिन इस चुनावी चंदे का पूरा सच विपक्ष जनता के बीच पहुचाने में नाकाम है। इसका फायदा भाजपा को मिलेगा।”
उन्होंने कहा, “अधिकांश नेताओं को बॉन्ड के बारे में पूरा पता ही नहीं है। वे जनता के बीच क्या जाकर बतायें। भाजपा चुनाव को कई मोर्चे पर लड़ती है। खुद की ताकत बढ़ाती जा रही है और विपक्ष की कमर तोड़ती जा रही है। मुकाबला बराबरी का होता है। एक पहलवान का वजन 80 कि. है तो उसे 50 कि. वाले पहलवान से लड़ा देंगे। बराबरी का पहलवान मुकाबले में खड़ा करो तब देखो नतीजे क्या होते हैं।”
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