राजस्थान: फिर भरतपुर से सुलगी आरक्षण आंदोलन की चिंगारी!

22 जनवरी तक मांगें नहीं मानी तो भरतपुर और धौलपुर का जाट समाज दिल्ली-मुम्बई रेलवे ट्रैक करेगा जाम, समाज सरकारी नौकरियों में कर रहा आरक्षण की मांग.
2017 में जंतर-मंतर पर जाट आरक्षण विरोध प्रदर्शन की एक फ़ाइल फोटो।
2017 में जंतर-मंतर पर जाट आरक्षण विरोध प्रदर्शन की एक फ़ाइल फोटो।
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भरतपुर। केन्द्र व राज्य भाजपा सरकार अयोध्या में भगवान राम मंदिर उद्घाटन को लेकर उत्साहित है। दूसरी तरफ मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के गृह जिले से जाट आरक्षण आंदोलन की चिंगारी भी सुलग चुकी है। राजस्थान के भरतपुर व धौलपुर जिले के जाटों ने लोकसभा चुनावों से ठीक पहले आरक्षण आंदोलन का आगाज कर भाजपा के लिए चुनौती खड़ी कर दी है। जाट आंदोलन राजस्थान के मुख्यमंत्री के लिए परीक्षा की घड़ी है। यह बात अलग है कि इस क्षेत्र से पहले गुर्जर आरक्षण आंदोलन का आगाज हुआ था। भरतपुर से शुरू हुआ गुर्जर आरक्षण आंदोलन पूरे देश में फैला था। अब जाट आरक्षण आंदोलन का आगाज हो चुका है।

भरतपुर और धौलपुर के जाट समाज के लोगों ने आरक्षण की मांग को लेकर बीते दिवस बुधवार को जयचौली (भरतपुर) रेलवे स्टेशन के पास महापड़ाव डाल दिया है। आंदोलित जाट समाज ने सरकार को 22 जनवरी तक उनके हक में निर्णय करने का अल्टीमेटम दिया है। इसके पहले जाट समाज ने हुंकार सभा करके सरकार को दस दिन का वक्त दिया था, लेकिन समय बीत गया और सरकार ने कुछ नहीं किया।

अब जयचौली (भरतपुर) रेलवे स्टेशन के पास महापड़ाव से अन्य जगहों पर भी आंदोलन का दायरा बढ़ाने की तैयारी चल रही है। आंदोलित समाज का कहना है कि 22 जनवरी तक इनका आंदोलन गांधीवादी तरीक़े से चलेगा। मांगें नहीं मानी गई तो 22 जनवरी के बाद रेल पटरियों की तरफ कूच कर आंदोलन को उग्र किया जाएगा। रेलवे ट्रैक के अलावा अलग-अलग स्टेट व नेशनल हाईवे जाम किए जाएंगे।

आंदोलन हिंसक होने की आशंका को देखते हुए पुलिस प्रशासन अलर्ट मोड पर है। संभाग के चार जिलों के अलावा अजमेर से भी अतिरिक्त पुलिस जाब्ता बुलाया गया है। दिल्ली-मुम्बई रेलवे ट्रैक के साथ ही आगरा-बीकानेर नेशनल हाईवे पर पुलिस जाब्ता तैनात कर सुरक्षा बढ़ा दी गई है। माना जा रहा है कि पब्लिक सेवाएं बाधित हुई तो पुलिस प्रशासन आंदोलनकारियों से हर स्तर पर निपटने की तैयारी में है।

केन्द्र में भाजपा आई तो 2015 में खत्म कर दिया आरक्षण

जानकारी के अनुसार भरतपुर व धौलपुर जिलों के जाटों को केन्द्र में आरक्षण की मांग 1998 से चली आ रही है। आरक्षण की मांग को लेकर यहां का जाट समाज 1998 से ही आंदोलित है। 2013 में केंद्र की मनमोहन सरकार ने भरतपुर व धौलपुर जिलों के साथ अन्य नौ राज्यों के जाटों को ओबीसी के तहत आरक्षण दिया था। 2014 में केन्द्र में भाजपा की सरकार बनी। इसके बाद केन्द्र सरकार ने 10 अगस्त 2015 को आरक्षण ख़त्म कर दिया। इसके बाद इन दोनों जिलों के जाटों ने आरक्षण लड़ाई लड़ी। आखिऱ 23 अगस्त 2017 में राज्य की पूर्ववर्ती वसुंधरा राजे सरकार ने जाटों के लिए राज्य में तो ओबीसी आरक्षण बहाल कर दिया, लेकिन केंद्र सरकार ने जाटों को कोई आरक्षण नहीं दिया। इस बार यहां का जाट समाज केंद्र सरकार की नौकरियों में आरक्षण के लिए लड़ाई लड़ रहा है।

पीछे मुड़ कर देखें तो अटल बिहारी वाजपेयी जब प्रधानमंत्री थे तब उन्होंने राजस्थान के जाटों को ओबीसी के तहत आरक्षण देने की घोषणा की थी, लेकिन जाटों को इसलिए आरक्षण से वंचित रखा गया कि यहां के जाट राज परिवार से जुड़े हैं। इस लिए इन्हें आरक्षण देना उचित नहीं समझा गया।

यह अलग बात है कि इन जिलों का जाट समाज का हर व्यक्ति संपन्न नहीं है। ना ही सभी लोग राज परिवारों से ताल्लुक रखते हैं। यहां के जाट भी खेती किसानी से जुड़े हैं तथा इनकी कमजोर आर्थिक स्थिति जग जाहिर है। ऐसे में जिले में जाट समाज के राजा होने के कारण पूरे समाज को आरक्षण के लाभ से वंचित रखा जाना कहां तक न्यायसंगत है?

केन्द्र सरकार राज परिवारों की आड़ में इन दो जिलों के जाटों को आरक्षण का लाभ देने से क्यों परहेज कर रही है। यह भी बड़ा सवाल है। सरकार की तरफ से अभी इस मसले पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। आंदोलित जाट समाज सरकार की ओर उम्मीद भरी नजरों से देख रहा है। आंदोलन समिति संयोजक नैमसिंह फौजदार ने कहा कि केन्द्र सरकार हमें केन्द्र की सरकारी नौकरियों में आरक्षण के लाभ से वंचित रख रही है। यह केन्द्र की भाजपा सरकार की हट के अलावा कुछ नहीं है। हम चाहते हैं कि शांति से हमारी मांगों को पूरा किया जाए। हम आरक्षण के हकदार है। हमारा हक कोई नहीं मार सकता। उन्होंने कहा कि हमारा जाट समाज केन्द्र सरकार की ओर उम्मीद भरी नजरों से दख रहा है, लेकिन सरकार कहीं ओर देख रही है। राज्य व केन्द्र में भाजपा की सरकार है।

फौजदार ने मीडिया से कहा कि सात जनवरी को डीग के जनुथर में हुंकार सभा के दौरान केन्द्र सरकार को उनके आरक्षण मसले पर 10 दिन में निर्णय करने का समय दिया गया था, लेकिन केन्द्र सरकार ने उनकी मांग पर कोई ध्यान नहीं दिया।

फौजदार ने कहा कि जसचौली के बाद दूसरा पड़ाव डीग जिले के बेढ़म गांव में होगा। इसके बाद तीसरा पड़ाव भरतपुर जिले में रारह में होगा। उन्होंने कहा कि इन महापड़ावों में सौ से अधिक गांवों के जाट समाज के नेताओं को लाया जाएगा। राज्य व केन्द्र सरकार 2017 में जाट आंदोलन देख चुकी है। ऐसे में अब हमारे धैर्य की परीक्षा नहीं लेकर आरक्षण पर निर्णय लिया जाए।

भरतपुर से ही सुलगती है आरक्षण आंदोलन की आग?

आपको का बता दें कि भरतपुर जिले से आरक्षण आंदोलन का पुराना नाता रहा है। आरक्षण की मांग को लेकर भरतपुर से शुरू हुए आंदोलन राज्य व देश स्तर पर फैले हैं। 2006 में गुर्जर आरक्षण आंदोलन की मांग उठी। गुर्जर आरक्षण आंदोलन के मुखिया के रूप में कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला ने गुर्जरों के लिए ओबीसी के इतर एसटी वर्ग में आरक्षण देने की मांग की। यह आंदोलन पूरे जिले में चला।

वर्ष 2007 में 21 मई को गुर्जर समाज ने फिर से गुर्जर आरक्षण आंदोलन का बिगुल बजाया। इस बार आंदोलन का केन्द्र भरतपुर जिले का पीपलखेड़ा पाटोली केन्द्र रहा। यहां से गुजरने वाले राजमार्ग को आंदोलनकारियों ने बंद कर दिया। 23 मार्च 2008 भरतपुर जिले के पीलुकापुरा गांव से गुर्जर आरक्षण आंदोलन शुरू किया गया। यहां से गुजरने वाले रेलवे ट्रैक को जाम कर दिया। पुलिस फायरिंग में 7 आंदोलनकारी मारे गए। इसके बाद गुर्जर आरक्षण आंदोलन की आग राज्य व इसके बाद देशभर में फैली। कई आंदोलनकारी मारे गए। इसके बाद 2010 व 2015 फिर से गुर्जरों ने आरक्षण आंदोलन किया। 2023 में माली, सैनी, कुशवाहा और मौर्य समुदाय के लोगों ने 12 प्रतिशत आरक्षण की मांग को लेकर भरतपुर जिले में ही आगरा-बीकानेर नेशनल हाईवे जाम किया था। अब जाट समुदाय ने भरतपुर जिले में आरक्षण की मांग को लेकर पड़ाव डाल दिया है।

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