मध्य प्रदेश में OBC आरक्षण विवाद फिर चर्चाओं में, जानिए क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला?

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को निर्देश दिया है कि वह इन याचिकाओं का जल्द से जल्द निपटारा करे। यह मामला राज्य के हजारों अभ्यर्थियों के भविष्य से जुड़ा हुआ है, जो इस फैसले का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।
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आरक्षण.Graphic- The Mooknayak
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भोपाल। मध्य प्रदेश में सरकारी नौकरियों में 27% ओबीसी आरक्षण को लेकर चल रहे विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। यह विवाद कई वर्षों से हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के बीच विचाराधीन है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इस विवाद से जुड़ी दो याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाया है।

क्या है विवाद?

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने सितंबर 2022 में राज्य सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग की अधिसूचना के आधार पर लोक सेवा आयोग की 2019 से 2023 तक की चयन परीक्षाओं में 13% सामान्य वर्ग और 13% ओबीसी वर्ग के चयन को रोकने का आदेश दिया था। इसके बाद कई अभ्यर्थियों ने हाईकोर्ट में याचिकाएं दायर कीं, जिनमें सागर, छतरपुर, मंडला, शाजापुर, सिंगरौली, देवास, अशोकनगर और भोपाल के आवेदकों ने ओबीसी आरक्षण को 14% से बढ़ाकर 27% लागू करने और सभी पदों पर चयन करने की मांग की।

इन याचिकाओं में से दो प्रमुख याचिकाएं (WP/5596/2024 और WP/21074/2024) हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट ट्रांसफर करने की अपील की गई थी, क्योंकि हाईकोर्ट में इन पर सुनवाई नहीं हो रही थी।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने इन याचिकाओं (T.P. Civil No. 2827/2024 और T.P. Civil No. 2885/2024) को खारिज कर दिया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि किसी मामले में स्टे नहीं है, तो हाईकोर्ट इन याचिकाओं पर जल्द से जल्द अंतिम निर्णय ले।

सरकारी वकीलों की दलीलें

राज्य सरकार की ओर से पैरवी कर रहे विशेष अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर और विनायक प्रसाद शाह ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि, ओबीसी और ईडब्ल्यूएस आरक्षण से जुड़े मूल केस पहले ही दिल्ली ट्रांसफर हो चुके हैं। हाईकोर्ट में इन याचिकाओं की स्थिति "समाप्त" दिख रही है, जिससे अंतरिम आदेश भी प्रभावहीन हो गए हैं। सभी रुके हुए (होल्ड) अभ्यर्थियों को चयन प्रक्रिया में शामिल किया जाना चाहिए। 87% और 13% आरक्षण का फॉर्मूला असंवैधानिक है और 1994 के आरक्षण अधिनियम की धारा 4(2) के खिलाफ है।

सरकारी वकीलों ने यह भी सवाल उठाया कि यदि ओबीसी के 27% आरक्षण पर कोई स्टे होता, तो राजस्व विभाग, स्वास्थ्य विभाग, पुलिस कांस्टेबल और अन्य विभागों में 27% आरक्षण के आधार पर भर्तियां कैसे हो रही हैं।

इस मामले में द मूकनायक से बातचीत में अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला ओबीसी आरक्षण विवाद में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। अदालत ने स्पष्ट किया है कि हाईकोर्ट को विचाराधीन याचिकाओं पर जल्दी से जल्दी अंतिम निर्णय लेना चाहिए। यह फैसला उन हजारों अभ्यर्थियों के लिए राहत लेकर आया है, जिनकी नियुक्तियां होल्ड पर थीं।

हमने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी थी कि 87% और 13% का आरक्षण फॉर्मूला असंवैधानिक है और 1994 के आरक्षण अधिनियम की धारा 4(2) के खिलाफ है। यह राज्य सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग की एकतरफा कार्रवाई थी, जिसे अदालत में चुनौती दी गई।

हमें उम्मीद है कि हाईकोर्ट जल्द ही इस मामले पर निर्णय करेगा और होल्ड किए गए अभ्यर्थियों की नियुक्तियां शुरू होंगी। यह विवाद सिर्फ आरक्षण का नहीं, बल्कि संविधान की मर्यादा और न्यायिक प्रक्रियाओं के पालन का भी है।"

रामेश्वर सिंह ठाकुर ने आगे कहा, "यदि ओबीसी आरक्षण पर वास्तव में कोई स्टे होता, तो 27% आरक्षण के तहत अन्य विभागों में भर्तियां संभव नहीं होतीं। यह दिखाता है कि सरकार को अपने नियमों और कानूनों का बेहतर पालन करना चाहिए।"

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को निर्देश दिया है कि वह इन याचिकाओं का जल्द से जल्द निपटारा करे। यह मामला राज्य के हजारों अभ्यर्थियों के भविष्य से जुड़ा हुआ है, जो इस फैसले का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।

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