भोपाल। सुप्रीम कोर्ट ने जबलपुर हाईकोर्ट में ओबीसी आरक्षण की निष्पक्ष जांच के लिए एससी/एसटी या मायनॉरिटी के जज नियुक्त करने की मांग करने पर ओबीसी नेता लोकेंद्र गुर्जर पर 50 हजार रुपए जुर्माना लगाते हुए याचिका खारिज कर दी। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने कहा कि ओबीसी आरक्षण मामले में निष्पक्ष रूप से जांच हो सके इसके लिए हाईकोर्ट जबलपुर में अनुसूचित जाति/जनजाति वर्ग की जजों की बैंच का गठन हो। इस पर सुप्रीम कोर्ट के जज भड़क गए और याचिका को न्यायपालिका की अव्हेलना बताते हुए उपरोक्त जुर्माना लगाया है।
द मूकनायक से बातचीत करते हुए ओबीसी नेता लोकेंद्र गुर्जर ने बताया कि जबलपुर हाईकोर्ट में ओबीसी आरक्षण के मामले में विशेष बैंच गाठित करने की मांग की थी। उन्होंने कोर्ट से मांग की थी ओबीसी आरक्षण की सुनवाई के लिए एससी/एसटी के जजों की बैंच गठित की जाए जो हाईकोर्ट में ओबीसी आरक्षण से सम्बंधित 80 लम्बित मामलों पर प्रतिदिन सुनवाई करे और निष्पक्ष तरीके से ओबीसी आरक्षण मामले पर फैसला हो सके।
लोकेंद्र गुर्जर ने बताया हाईकोर्ट में इस याचिका को खारिज कर दिया गया, जिसकी अपील हमने सुप्रीम कोर्ट में की थी, लेकिन जज याचिका देख कर भड़क गए और मुझ पर जातिवाद फैलाने का आरोप लगा कर 50 हजार का जुर्माना लगा दिया।
द मूकनायक से बातचीत करते हुए लोकेंद्र गुर्जर ने कहा कि याचिका देख कर भड़के जज ने हमारी एक भी बात नहीं सुनी और मेरे अधिवक्ता द्वारा मांग करने पर जुर्माना बढाते रहे। कोर्ट ने 10 लाख का जुर्माना लगाया जो कि सुप्रीम कोर्ट न्यूज पोर्टल पर भी प्रसारित किया गया। लेकिन बाद में जब पूरे प्रदेश में कोर्ट के खिलाफ लोगों का गुस्सा फूटा तब आदेश में सिर्फ 50 हजार रुपए का जुर्माना लगाया गया।
इस मामले में याचिकाकर्ता के अधिवक्ता को नहीं सुना गया। सुनवाई के दौरान अधिवक्ता वरूण कुमार चौपड़ा ने अपना वकालतनामा वापस ले लिया। तब सुप्रीम कोर्ट ने उक्त याचिका लगाए जुर्माने कि वसूली के लिए आगामी तारीख नियत कर दी। ओबीसी एडवोकेट वेलफेयर एसोसिएशन के अधिवक्ता उदय कुमार का कहना है कि उक्त आदेश के विरूद्ध रिव्यू तथा क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल की जाएगी।
ओबीसी आरक्षण मामले में स्पेशल बैंच के गठन की मांग पर लगे जुर्माने की भरपाई के लिए लोकेन्द्र गुर्जर ने सोशल मीडिया के माध्यम से पिछड़ा वर्ग समाज से एक रुपए की मदद करने की अपील की थी। गुर्जर की अपील के बाद उन्हें जुर्माने से भी अधिक आर्थिक मदद मिली है।
मध्यप्रदेश सरकार ने 2018 में 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण प्रस्ताव कैबिनेट में पारित कर लागू किया था। जिसके खिलाफ और पक्ष में 64 याचिकाएं दायर की गई थीं। मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने 27 प्रतिशत आरक्षण पर स्टे दे दिया। फिलहाल मध्य प्रदेश में ओबीसी आरक्षण 14 प्रतिशत है।
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