MP: हाई कोर्ट में OBC को SC-ST के समान अनुपातिक आरक्षण की मांग को लेकर जनहित याचिका दायर

याचिका में बताया गया है कि, सैकड़ों वर्ष पुरानी भारतीय वैदिक सामाजिक व्यवस्था में आज के सम्पूर्ण ओबीसी वर्ग को शूद्र वर्णित किया गया है, जिनका मण्डल आयोग ने वैदिक साहित्यों का अध्ययन करके शूद्र वर्णित जातियों को ओबीसी की सूची में शामिल किया गया है।
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आरक्षण.Graphic- The Mooknayak
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भोपाल। ओबीसी वर्ग के आरक्षण के मामले में जबलपुर हाई कोर्ट ने एक जनहित याचिका को स्वीकार किया है। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय जबलपुर में एडवोकेट यूनियन फार डेमोक्रेसी एंड सोशल जस्टिस नामक संस्था ने जनहित याचिका दायर कर प्रदेश में ओबीसी वर्ग को एससी/एसटी के समान अनुपातिक आरक्षण दिए जाने की मांग की है।

यह याचिका इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि वर्तमान में 2018 में सरकार द्वारा 14 प्रतिशत से 27 प्रतिशत किए गए ओबीसी आरक्षण पर हाईकोर्ट का स्टे है। जिसके कारण विभिन्न परीक्षाओं में बाधा उतपन्न होती आई है। लेकिन अब ओबीसी वर्ग को अनुसूचित जाति/ जनजाति की संख्या समान अनुपातिक आरक्षण दिए जाने की याचिका पर सुनवाई होगी।

बता दें कि, याचिका में उठाए गए मुद्दो के समर्थन मे बताया गया है कि, सैकड़ों वर्ष पुरानी भारतीय वैदिक सामाजिक व्यवस्था में आज के सम्पूर्ण ओबीसी वर्ग को शूद्र वर्णित किया गया है, जिनका मण्डल आयोग ने वैदिक साहित्यों का अध्ययन करके शूद्र वर्णित जातियों को ओबीसी की सूची में शामिल किया गया है। आयोग ने वैदिक सभ्यता में व्याप्त सामाजिक विषमता तथा भेदभाव को वर्तमान आरक्षण का मूल आधार बताया गया है।

सदियो पुरानी असमानता वाली सामाजिक व्यवस्था को दूर किए जाने के उद्देश्य से महात्मा ज्योतिवराव फुले द्वारा विलियम हंटर आयोग के समक्ष वर्ष 1882 में आरक्षण की मांग की गई थी। याचिका में आगे कहा गया की, आरक्षण के संबंध में तत्कालीन मैसूर राज्य के महाराजा वाडियार के द्वारा वर्ष मे 1919 में गठित किया गया मिलर कमीशन की अनुशंसाओं को याचिका मे रेखांकित किया गया है, तथा वर्ष 1932 में ब्रिटिश भारत के लिए नया संविधान बनाने के उद्देश्य से इंग्लैंड में आयोजित, गोलमेज सम्मेलन मे आरक्षण पर किए गए विचार विमर्श के आधार पर याचिका में ओबीसी वर्ग को आनुपातिक आरक्षण का हकदार बताया गया है।

याचिका में 26 जनवरी 1950 से संविधान लागू होने से आजाद भारत मे ओबीसी वर्ग को आरक्षण के अधिकारों से सम्बंधित, काका कालेलकर, मण्डल आयोग, महाजन आयोग तथा गौरीशंकर बिशेन आयोग की रिपोर्टों का याचिका में हावाला दिया गया है।

द मूकनायक से बातचीत में अधिवक्ता रामेश्वर ठाकुर ने बताया कि उक्त याचिका पर 16 जुलाई को कार्यवाहक मुख्य न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफकी खंडपीठ द्वारा प्रारम्भिक सुनवाई की गई है। अगली सुनवाई 19 जुलाई को होनी है।

कमलनाथ सरकार ने ओबीसी आरक्षण में की थी बढोत्तरी

मध्यप्रदेश में तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने 2018 में 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण प्रस्ताव कैबिनेट में पारित कर लागू किया था। इसके पहले ओबीसी आरक्षण 14 प्रतिशत था। आरक्षण के प्रतिशत में हुई बढोत्तरी के कारण 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण खिलाफ और पक्ष में 64 याचिकाएं दायर की गई थी। मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने 27 प्रतिशत आरक्षण पर स्टे दे दिया। फिलहाल मध्य प्रदेश में ओबीसी आरक्षण 14 प्रतिशत है।

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