नई दिल्ली। बिल्किस बानो केस में सुप्रीम कोर्ट ने 11 दोषियों की रिहाई पर सवाल उठाते हुए कहा कि ऐसा क्या हो गया कि रातोंरात दोषियों को रिहा करने का फैसला लिया गया। साथ ही राज्य सरकार को इस बारे में नोटिस जारी किया गया है।
राज्य सरकार कैसे रिहाई दे सकती है
इससे पहले लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति व सामाजिक कार्यकर्ता रूपरेखा वर्मा, स्वतंत्र पत्रकार और फिल्म निर्माता रेवती लाल और माकपा नेता सुभाषिनी अली ने सुप्रीम कोर्ट में 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ याचिका दायर की थी। जिसमें कहा गया था कि जब जांच सीबीआई ने की है तो राज्य सरकार इसमें रिहाई कैसे दे सकती है। गुजरात सरकार एक तरफा फैसला नहीं कर सकती है। यहां तक की क्रिमिनल प्रोसीजर कोड के सेक्शन 435 के अनुसार रिहाई के लिए राज्य सरकार को केंद्रीय गृह मंत्रालय से सलाह लेना अनिवार्य है। गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए दोषियों को प्रतिवादी बनाने को कहा है। साथ ही दो सप्ताह के लिए इसे सूचीबद्ध किया गया है।
गुरुवार को सीजेआई एनवी रमना, जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि उसे इस बात पर विचार करना है कि क्या गुजरात प्रदेश के राज्य नियमों के तहत दोषी छूट के हकदार हैं और क्या इस मामले में छूट देते समय दिमागी कसरत की गई थी।
रिहाई में दिमाग का प्रयोग नहीं किया गया- कपिल सिब्बल
याचिकाकर्ताओं की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल पेश हुए थे। कोर्ट में उन्होंने कहा कि हमें यह देखना होगा कि क्या इस मामले में छूट देते समय दिमागी कसरत की गई थी। कपिल सिब्बल ने कहा कि हम केवल यह देखना चाहते हैं कि क्या इस रिहाई में दिमाग का प्रयोग किया गया था। गुजरात दंगों पर अपनी बात रखते हुए उन्होंने कहा कि साल 2002 में सांप्रदायिक दंगों में बड़ी संख्या में लोगों की जान चली गई थी। दाहोद जिले के लिमखेड़ा गांव में भी आगजनी, लूट और हिंसा हुई थी। जिस वक्त बिल्किस बानो और शमीन अन्य लोगों के साथ भाग रहे थे तो लोग कह रहे थे मुसलमानों को मारो। तीन साल की बच्ची का पत्थर पर सिर पटककर जघन्य हत्या कर दी गई। गर्भवती बिल्किस बानो के साथ गैंगरेप किया गया। उसके परिवार के सात लोगों की हत्या कर दी गई। इतना कुछ हो जाने के बाद क्या रिहाई होनी चाहिए।
क्यों हुई जेल से रिहाई
11 दोषियों की रिहाई पर गुजरात के अतिरिक्त मुख्य सचिव गृह राज कुमार ने रिहाई के बारे में कहा है कि सभी लोगों ने 14 साल की जेल काट ली है। इस दौरान उनकी उम्र, अपराध की प्रकृति व जेल में व्यवहार आदि कारणों को देखते हुए रिहाई की गई है।
क्या हुआ था 2002 में
साल 2002 के फरवरी महीने में गुजरात के गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस में आग लगा दी गई थी। आग लगने के बाद ही यहां सांप्रदायिक दंगे फैल गए। दरअसल जिस ट्रेन में आग लगी थी। उस ट्रेन में अयोध्या से कारसेवक वापस आ रहे थे। लगभग 59 कारसेवक इस आग में झुलस गए थे। जिसके बाद पूरे प्रदेश में सांप्रदायिक हिंसा भड़क गई। जिसमें कई लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। इसी दौरान दाहोद जिले में 11 लोगों ने बिल्किस के साथ गैंगरेप किया था।
न्यायिक प्रक्रिया
बिल्किस ने गैंगरेप होने के बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से संपर्क कर सुप्रीम कोर्ट से जांच की गुहार लगाई। जहां से मामले की जांच सीबीआई को करने का आदेश दिया गया। लगातार जान से मारने के मिलती धमकी के बीच सुप्रीम कोर्ट ने मामले को साल 2004 में गुजरात से बंबई हाईकोर्ट में स्थान्तरित कर दिया। सुनवाई के दौरान जनवरी 2008 को सीबीआई की एक विशेष अदालत ने 13 आरोपियों को दोषी ठहराया था। जिसमें से 11 को गैंगरेप और हत्या के मामले में दोषी पाते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी। साल 2017 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक बार फिर इस सजा को बरकरार रखा। इसी बीच साल 2019 में तत्कालिक सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच ने गुजरात सरकार को बिल्किस बानो को 50 लाख रुपए और सरकारी नौकरी व आवास देने का निर्देश दिया था।
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