उदयपुर देवराज प्रकरण: वन्यजीव संरक्षित क्षेत्र में 200 घर लेकिन केवल आरोपी छात्र का मकान क्यों ढहाया ?

पीयूसीएल ने 'बुलडोजर न्याय' की निंदा की, उच्च न्यायालय से हस्तक्षेप की मांग
वन विभाग ने जेसीबी बुलडोजर के साथ आरोपी छात्र के मकान को ध्वस्त कर दिया और परिवार को बेदखल कर दिया।
वन विभाग ने जेसीबी बुलडोजर के साथ आरोपी छात्र के मकान को ध्वस्त कर दिया और परिवार को बेदखल कर दिया।
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उदयपुर- राजस्थान के उदयपुर शहर में नाबालिग छात्रों के विवाद और चाक़ूवार मामले में राज्य प्रशासन की कथित अवैध और भेदभावपूर्ण कार्रवाई के खिलाफ राजस्थान उच्च न्यायालय में हस्तक्षेप की मांग की गई है। पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL) के वरिष्ठ प्रतिनिधियों द्वारा मुख्य न्यायाधीश को लिखे गए एक पत्र में, राज्य अधिकारियों द्वारा की जा रही कार्रवाइयों को "बुलडोजर न्याय" करार दिया गया है। पत्र में इस मामले पर उच्च न्यायालय से स्वत: संज्ञान लेने की अपील की गई है।

PUCL के अध्यक्ष कविता श्रीवास्तव, राजस्थान इकाई के अध्यक्ष भंवर मेघवंशी, महासचिव अनंत भटनागर, उदयपुर इकाई के अध्यक्ष अरुण व्यास और महासचिव मो. याकूब द्वारा हस्ताक्षरित इस पत्र में बताया गया है कि 16 अगस्त 2024 को उदयपुर में एक मुस्लिम स्कूली छात्र द्वारा अपने हिंदू सहपाठी को चाकू मारने की घटना के बाद, राज्य प्रशासन ने उसके परिवार के खिलाफ कठोर कदम उठाए हैं। कानून का उल्लंघन करने वाले किशोर को हिरासत में ले लिया गया है, जबकि उसके पिता को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है, जिसका कारण अब तक अज्ञात है।

गौरतलब है कि घायल छात्र देवराज मोची चार दिन तक एमबी हॉस्पिटल में जीवन के लिए संघर्ष करता रहा लेकिन सोमवार 19 अगस्त को उसने दम तोड़ दिया जिसके बाद मंगलवार सुबह 7 बजे कड़ी सुरक्षा और प्रशासनिक अधिकारियों की देखरेख में उसका अंतिम संस्कार किया गया.

साम्प्रदायिक माहौल खराब होने की आशंका को देखते हुए उदयपुर शहर में 16 अगस्त की रात से ही इंटरनेट सेवाएं बंद हैं , एहतियात के तौर पर 20 अगस्त को स्कूल कालेजों को भी बंद रखा गया है. देवराज की मौत के बाद सोमवार शाम को शहर का माहौल तनाव ग्रस्त हो गया था। परिजनों और सर्व समाज के लोगों द्वारा विरोध प्रदर्शन किया गया। परिवार वालों ने कहा था कि वे बॉडी तब तक नहीं लेंगे जब तक दोषी को फांसी नहीं हो जाती. सरकार ने मुआवजे के तौर पर मृतक छात्र के परिवार को 51 लाख रूपये की सहायता राशि, परिवार के एक सदस्य को संविदा पर नौकरी देने, परिवार की सुरक्षा और केस को फास्ट ट्रैक कोर्ट में चलाकर शीघ्र न्याय दिलाने का आश्वासन दिया था जिसके बाद मामला शांत हुआ।

अब आरोपी छात्र का परिवार सड़कों पर है और उनके पास कहीं और जाने का कोई ठिकाना नहीं है। उनके रिश्तेदार और दोस्त उन्हें आश्रय देने से डर रहे हैं, क्योंकि उन्हें भी इसी तरह की कार्रवाई की आशंका है।

इधर, PUCL द्वारा भेजे पत्र में कहा गया है कि 16 अगस्त को ही वन विभाग ने छात्र के पिता को एक नोटिस जारी किया, जिसमें उन्हें यह निर्देश दिया गया था कि उनका घर वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत संरक्षित क्षेत्र में आता है और उन्हें 20 अगस्त 2024 तक घर खाली करना होगा। हालांकि, यह उल्लेखनीय है कि उस क्षेत्र में 200 से अधिक अन्य घर हैं, लेकिन राज्य प्रशासन ने केवल इसी परिवार को निशाना बनाया है। इस कार्रवाई को सांप्रदायिक तनाव भड़काने के उद्देश्य से किया गया कदम बताया जा रहा है।

पत्र में आगे कहा गया है कि राज्य प्रशासन का यह पिक एंड चूज़-लक्षित दृष्टिकोण मौलिक अधिकारों और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। इससे पहले कि यह परिवार इस कार्रवाई के खिलाफ उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाता, प्रशासन ने जेसीबी बुलडोजर के साथ उनके घर को ध्वस्त कर दिया और उन्हें घर से बेदखल कर दिया। अब परिवार सड़कों पर है और उनके पास कहीं और जाने का कोई ठिकाना नहीं है। उनके रिश्तेदार और दोस्त उन्हें आश्रय देने से डर रहे हैं, क्योंकि उन्हें भी इसी तरह की कार्रवाई की आशंका है।

PUCL ने पत्र में आरोप लगाया है कि राज्य की यह कार्रवाई एक कथित अपराध को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश है, क्योंकि आरोपी बच्चा मुस्लिम समुदाय से है और पीड़ित हिंदू समुदाय से। उन्होंने किशोर न्याय अधिनियम का हवाला देते हुए कहा कि इस कानून में कहीं भी राज्य को इस तरह की क्रूर और भेदभावपूर्ण कार्रवाई करने की अनुमति नहीं दी गई है।

पत्र में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने भी उत्तर प्रदेश, गुवाहाटी, इलाहाबाद, जबलपुर और दिल्ली में 'बुलडोजर न्याय' की इस प्रथा की कड़ी आलोचना की है। PUCL ने उच्च न्यायालय से तुरंत हस्तक्षेप करने की अपील की है ताकि न्यायिक व्यवस्था की प्रासंगिकता को बनाए रखा जा सके। उन्होंने यह भी मांग की है कि बेदखल किए गए परिवार को पुनर्वासित किया जाए और राज्य द्वारा की गई अवैध विध्वंस कार्रवाई के लिए मुआवजा दिया जाए। इसके साथ ही, दोषी अधिकारियों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की मांग की गई है।

अंत में, PUCL ने अपील की है कि इस मामले की जांच की निगरानी उच्च न्यायालय द्वारा की जानी चाहिए, क्योंकि उन्हें उदयपुर पुलिस और प्रशासन से निष्पक्षता की उम्मीद नहीं है। PUCL ने इस पत्र को एक याचिका के रूप में मानने और उचित कार्रवाई करने का आग्रह किया है।

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