लोकसभा चुनाव के बीच जारी हुआ हिन्दुओं की आबादी में गिरावट और अल्पसंख्यकों की बढ़ोतरी वाला सर्वे रिपोर्ट, प्रमाणिकता पर उठे सवाल!

जानकारों के अनुसार ऐसा सर्वे प्रमाणिक नहीं है क्योंकि इस तरह का सर्वे जनगणना अधिनियम के तहत राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण द्वारा किया जाता है. यह तब सामने आया है जब पीएम मोदी खुद अल्पसंख्यकों और मुस्लिम समुदाय को लेकर तरह-तरह के बयान दे रहे हैं.
PM आर्थिक सलाहकार परिषद की सर्वे रिपोर्ट में बीते 65 सालों में अल्पसंख्यकों की आबादी बढ़ी.
PM आर्थिक सलाहकार परिषद की सर्वे रिपोर्ट में बीते 65 सालों में अल्पसंख्यकों की आबादी बढ़ी. ग्राफिक- द मूकनायक
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नई दिल्ली: प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद ने “Share of Religious Minorities: A Cross-Country Analysis (1950-2015)” नामक शीर्षक वाले सर्वे रिपोर्ट में अल्पसंख्यकों की आबादी में वृद्धि और बहुसंख्यक हिन्दुओं की आबादी में गिरावट बताई है. इस परिषद् ने यह सर्वे रिपोर्ट तब जारी किया है जब देश में लोकसभा चुनाव का दौर चल रहा है, सात चरणों में होने वाले चुनाव के तीन चरण बीत चुके हैं. 

यह सर्वे रिपोर्ट चुनाव के अलावा ऐसी परिस्थितियों में भी जारी की गयी है जब खुद देश के प्रधानमंत्री अल्पसंख्यकों और मुस्लिम समुदाय को लेकर तरह-तरह के बयान दे रहे हैं. जिससे देश में धर्म आधारित आरक्षण पर चर्चाएं तेज हैं.

रिपोर्ट के अनुसार, आजादी के बाद से अब तक हिंदुओं की आबादी में 7.82 फीसदी की कमी देखने को मिली है। जबकि, 1950 से 2015 के बीच अल्पसंख्यकों जैसे मुस्लिम, ईसाई, सिख और बौद्धों की आबादी बढ़ी है।

रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया गया है कि, देश में 1950 से 2015 तक 65 वर्षों के अंतराल में बहुसंख्यक हिंदुओं की आबादी में बड़ी गिरावट दर्ज की गई है। इस अवधि में हिंदुओं की हिस्सेदारी में 8 फीसदी की गिरावट आ गई है। वहीं इसी अवधि में पाकिस्तान, बांग्लादेश जैसे दूसरे देशों की तुलना करें तो वहां बहुसंख्यक मुस्लिमों की आबादी में हिस्सेदारी तेजी से बढ़ी है। देश में जैन और पारसियों की भी आबादी में हिस्सेदारी इस अवधि में घटी है।

EAC (Economic Advisory Council) द्वारा जारी इस सर्वे रिपोर्ट के क्या मायने हो सकते हैं, यह जानने के लिए द मूकनायक ने चाणक्य नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, पटना के वाइस चांसलर, प्रोफेसर फैजान मुस्तफा से बात की. वह बताते हैं कि, “ऐसी जनगणना, जनगणना अधिनियम के तहत की जाती है. राष्ट्रीय परिवार सर्वेक्षण के अलावा किसी अन्य सर्वेक्षण में इतनी प्रामाणिकता नहीं है.”

प्रो. फैजान के मुताबिक जातियों की पुख्ता व प्रमाणिक जनगणना, Census Act के तहत “राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण” द्वारा किया जाता है, इसके अलावा अन्य सर्वे रिपोर्ट्स की विश्वसनीयता उतनी नहीं हो सकती है. 

यूपी में एक उर्दू अख़बार के प्रतिनिधि असलम सादा बताते हैं कि, “यह एक राजनैतिक मामला है. इस समय ऐसी बातें करने का कोई मतलब ही नहीं है. हाँ मुस्लिमों में शिक्षा की कमी की वजह से यह हो सकता है कि किसी परिवार के कई बच्चे हों और हिन्दुओं में पढ़े-लिखे परिवार के पास एक हो बच्चा है. लेकिन यह हर जगह एक जैसा नहीं है. इसका मतलब यह नहीं हुआ कि हिन्दुओं की आबादी घर गई है और अल्पसंख्यकों की आबादी बढ़ रही है.”

असलम आगे बताते हैं कि, “इस समय ऐसी चीजों को लाने का मकसद बहुसंख्यक को भड़काना है. क्योंकि प्रधानमंत्री जी भी ऐसी-ऐसी बातें कर रहे हैं जो उन्हें नहीं कहना चाहिए. जहां अल्पसंख्यकों का मसला है वहां लोग बस रोजी-रोटी कमाने चाहते हैं. न उन्हें नौकरी की चिंता है न राजनीति का फिक्र है. वह चाहते हैं कि शांति से अपना काम करें और इज्जत-अबरू के साथ सुकून से रहें.”

सर्वे रिपोर्ट में कितनी बढ़ी आबादी

रिपोर्ट के मुताबिक 1950 में मुस्लिम आबादी 9.84% थी, जो 2015 में बढ़कर 14.09% हो गई है। वहीं इस दौरान हिंदुओं की आबादी 84.68% से घटकर 78.06% हो गई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि म्यांमार के बाद भारत में ही सबसे ज्यादा हिंदू आबादी कम हुई है। म्यांमार में भी हिंदुओं की आबादी 10% तक घटी है। यह 167 देशों में किए गए सर्वे में सबसे ज्यादा है।

जैन और पारसी की आबादी भी घटी 

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि, भारत में जैन समुदाय की हिस्सेदारी 65 साल में 0.45% से घटकर 0.36% हो गई। वहीं, पारसी आबादी 0.03% से घटकर 0.004% हो गई। इसी तरह इन 6 दशकों में ईसाइयों की तादाद 2.24% से बढ़कर 2.36% हो गई है। सिख आबादी की हिस्सेदारी 1.24% से बढ़कर 1.85% हो गई है, जबकि बौद्ध आबादी में 0.05% से 0.81% की उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार समिति ने अपनी रिपोर्ट में कुल 167 देशों का अध्ययन किया है।

क्या है पीएम का आर्थिक सलाहकार परिषद्?

प्रधान मंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) भारत सरकार, विशेष रूप से प्रधान मंत्री को आर्थिक और संबंधित मुद्दों पर सलाह देने के लिए गठित एक स्वतंत्र निकाय है। वर्तमान में, ईएसी-पीएम की टीम में, डॉ. बिबेक देबरॉय (अध्यक्ष), संजीव सान्याल (सदस्य), डॉ. शमिका रवि (सदस्य), राकेश मोहन (अंशकालिक सदस्य), डॉ. साजिद चिनॉय (अंशकालिक सदस्य), डॉ. नीलकंठ मिश्रा (अंशकालिक सदस्य), नीलेश शाह (अंशकालिक सदस्य), प्रोफेसर टी.टी. राम मोहन (अंशकालिक सदस्य) और डॉ. पूनम गुप्ता (अंशकालिक सदस्य) शामिल हैं।

ईएसी-पीएम के संदर्भ की शर्तों में प्रधान मंत्री द्वारा संदर्भित किसी भी मुद्दे, आर्थिक या अन्य का विश्लेषण करना और उस पर उन्हें सलाह देना, व्यापक आर्थिक महत्व के मुद्दों को संबोधित करना और उन पर प्रधान मंत्री के सामने विचार प्रस्तुत करना शामिल है। ये या तो स्वयं से या प्रधान मंत्री या किसी अन्य के संदर्भ पर हो सकते हैं। उनमें समय-समय पर प्रधान मंत्री द्वारा वांछित किसी अन्य कार्य में भाग लेना भी शामिल है।

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