मुंबई: हिंसा, अपराध के बाद अक्सर बुलडोजर की कार्रवाई क्यों होती है, क्या कहते हैं मीरा रोड के निवासी?

राम मंदिर प्रतिष्ठा समारोह से कुछ घंटे पहले इलाके में सांप्रदायिक तनाव फैलने के एक दिन बाद मुस्लिम-केंद्रित इलाके में विध्वंस अभियान शुरू किया गया था।
राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा जुलूस के दौरान दो समूहों के बीच झड़प के कारण इलाके में हिंसा भड़कने के बाद मुंबई प्रशासन ने बुलडोजर कार्रवाई की। फाइल तस्वीर- सोशल मीडिया।
राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा जुलूस के दौरान दो समूहों के बीच झड़प के कारण इलाके में हिंसा भड़कने के बाद मुंबई प्रशासन ने बुलडोजर कार्रवाई की। फाइल तस्वीर- सोशल मीडिया।
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नई दिल्ली। मुंबई के मीरा रोड इलाके में 21-22 जनवरी की मध्यरात्रि को तनाव पैदा हो गया, जब हिंदुत्व संगठनों की एक बाइक रैली ने लोढ़ा रोड पर टैनी विला मस्जिद और मोहम्मद मस्जिद से गुजरते समय उत्तेजक नारे लगाए।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, कुछ बाइकों में मोडिफाइड साइलेंसर थे जो गोली चलने जैसी आवाज निकाल रहे थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ स्थानीय लोग यह देखने के लिए घटनास्थल पर पहुंचे कि कहीं मस्जिदों की ओर गोलियां तो नहीं चलाई जा रही हैं। इससे भगदड़ जैसी स्थिति पैदा हो गई और बाइक सवार भागने की कोशिश करने लगे। उस समय, बाइक सवारों में से एक ने कथित तौर पर एक दर्शक को टक्कर मार दी, जिससे झगड़ा हो गया। सबसे पहले हिंसा इसी वजह से भड़की और पूरे इलाके के सांप्रदायिक ताने-बाने को बिगाड़ दिया।

चश्मदीदों ने बताया कि रात के करीब 10:30 बजे थे, जब युवक तेज गाने बजाते हुए और "जय श्री राम" के नारे लगाते हुए नया नगर की बानेगर गली में दाखिल हुए। उन्होंने कहा कि इलाके के लगभग सभी निवासी मुस्लिम हैं। स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया कि भीड़ ने सांघवी एम्पायर हाउसिंग सोसायटी के बाहर रोका और तेज गाने बजाए।

एक स्थानीय निवासी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “यह सबको पता है कि वह बिल्डिंग सड़क के आखिरी छोर पर है और वहां से निकलने के लिए कोई दूसरा रास्ता नहीं है। इसलिए यह कहना कि लोग गली से गुजर रहे थे, सच नहीं है। वे जानबूझकर उकसाने के लिए वहां आए थे।”

इसके बाद स्थानीय मुस्लिम लोगों की उनके साथ तीखी बहस हुई और यह बहस जल्द ही हिंसक हो गई। वीडियो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर वायरल हो गए और स्थानीय भाजपा नेताओं ने इसका इस्तेमाल राज्य में सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काने के लिए किया। घटना के तुरंत बाद, महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने घोषणा की थी कि राज्य में कानून और व्यवस्था को बिगाड़ने की कोशिश करने वाले किसी भी व्यक्ति के खिलाफ ‘कड़ी कार्रवाई’ की जाएगी। इस घोषणा के तुरंत बाद 13 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया।

गिरफ्तार किए गए इन लोगों में से दो जुलेखा के बेटे हैं। वह बताती हैं, “पुलिस हमारे बच्चों को ले गई। लेकिन उन लोगों से पूछताछ नहीं की जो इलाके में घुस आए थे और देर रात तक नारे लगा रहे थे।” गिरफ्तार किए गए लोगों में से दो नाबालिग हैं और उन्हें भिवंडी के बाल सुधार गृह में भेज दिया गया है। इसके बाद 23 जनवरी को कुछ और गिरफ़्तारियाँ की गईं।

वहीं जुलूस के संख्या बल को देखते हुए इस इलाके में आश्चर्यजनक रूप से सुरक्षाबलों की कम तैनाती के कारण पुलिस को स्थिति को नियंत्रित करने में काफी मशक्कत करनी पड़ी थी।

23 जनवरी बदले का दिन था

मीरा रोड का शांति नगर मुख्य रूप से हिंदू बहुल बाजार है, जहां कुछ प्रतिष्ठान मुसलमानों के भी हैं। 23 जनवरी को पिछली रात की घटना का बदला लेने के लिए शांति नगर के सेक्टर 5 में 200-300 लोगों की भीड़ जमा हो गई। उन लोगों का मकसद साफ था कि जिन दुकानों के बाहर भगवा झंडे लटके थे उन्हें बचाना है और बाकी पर हमला करना है। इनमें से ज्यादातर दंगाई किशोर थे या 20 वर्ष के आसपास की उम्र के थे। उन्होंने कथित तौर पर मुस्लिम नामों वाली और बिना भगवा झंडे वाली दुकानों पर पथराव किया, उनमें घुसकर शीशे तोड़े और सामान को नष्ट कर दिया।

कई लोगों ने दावा किया कि अधिकांश हमलावरों के पास बैकपैक थे, जिनमें पत्थर थे। उनमें से कुछ ने अपने चेहरे ढके हुए थे, जबकि कई लोग बिना चेहरा ढके हुए थे। स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया कि, “हमले पुलिस की मौजूदगी में हो रहे थे। लेकिन उन्होंने भीड़ को रोकने का प्रयास नहीं किया। ऐसा लग रहा था जैसे पुलिस भीड़ की सुरक्षा के लिए वहां तैनात थी।” इस पूरे मामले में अब तक अठारह एफआईआर दर्ज की गई हैं और 19 लोगों को गिरफ्तार किया गया है।

ऐसी तनावपूर्ण स्थिति में बुलडोजर कार्रवाई के क्या है मायने?

स्थिति अभी पूरी तरह से नियंत्रण में भी नहीं आई थी कि उसी दिन मीरा भयंदर नगर निगम ने नया नगर इलाके में 15 अनधिकृत दुकानों पर बुलडोजर चला दिया। इनमें से कुछ दुकानें पूरी तरह से ध्वस्त हो गईं, जबकि बाकी आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो गईं। जो बाज़ार ग्राहकों से खचाखच भरा रहता था, वह ईंटों, टूटी छतों और दीवारों के मलबे से बिखरा हुआ था।

‘द मूकनायक’ से बातचीत में मोहम्मद अब्दुल हसन शेख ने बताया, “उन्होंने मुझे बाहर खींच लिया और मेरे गैराज पर बुलडोज़र चला दिया। न तो उन्होंने हमारी बात सुनी, न ही हमें कोई नोटिस दिया गया जिसमें कहा गया हो कि हमारा गैराज अवैध है।”

हसन दावा करते हैं कि वह 22 साल से वहां गैराज चला रहे हैं। अपने दावे के समर्थन में वह गैराज के बिजली बिल भी दिखाते हैं। वह बताते हैं, “अगर यह अवैध था तो बुलडोजर चलाने से पहले कुछ आधिकारिक कार्रवाई होनी चाहिए थी। मुझे अभी भी नहीं पता कि मेरा गैराज क्यों ढहा दिया गया। यहां पांच-छह लोग काम करते थे. उनके परिवारों की देखभाल कौन करेगा?” ऐसा कहते हुए वह रोने लगते हैं। चूंकि अब इस इलाके में तनाव है, इसलिए लोग बुलडोजर की कार्रवाई को सांप्रदायिक हिंसा से जोड़ रहे हैं।

एक स्थानीय दुकानदार ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए कहा, “इस इलाके में कभी ऐसी कोई घटना नहीं हुई। हममें से किसी का भी हिंसा से कोई लेना-देना नहीं है, फिर भी हमारी दुकानें तोड़ दी गईं। हम नहीं जानते कि ऐसा क्यों किया।” लोगों ने बताया कि बुलडोजर के आगे पूरे इलाके में स्थानीय पुलिस के अलावा रैपिड एक्शन फोर्स (आरएएफ) और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) सहित भारी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया था।

शेख के गैराज से कुछ कदम की दूरी पर, एक ऊंची इमारत के ग्राउंड फ्लोर पर एक कपड़े की दुकान है। यह दुकान बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में मास्टर्स की पढ़ाई कर रही अलीशा ने एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में अच्छी-खासी तनख्वाह वाली नौकरी छोड़ने के बाद खोली थी. वह बताती है, “हमें बताए बिना ही मेरी दुकान के एक हिस्से पर बुलडोजर चला दिया गया। अगर हम सड़क या सरकारी जमीन पर अतिक्रमण कर रहे थे, तो सही तरीके को अपनाया जाना चाहिए था। उन्होंने (अधिकारियों) ने अपने इस कदम की परवाह भी नहीं की। यह नागरिकों के प्रति उनके भेदभाव और पूर्वाग्रह को दिखाता है।”

वह आगे जोड़ती है, “क्या हम इस देश के नागरिक नहीं हैं? क्या हमें स्वयं को आत्मनिर्भर बनाने का अधिकार नहीं है? क्या हम देश के दोयम दर्जे के नागरिक हैं?” उन्होंने सवालों की झड़ी लगा दी और पूछा कि अगर इलाके में हिंसा भड़की तो उनकी क्या गलती थी। उन्होंने भी कार्रवाई की टाइमिंग पर सवाल उठाए। “हिंसा के एक दिन बाद नया नगर में बुलडोज़र क्यों चलाया गया? यह कुछ दिन पहले या बाद में भी तो किया जा सकता था?"

भेदभाव के आरोप के बारे में पूछे जाने पर, मीरा-भायंदर नगर निगम के डिप्टी कमिश्नर मारुति गायकवाड़ ने कहा, “हमने अनधिकृत दुकानों के खिलाफ कार्रवाई की है। नगर निगम अधिनियम के अनुसार, यदि सड़क, फुटपाथ और नालियों पर कोई अनधिकृत दुकानें हैं, तो हम उन्हें ध्वस्त करने से पहले नोटिस देने के लिए बाध्य नहीं हैं। इस तरह के विध्वंस हमारे रोज के काम का हिस्सा है। हमें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन क्या कहता है।”

उन्होंने कहा, “नगर निकाय ने पहले भी इस तरह के अतिक्रमण विरोधी अभियान चलाए हैं। कोई भी दुकान या कोई बिल्डिंग ध्वस्त नहीं की गई है। केवल दुकानों के छज्जे गिराए गए क्योंकि वे सड़क पर अतिक्रमण कर रहे थे और वाहनों की आवाजाही में बाधा उत्पन्न कर रहे थे।”

वह फिर दोहराते हैं कि “अस्थायी निर्माणों को ध्वस्त करने के लिए नोटिस देने की कोई जरूरत नहीं है। वह कहते हैं कि मीरा रोड पर अतिक्रमण विरोधी कार्रवाई को अलग-थलग करके नहीं देखा जाना चाहिए। 33-35 स्थानों पर कार्रवाई की गई है जहां निगम की अनुमति के बिना दुकानें स्थापित की गई थीं। चूंकि हमारे पास ऐसे अवैध रूप से निर्मित व्यावसायिक प्रतिष्ठानों का कोई रिकॉर्ड नहीं है, तो हम उन्हें नोटिस कैसे दे सकते हैं।”

हालांकि गायकवाड़ ने कहा कि इस तरह के अभियान से पहले कोई नोटिस देने की जरूरत नहीं है। बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) के एक पूर्व कर्मचारी ने कहा कि भले ही नगर निगम के अधिकारी ऐसा कहें, लेकिन नोटिस दिए बिना विध्वंस का काम नहीं किया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि, “फुटपाथ पर बने आवासीय और व्यावसायिक ढांचे को भी बिना सूचना के नहीं हटाया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि नगर निकाय सड़क पर नई संरचनाओं के बारे में सार्वजनिक स्थानों पर नोटिस लगा सकते हैं। और ऐसी अवैध संरचनाओं के मालिक को उन्हें ध्वस्त करने से पहले न केवल एक बार बल्कि दो, तीन बार और यहां तक कि चार बार नोटिस दिया जाना चाहिए।”

वह आगे बताते हैं, “क़ानून के मुताबिक, धारा 351 के तहत नोटिस का सात दिनों के भीतर जवाब देना होता है। उस अवधि के दौरान कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती। अगर कोई दुकान बिजली बिल का भुगतान करती है, तो इसका मतलब है कि संरचना आधिकारिक रिकॉर्ड में है। और इसलिए, ऐसी संपत्तियों के मालिकों को किसी भी मानक का उल्लंघन करते पाए जाने पर एक सप्ताह के भीतर जवाब देने के लिए नोटिस देना अनिवार्य है।”

उनके अनुसार नगर निगम के आयुक्त के पास भी कानून को दरकिनार करने की कोई विशेष शक्ति नहीं है। कोई भी कार्रवाई निष्पक्ष और जाति और धर्म पर विचार किए बिना होनी चाहिए।

विध्वंस के बाद शाम को क्षेत्र में कुछ राजनीतिक भाषण दिए गए। नया नगर के सेक्टर-3 के पास फिर कुछ गाड़ियों पर हमला हुआ। पुलिस ने इस मामले में केस दर्ज कर लिया है। उन्होंने कहा कि हमले में अब्दुल हक चौधरी का ऑटो-रिक्शा क्षतिग्रस्त हो गया।

‘द मूकनायक’ से अपनी आपबीती सुनाते हुए वह कहते हैं, “हम भायंदर से लौट रहे थे जब कई वाहनों पर हमला किया गया। हम अपने ऑटो-रिक्शा में थे। हमलावरों ने पहले हमारी धार्मिक पहचान जानने की कोशिश की और फिर हमारे साथ मारपीट की। अगर हम ऑटोरिक्शा छोड़कर नहीं भागते तो वे हमें मार डालते। उनके हाथों में तलवारें थीं और वे ‘जय श्री राम’ के नारे लगा रहे थे।”

नया नगर में व्यवसाय फिर से शुरू होने के साथ स्थिति सामान्य हो रही है, लेकिन आसपास के इलाकों में डर का माहौल है। नाम बताने से इनकार करते हुए एक निवासी ने कहा कि कई लोग अपने बच्चों को कई दिनों तक स्कूल नहीं भेज रहे हैं। वह बताते हैं, “हमारे परिवार में एक शादी है और हम खरीदारी करने जाना चाहते थे। लेकिन हम ऐसा नहीं कर रहे हैं क्योंकि माहौल अभी भी तनावपूर्ण है।”

वहीं रैली के एक आयोजक विक्रम प्रताप सिंह ने कहा कि मीरा रोड-भायंदर में कभी ऐसी कोई हिंसा नहीं हुई है। स्थानीय लोग एक दूसरे का सहयोग कर रहे हैं। वह बताते हैं, “हमारी रैली में सभी जातियों और धर्मों के लोगों ने भाग लिया। जुलूस में ईसाई व मुस्लिम समुदाय के लोग भी शामिल हुए। राम मंदिर की निर्धारित प्राण प्रतिष्ठा का जश्न मनाने के लिए रैली में कुल लगभग 10,000 लोगों ने हिस्सा लिया। उनमें कम से कम 500 मुस्लिम समुदाय से थे। यह रैली 21 जनवरी को शाम 5 बजे समाप्त हुई।”

उन्होंने दावा किया कि जो कुछ भी हुआ वह बाहरी लोगों का काम था। वह कहते हैं कि पुलिस को बिना किसी पूर्वाग्रह के घटना की जांच करनी चाहिए।

राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा जुलूस के दौरान दो समूहों के बीच झड़प के कारण इलाके में हिंसा भड़कने के बाद मुंबई प्रशासन ने बुलडोजर कार्रवाई की। फाइल तस्वीर- सोशल मीडिया।
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