"विरासतों को सहेजा जाता है, उनसे नफ़रत नहीं की जाती…उन्हें उजाड़ा नहीं जाता", महरौली में मस्जिद उजाड़ने पर बोले इमरान प्रतापगढ़ी

राज्यसभा सदस्य इमरान प्रतापगढ़ी ने आज राज्यसभा में डीडीए द्वारा की गई बुलडोजर की इस कार्रवाई का विरोध करते हुए 700 साल पुरानी अखूंदजी मस्जिद को उजाड़े जाने पर दुख जताया।
महरौली स्थित मस्जिद उजाड़े जाने पर राज्यसभा में इमरान प्रतापगढ़ी।
महरौली स्थित मस्जिद उजाड़े जाने पर राज्यसभा में इमरान प्रतापगढ़ी। ग्राफिक: हस्साम ताजुब, द मूकनायक।
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नई दिल्ली। देश की राजधानी दिल्ली में 30 जनवरी को, दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने महरौली स्थित अखूंदजी मस्जिद और एक मदरसे को अवैध संरचना बताते हुए उन्हें बुलडोजर चलाकर जमीदोंज कर दिया। डीडीए द्वारा अचानक से की गई इस कार्रवाई का मामला अब दिल्ली हाई कोर्ट पहुंच गया है।

31 जनवरी को दिल्ली हाई कोर्ट ने डीडीए से स्पष्टीकरण मांगा कि उसने किस आधार पर मस्जिद को ध्वस्त किया। कोर्ट ने पूछा कि क्या महरौली की इस ऐतिहासिक मस्जिद को गिराने से पूर्व कोई सूचना दी गई थी। हाई कोर्ट ने इस मामले पर जवाब देने के लिए डीडीए को एक हफ्ते का समय दिया है। इसकी अगली सुनवाई 12 फरवरी को होनी है।

वहीं, राज्यसभा सदस्य इमरान प्रतापगढ़ी ने आज राज्यसभा में डीडीए द्वारा की गई बुलडोजर की इस कार्रवाई का विरोध करते हुए 700 साल पुरानी अखूंदजी मस्जिद को उजाड़े जाने पर दुख जताया। सरकार से सवाल पूछते हुए उन्होंने कहा कि "अबूधाबी में जाकर मस्जिद में सेल्फी लेने वाले प्रधानमंत्री को महरौली में 700 साल पुरानी अखूंदजी मस्जिद के टूटने की चीखें क्यों नहीं सुनाई देती? डीडीए के अधिकारी सुबह के 5 बजे महरौली की एक मस्जिद, बच्चों के पढ़ने का मदरसा और एक मंदिर को जमींदोज कर देते हैं। DDA जो 1957 में गठित हुआ है, वो अपनी पैदाइश से कई सौ साल पुरानी महरौली मस्जिद को अतिक्रमण बताता है। क्या विकास प्राधिकरण संसद के बनाए हुए 1991 के वर्शिप एक्ट (Worship Act) को नहीं मानते?"

संसद से चार कदम की दूरी पर मौजूद सुनहरी बाग मस्जिद जिसका सैकड़ों साल पुराना इतिहास है जिसके सहन (आंगन) में कभी संविधान सभा के सदस्य इंकलाब जिंदाबाद का नारा देने वाले मौलाना हसरत मोहानी बैठा करते थे, वो आज एनडीएमसी (NDMC) को अतिक्रमण नज़र आता है। वे आगे सवाल करते हुए कहते हैं, "जिस मस्जिद को लुटियन बसाने वाले अंग्रेजों ने नहीं ढहाया, उसे एनडीएमसी और डीडीए उजाड़ना चाहती है…आखिर कब रुकेगा ये सिलसिला?"

वे फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के शेर पढ़ते हुए सवाल करते हैं―

तुझ को कितनों का लहू चाहिए ऐ अर्ज़-ए-वतन,

कितनी आहों से कलेजा तिरा ठंडा होगा.

वे आगे जोड़ते हैं, "दूर कहीं अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ, वीर अब्दुल हमीद, ब्रिगेडियर उस्मान की रूहें क्या सोचती होंगी, जामा मस्जिद की वो सीढ़ियां क्या सोचती होंगी जहां खड़े होकर कभी मौलाना आजाद ने लोगों को अपनेपन का यकीन दिलाया था। गज़ट, हैरिटेज, सैकड़ों साल का वजूद क्या हमारी संस्थानों लिए कोई मायने नहीं रखते? मैं आपके माध्यम से इस सदन से पूछना चाहता हूं और सरकार से पूछना चाहता हूं कि सरकार देश को बताए कि वो 700 साल पुरानी इमारत को गैरकानूनी तरीके से जमींदोज करने वाले डीडीए के अधिकारियों के खिलाफ क्या कार्रवाई करेगी। वो देश को यह विश्वास दिलाए कि स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर इस नए भारत के निर्माण तक सैकड़ों कहानियों की गवाह सुनहरी बाग मस्जिद को सुरक्षित रखा जाएगा।"

वे आगे कहते हैं, "विरासतों को सहेजा जाता है, उनसे नफ़रत नहीं की जाती…उन्हें उजाड़ा नहीं जाता!"

महरौली स्थित अखूंदजी मस्जिद का निर्माण कब हुआ, अबतक इसकी कोई निश्चित जानकारी नहीं है। लेकिन अखूंदजी मस्जिद को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के एक अधिकारी द्वारा 1922 के प्रकाशन में सूचीबद्ध किया गया था। वहीं यह मस्जिद आरक्षित वन क्षेत्र संजय वन में आता है। इतिहासकारों और कार्यकर्ताओं का कहना है कि संजय वन को 1994 में ही आरक्षित वन क्षेत्र के रूप में अधिसूचित किया गया था, तो पुरानी मस्जिद अतिक्रमण कैसे हो सकती है।

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महरौली स्थित यह मस्जिद यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल कुतुब मीनार से लगभग आधा किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह मस्जिद रजिया सुल्तान के शासनकाल (1236-1240) के दौरान बनाई गई थी। लोगों का दावा है कि यह मस्जिद 600-700 साल पुरानी है, जिसे डीडीए ने बुरे तरीके से उजाड़ दिया। दूसरी ओर डीडीए का कहना है कि उसने डिमोलिशन ड्राइव अभियान के चलते मस्जिद और उसके आस-पास की संरचनाओं को अनधिकृत मानते हुए जमींदोज किया है।

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