उत्तराखंड। हल्द्वानी जिले के बनभूलपुरा इलाके में 4,000 से अधिक परिवार, जिनमें अधिकांश मुस्लिम हैं, रेलवे की जमीन पर रहने के लिए बेघर होने पर मजबूर हैं, क्योंकि उच्च न्यायालय ने 'रेलवे की जमीन में निर्माण' को तोड़ने का आदेश दिया है। सूत्रों के मुताबिक, अतिक्रमण में करीब 20 मस्जिद और नौ मंदिर और स्कूल शामिल हैं।
उत्तराखंड उच्च न्यायालय द्वारा जारी एक आदेश के बाद रेलवे विभाग हल्द्वानी रेलवे स्टेशन के पास अनधिकृत कॉलोनियों में रहने वाले 4300 से अधिक परिवारों को बेदखली नोटिस भेजने के लिए तैयार है।
न्यायालय के आदेश की जानकारी मिलते ही अपने आशियाने के उजड़ने का मन में डर लिए लोग सरकार से न्याय की उम्मीद में कड़ी सर्द ठंढ में सड़कों पर आ गए, और विरोध प्रदर्शन करने लगे। इसमें महिलाएं, छोटे स्कूली बच्चे, बुजुर्ग और युवाओं की भारी संख्या शामिल थी। लोगों ने हाथों में तख्ती पर अपनी भावनाएं जाहिर कर न्याय की मांग की। कई परिवारों को रोते हुए भी देखा जा सकता है।
उच्च न्यायालय के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है और शीर्ष अदालत 5 जनवरी को याचिका पर सुनवाई करेगी। हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ हल्द्वानी के विधायक सुमित हृदयेश, सपा के प्रदेश प्रभारी अब्दुल मतीन सिद्दीकी सहित कई लोगों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। विधायक सुमित हृदयेश ने बताया कि उनके वकील सलमान खुर्शीद हैं और उनकी याचिका सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर ली है। विधायक के अनुसार इस मामले में सुनवाई पांच जनवरी को होगी।
राजनीतिक मामलों और समसामयिकी घटनाओं पर नजर रखने वाले उत्तराखंड के त्रिलोचन भट्ट (58) द मूकनायक को बताते हैं, “वो लोग [हल्द्वानी में रेलवे की जमीन पर रह रहे लोग] पिछले कई सालों से वहां हैं। उनकी बसावट 1935 से शुरू हुई थी। तब से अब तक इन लोगों की कुल आबादी तक़रीबन 50 हजार हो चुकी है। इसमें ज्यादातर अल्पसंख्यक हैं।”
“रेलवे कह रही है की यह उनकी जमीन है। जबकि, वहां के कुछ लोगों के पास अपनी लीज की जमीन के कागजात भी हैं। कोर्ट में रेलवे ने अपने किसी 1969 के प्लान को पेश किया, और हाईकोर्ट ने वह प्लानिंग मान ली, और अतिक्रमण हटाने के आदेश दे दिए गए। हालांकि रेलवे के पास उसके अपने प्लान के अलावा जमीन के कोई ठोस कागजात नहीं हैं, लेकिन फैसला उनके पक्ष में है” भट्ट ने बताया कि, “50 हजार लोगों की बसावट यहां (हल्द्वानी) 5 बस्तियों के रूप में हैं। सरकार इस बारे में कुछ नहीं कर रही है कि इतनी बड़ी संख्या में लोग कहाँ जाएंगे। उनको बस नोटिस भेज दी गई है। उनको एक हफ्ते का समय दिया गया है।”
त्रिलोचन भट्ट का मानना है कि, इस कार्रवाई के पीछे राजनीतिक कारण यह है कि इस क्षेत्र (हल्द्वानी विधानसभा) से कभी भी बीजेपी का विधायक नहीं चुना गया। “यहां अधिकतर कांग्रेस के विधायक ही चुने गए हैं। इसीलिए यह सब हो रहा है। पचास हजार की इस बस्ती में लगभग 20 हजार मतदाता हैं, जो अल्पसंख्यक समाज से हैं। इसलिए सारी राजनीति हो रही है। नियम तो यह है कि अगर आप किसी को हटा रहे हैं तो उसके रहने की भी कहीं व्यवस्था करें, लेकिन इस राज्य में यह कहीं हो ही नहीं रहा है।”
रामनगर निवासी सलीम मालिक ने द मूकनायक को बताया, “यह पूरा एक ट्रैपिंग है। इस कार्रवाई के पीछे की वजह यह है कि हल्द्वानी विधानसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का विधायक नहीं बन पा रहा है। वजह यह है कि यहां काफी बड़ी व्यापक मुस्लिम आबादी है। यहां अधिकांश वोट सिर्फ समाजवादी पार्टी और कांग्रेस पार्टी के बीच बांट जाती है। ऐसे में भाजपा को वोट मिल ही नहीं पाता है। इस मामले में भाजपा सामने से नहीं बल्कि पीछे से है। वह सोचती है कि अगर यह 50 हजार की आबादी किसी भी तरीके से यहां से निकल जाए तो उनके लिए अच्छा होगा।”
“यह आबादी (मुस्लिम समुदाय) उन्हें (बीजेपी) वोट ही नहीं करती है। इसलिए इस मामले को हिन्दू वर्सेज मुस्लिम करने का प्रयास किया जा रहा है। क्योंकि यहां के हिन्दू और मुस्लिम दोनों इस पक्ष में नहीं हैं कि यहां के लोगों को हटाया जाए। यह एक बहुत बड़ा तबाही का खेल है”, मालिक ने कहा।
मालिक ने इस कार्रवाई के पीछे एक दूसरा कारण भी समझाया। “रेलवे स्टेशनों का लगातार निजीकरण चल रहा है। यहां के लोगों को हटाने के बाद यहां जगह का दायरा बढ़ जाएगा, जिससे इसके अच्छे पैसे मिलेंगे। इसलिए इनसब के पीछे एक भी खेल हो सकता है,” मालिक ने बताया।
AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने सरकार के इस कदम की आलोचना की। उन्होंने कहा, “जब इलाके में तीन सरकारी इंटर कॉलेज हैं तो यह अतिक्रमण कैसे हो सकता है?”
एक अन्य ट्विटर में AIMIM के ऑफिसियल ट्विटर हैंडल द्वारा लिखा गया, “प्रधानमंत्री @narendramodi इंसानियत की बुनियाद पर उत्तराखंड, हल्द्वानी के लोगों की मदद करनी चाहिये और उन्हें वहां से नहीं निकालना चाहिए। हल्द्वानी के लोगों के सर से छत छिन लेना कौनसी इंसानियत है?”
AIMIM उत्तराखंड के अध्यक्ष नय्यर काजमी ने भी हल्द्वानी का दौरा किया और वहां रेलवे की जमीन पर रहने वाले परिवारों से मुलाकात की और उन्हें अपना पूरा समर्थन देने की बात कही।
एक प्रेसवार्ता में पूर्व विधायक काजी निजामुद्दीन ने कहा कि, “पहले यह जमीन 29 एकड बताई गई थी लेकिन बाद में 79 एकड़ बता दी गई। गफूर बस्ती में साठ साल से भी अधिक समय से मंदिर, ओवरहेड टैंक, शिशु मंदिर और सीवर लाइन हैं। यदि यह रेलवे की जमीन है तो यहां ओवरहेड टैंक और सीवर लाइन कैसे बना दी गई? यहां जमीन का बैनामा किया गया तो सरकार ने रेवेन्यू कैसे ले लिया? क्या तब यह रेलवे की जमीन नहीं थी? यहां वक्फ बोर्ड की संपत्ति भी है।” उन्होंने यह भी कहा कि सरकार को इन लोगों के पुनर्वास के लिए कदम उठाने होंगे। इनके प्रति मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हुए उनको बेघर न किया जाए।
अवैध कब्जे को हटाने के विरोध में जहां सैकड़ों लोग सड़कों पर उतर आए हैं वहीं विपक्ष के रूप में कांग्रेस यहाँ के लोगों के साथ कड़ी है। पहले जहां दिवंगत कांग्रेस नेत्री इंदिरा हृदयेश ने इन कब्जेदारों का साथ दिया था वहीं अब उनकी विरासत संभाल रहे उनके बेटे सुमित हृदयेश भी इस मामले में कब्जेदारों के साथ खड़े हैं।
जानकारी के मुताबिक, सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष व यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव के निर्देश पर रेलवे भूमि प्रकरण को लेकर समाजवादी पार्टी का प्रतिनिधिमंडल बुधवार को हल्द्वानी पहुंचेगा। दस सदस्यीय प्रतिनिधि मंडल में सांसद एसटी हसन, विधायक अताउर्रहमान, पूर्व सांसद वीरपाल सिंह, प्रदेश सपा प्रभारी अब्दुल मतीन सिद्दीकी, प्रदेश महासचिव शोएब अहमद, प्रदेश उपाध्यक्ष सुरेश परिहार समेत अन्य लोग उपस्थित होंगे।
सपा के प्रदेश प्रभारी मतीन सिद्दीकी ने बताया कि राष्ट्रीय अध्यक्ष से बातचीत हुई थी। इसमें प्रकरण के संबंध में जानकारी दी गई। इधर, बनभूलपुरा संघर्ष समिति ने उवैस रजा ने सीएम पुष्कर सिंह धामी को ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में हल्द्वानी रेलवे भूमि अतिक्रमण पर पचास हजार लोगों पर मानवीय दृष्टि रखने का अनुरोध किया गया है।
अतिक्रमण के खिलाफ इस कार्यवाई पर नैनीताल जिले के अधिकारियों का कहना है कि, क्षेत्र से कुल 4,365 अतिक्रमण (परिवारों की संख्या) हटाए जाएंगे। कई परिवार जो दशकों से इन घरों में रह रहे हैं, वे इस आदेश का कड़ा विरोध कर रहे हैं। वहीं, रेलवे अधिकारियों ने कहा कि उन्होंने रेलवे की 2.2 किलोमीटर लंबी पट्टी पर बने मकानों और अन्य ढांचों को गिराने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
स्थानीय प्रशासन का कहना है कि यह जमीन रेलवे की है और इस पर अवैध कब्जा कर गफूर बस्ती को बसाया गया है। इस अतिक्रमण को हटाने के लिए हाईकोर्ट से आदेश आने के बाद यहां बस्तीवासी धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। प्रदर्शनकारी प्रशासन पर आरोप लगा रहे हैं कि कड़ाके की सर्दी के बीच उन्हें बेघर किया जा रहा है। इनकी मांग है कि प्रशासन अतिक्रमण हटाने से पहले उनका विस्थापन करके कहीं और बसाए। फिलहाल, प्रशासन ने 10 जनवरी तक के लिए अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई रोक दी है।
प्रशासन का कहना है कि “रेलवे की जमीन पर लगभग 4500 परिवारों ने अतिक्रमण कर रखा है। अब जब गफूर बस्ती से यह अतिक्रमण हटाया जा रहा है तो ये लोग बेघर होने की दुहाई दे रहे हैं। सड़कों पर उतर कर धरना दे रहे हैं, दुआएं कर रहे हैं। यह पूरा घटनाक्रम सोशल मीडिया पर भी जोरशोर से चलाया जा रहा है। इसकी वजह से तनाव का माहौल बन रहा है। इनमें ज्यादातर वीडियो में लड़कियों को पढ़ाई से वंचित किए जाने और महिलाओं को बेघर होने की दुहाई देते सुना जा सकता है।”
27 दिसम्बर 2022 को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने हल्द्वानी के वनभूलपुरा क्षेत्र में स्थित गफूर बस्ती में रेलवे की भूमि पर हुए अतिक्रमण को हटाने के आदेश जारी किए थे। एक सप्ताह के भीतर यह अतिक्रमण हटाने की समयावधि भी निर्धारित की थी। साथ ही वनभूलपुरा के लोगों को लाइसेंसी हथियार भी जमा कराने को कहा गया है। दिसंबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट भी रेलवे की जमीनों पर अतिक्रमण को ले कर चिंता जताते हुए इसे जल्द से जल्द खाली करवाने के आदेश दे चुका है।
बताया जा रहा है कि क्षेत्र में रेलवे की जमीन पर कब्जे की शुरुआत साल 1975 से हुई थी। इस जमीन पर कब्जा करने के लिए पहले यहां कच्ची झुग्गियां बनाई गईं थी जिन्हें बाद में पक्के मकान में तब्दील कर दिया गया। इसी तरह से धीरे-धीरे इबादतगाहों और अस्पतालों का निर्माण हो चुका। लेकिन जब ये कब्जे हो रहे थे तब रेलवे प्रशासन ने कोई कदम नहीं उठाया। जब कब्जे हो गये तो वर्ष 2016 में नैनीताल हाईकोर्ट से सख्ती के बाद रेलवे सुरक्षा बल ने अवैध कब्जेदारों के खिलाफ केस दर्ज कराया लेकिन तब तक हजारों लोग वहां बस चुके थे।
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